मुख्यमंत्री के पास नहीं है मुकदमा चलाने की अनुमति देने का अधिकारः हाईकोर्ट

Chief Minister does not have the right to allow prosecution: High Court
मुख्यमंत्री के पास नहीं है मुकदमा चलाने की अनुमति देने का अधिकारः हाईकोर्ट
मुख्यमंत्री के पास नहीं है मुकदमा चलाने की अनुमति देने का अधिकारः हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री की मंजूरी के बाद घूसखोरी के आरोपों का सामना करनेवाले सरकारी अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति को वैध मंजूरी मानने से इंकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि मुकदमा चलाने की मंजूरी देना प्रशासकिय व गंभीर कार्य है। सक्षम प्राधिकरण को स्वतंत्र रुप से अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी का आदेश जारी करना चाहिए न की किसी के निर्देश के बाद। हाईकोर्ट ने 50 हजार रुपए की रिश्वत लेने के मामले में दोषी पाए गए जिला शिक्षा व प्रशिक्षण संस्थान के प्राचार्य सागर वटकर को मामले से बरी करते हए उपरोक्त बात कही है। वटकर पर एक डीएड कालेज के अतिरिक्त दस विद्यार्थियों को प्रवेश देने की अनुमति से जुड़ा प्रस्ताव उप शिक्षा निदेशक को भेजने के लिए घूस मांगने का आरोप था।

निचली अदातलत ने वटकर को इस मामले में दोषी ठहराते हुए दो साल के कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ वटकर ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति भारती डागरे के सामने आरोपी की अपील पर सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने बाद न्यायमूर्ति ने पाया कि आरोपी श्रेणी एक का अधिकारी है। उसके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने का अधिकार स्कूल शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव के पास था। क्योंकि प्रधान सचिव के पास आरोपी को नियुक्ति करने व बर्खास्त करने का अधिकार होता है। लेकिन प्रधानसचिव ने मंजूरी के विषय में स्वयं निर्णय लेने की बजाय पहले इसे विधि व न्याय विभाग के पास भेजा। वहां की राय मिलने के बाद स्कूली शिक्षा विभाग के मंत्री के मार्फत प्रस्ताव मुख्यमंत्री को भेजा गया। 

सीएम के पास फाईल भेजने की नहीं थी जरुरत

न्यायमूर्ति ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि मुख्यमंत्री ने आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी। इसके बाद प्रधान सचिव ने मुकदमा शुरु करने की अनुमति दी। इस तरह से देखा जाए तो प्रधान सचिव ने मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद मंजूरी दी है। जबकि नियमानुसार उन्हें मुख्यमंत्री के यहां मंजूरी के लिए दस्तावेज भेजने की बजाय खुद मंजूरी के विषय में स्वतंत्र रुप से अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए निर्णय लेना चाहिए था। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इस लिहाज से आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी में वैधता की कमी नजर आ रही है। क्योंकि इस मामले में दो मंजूरी हो गई है। एक मंजूरी प्रधान सचिव की और दूसरी मुख्यमंत्री की। न्यायमूर्ति ने कहा कि मुकदमा चलाने की मंजूरी सरकारी अधिकारियों को आधारहीन मुकदमेबाजी से बचाने के लिए एक कवच है। इसलिए यह जरुरी है कि मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से जुड़े सक्षम प्राधिकरण को निर्णय लेते समय सभी पहलूओं व सबूतों पर गंभीरता से विचार करने के बाद पूरी संजिदगी के साथ इस बारे में निर्णय लेना चाहिए। 

सरकारी वकील ने आरोपी की अपील का विरोध किया और कहा कि मंजूरी की वैधता का प्रश्न आरोपी को निचली अदालत में सुनवाई के दौरान उठाना चाहिए था न की अपील के दौरान। इसिलए न्याय के लिहाज आरोपी की अपील पर सुनवाई नहीं की जानी चाहिए। वहीं आरोपी की ओर से पैरवी करनेवाले अधिवक्ता गिरीष कुलकर्णी ने कहा कि उनके मुवक्किल को मुकदमे की बीच में मंजूरी से जुड़ी सारी जानकारी मिली है। इसलिए वे मंजूरी के बारे में अपनी बात निचली अदालत में नहीं रख पाए। उन्होंने कहा कि मेरे मुवक्किल के खिलाफ बिना वैध मंजूरी के मुकदमा चलाया गया है। इसलिए निचली अदालत का आदेश खामीपूर्ण है। 

न्यायमूर्ति ने मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने की वैध मंजूरी नहीं ली गई है। चूंकि अब मामले को एक दशक से ज्यादा का समय बीत गया है। इसलिए अब नए सिरे से आरोपी के खिलाफ मंजूरी की प्रक्रिया न शुरु की जा। इस तरह से खंडपीठ ने आरोपी को दोषी ठहरानेवाले निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया और उसे राहत प्रदान की। 


हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद होगी ऑनलाईन बैठक, बीएमसी की ऑनलाईन बैठक के खिलाफ दायर हुई थी याचिका 

वहीं मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने बांबे हाईकोर्ट को सूचित किया है कि वह अपनी स्थाई समिति (स्टैंडिंग कमेटी) की बैठक 16 अप्रैल 2021 को ऑनलाइन आयोजित करेगी। पहले यह बैठक 15 अप्रैल 2021 को वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए होनेवाली थी। इस बैठक को लेकर कई नगरसेवकों ने अधिवक्ता जीत गांधी के मार्फत कोर्ट में याचिका दायर की थी। अवकाशकालीन न्यायमूर्ति एससी गुप्ते व अभय अहूजा की खंडपीठ के सामने इस याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान अधिवक्ता जीत गांधी ने कहा कि बीएमसी ने 12 अप्रैल को घोषणा की थी कि स्थाई कमेटी की बैठक 15 अप्रैल 2021 को प्रत्यक्ष रुप से आयोजित की जाएगी। लेकिन 14 अप्रैल 2021 को अधिसूचना जारी कर कहा गया कि बैठक 15 अप्रैल को ऑनलाइन आयोजित की जाएगी। इस लिहाज से मनपा ने कमेटी के सदस्यों को ऑनलाइन बैठक को लेकर 24 घंटे पहले नोटिस नहीं दी गई है। कमेटी के सदस्य बैठक में  कई मुद्दों को लेकर चर्चा करना चाहते हैं। इसके लिए वे जरुरी दस्तावेज स्कैन नहीं कर पाए हैं। उन्होंने कहा कि मनपा को बैठक को प्रत्यक्ष रुप से करने का निर्देश दिया जाए। 

वहीं मनपा की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल साखरे ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से कोरोना के चलते लोगों की आवाजाही को लेकर लगाई गई पाबंदियों की वजह से ऑनलाइन बैठक आयोजित करने का फैसला किया गया है। ऑनलाइन बैठक के दौरान सभी नियमों का पालन किया जाएगा। इस पर खंडपीठ ने कहा कि यदि बैठक 16 को हो तो कोई नुकसान है। क्योंकि इससे याचिकाकर्ता को दस्तावेज स्कैन करने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा। इस पर श्री साखरे ने मनपा आयुक्त से निर्देश लेने के बाद कहा कि मनपा 16 अप्रैल को बैठक आयोजित करने को राजी है। यह बैठक दोपहर 12 बजे होगी। इसके बाद खंडपीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया। 
 

Created On :   15 April 2021 8:33 PM IST

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