मौसम में बदलाव के मानव जीवन पर दिखेंगे गंभीर परिणाम

Change in weather will have serious consequences on human life
मौसम में बदलाव के मानव जीवन पर दिखेंगे गंभीर परिणाम
2025 तक 4 अरब लोग होंगे प्रभावित मौसम में बदलाव के मानव जीवन पर दिखेंगे गंभीर परिणाम

डिजिटल डेस्क, नागपुर। वैश्विक तापमान लगातार बढ़ रहा है। यह हर साल इसी तरह बढ़ेगा। फिलहाल तापमान बढ़ने का औसत 1.60 सेल्सियस है। यह खतरे की घंटी है। अभी कदम नहीं उठाया गया, तो परिस्थिति बिगड़ने की आशंका है। आगामी चार साल में यानी 2025 तक मौसम में बदलाव के कारण विश्व के 4 अरब लोगों को उसका प्रतिकूल परिणाम भुगतना पड़ेगा? यह आशंका राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संशोधन संस्था (नीरी) के पर्यावरण पदार्थ विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ. सुवा लामा ने जताई। 

चर्चा सत्र में इनकी उपस्थिति

वे वनराई फाउंडेशन की ओर से ‘हवामान बदलाव और उसका पर्जन्य, सर्दी और मानवी स्वास्थ्य पर होने वाले परिणाम’ विषय पर आयोजित चर्चासत्र में बोल रहे थे। शनिवार को शंकरनगर चौक स्थित बाबूराव धनवटे सभागृह, राष्ट्रभाषा संकुल में इसका आयोजन किया गया था।  नीरी के पूर्व संचालक डॉ. सतीश वटे की संकल्पना से आयोजित चर्चासत्र में वनराई के अध्यक्ष गिरीश गांधी, जेएनयू के पर्यावरण विज्ञान शाला, दिल्ली के अधिष्ठाता प्रा. उमेश कुलश्रेष्ठ, प्रादेशिक हवामान केंद्र नागपुर के उपमहासंचालक एम.एल. साहू, इंडियन कैंसर सोसायटी के डॉ. मनमोहन राठी ने मार्गदर्शन किया। 
रखी अपनी बात 

डॉ. लामा ने वर्षा पैटर्न बदलने की बात कही। उन्होंने कहा कि पहले बारिश तय समय में सीमित होती थी। पिछले कुछ सालों में एक समय पर ज्यादा बारिश होती है और अनेक दिन तक नहीं होती है। मौसम में बदलाव के परिणाम रोकने हैं, तो कार्बन उत्सर्जन कम कर नैसर्गिक उपाय योजना करनी होगी

मौसम केंद्र के मोहनलाल साहू ने पिछले 100 साल के बारिश का उल्लेख करते हुए बताया कि मौसम में बदलाव लगातार होने वाली प्रक्रिया है। हम उसे रोक नहीं सकते। उसका जैव-विविधता पर परिणाम दिखाई देता है। प्रभाव कम करना है तो निसर्ग में मानव हस्तक्षेप रोकना होगा।  

प्रा. उमेश कुलश्रेष्ठ ने चेन्नई की बाढ़, हिमाचल प्रदेश में बादल फटने सहित अनेक घटनाओं का जिक्र करते हुए मौसम में बदलाव की समीक्षा की। उन्होंने कहा कि मानव हस्तक्षेप के कारण हो रहा निसर्ग का शोषण, ईंधन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल, औद्योगिकरण की स्पर्धा घटकों के कारण निसर्ग का असंतुलन बढ़ा है।

डॉ. मनमोहन राठी ने कहा कि हमारे शरीर का चक्र निसर्ग पर निर्भर है। तापमान इसी तरह बढ़ते रहा तो निसर्ग में असंतुलन बढ़ेगा। उसका परिणाम मानव शरीर पर होगा। अनुकूल वातावरण मिलेगा और अलग-अलग विषाणु का प्रभाव बढ़ेगा। उससे जलप्रदूषण, अन्न प्रदूषण से मनुष्य पर गंभीर बीमारियों का प्रकोप होगा। पिछले कुछ वर्षों में अलग-अलग बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है। संचालन नितीन जतकर और आभार नीलेश खांडेकर ने किया। 
 

Created On :   12 Dec 2021 4:02 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story