मेलघाट और आदिवासी इलाकों में बाल विवाह बच्चों-महिलाओं की मौत की मुख्य वजह

Child marriage is the main reason for the death of children and women in Melghat and tribal areas
मेलघाट और आदिवासी इलाकों में बाल विवाह बच्चों-महिलाओं की मौत की मुख्य वजह
हाईकोर्ट मेलघाट और आदिवासी इलाकों में बाल विवाह बच्चों-महिलाओं की मौत की मुख्य वजह

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि मेलघाट समेत राज्य के आदिवासी इलाकों में बाल विवाह महिलाओं व बच्चों की मौत की मुख्य वजह नजर आ रहा है। इसलिए हम चाहते है कि राज्य के जिलाधिकारी आदिवासी इलाकों का सर्वेक्षण करे और वहां पर होनेवाले बाल विवाह की स्थिति का पता लगाए। ताकि यह जानकारी सामने आ सके कि कितने प्रतिशत लड़कियों के बाल विवाह होते। हमे बाल विवाह की प्रथा को रोकना होगा।  अन्यथा हम जो कुछ भी आदिवासी इलाकों की स्थिति को सुधारने के लिए खर्च कर रहे वह सब व्यर्थ साबित हो जाएगा। ऐसे में जरुरी है कि आदिवासी इलाके में रहनेवाले लोगों को समझाया जाए कि लड़की के विवाह की उम्र 18 साल है। 

हाईकोर्ट ने कहा कि हमे विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि मेलघाट व आदिवासी इलाकों में 13 से 15 साल की उम्र में लड़की का विवाह कर दिया जाता है। इसके बाद वह कम उम्र में गर्भवती हो जाती है। जिससे के कारण पैदा होनेवाली जटिलाताओं के चलते कई बार बच्चे और मां दोनों की मौत हो जाती है। इस मामले में कोर्ट के आदेश से काम नहीं हो रहा। ऐसे में जरुरत है आदिवासी इलाकों में विवाह की उम्र को लेकर जागरुकता फैलाने की। जिससे लोगों को लड़की के विवाह के लिए तय की गई 18 साल की उम्र के बारे में जानकारी मिल सके। और लड़कियों को बचाया जा सके। इसलिए हम चाहते है कि राज्य सरकार अपने जिले के सभी जिलाधिकारियों से सर्वे कराए ताकि इस बात का पता लगाए कि किन लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हुई है। 

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने शुक्रवार को यह बाते मेलघाट व अन्य आदिवासी इलाकों मे कुपोषण व स्वास्थय सुविधाओं के अभाव में महिलाओं व बच्चों की होनेवाली मौत को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कही। याचिका में मांग की गई है कि सरकार की उदासीनता के चलते कुपोषण से होनेवाली मौत को रोकने का निर्देश दिया जाए।  खंडपीठ ने कहा कि हमारे लिए इस मामले में अधिकारियों की प्रतिबंद्धता तय करने से जरुरी है आदिवासियों का कल्याण व उनकी खुशहाली। कई दशकों से यह मामला चल रहा है अब हम चाहते है कि अब इस मामले में अधूरे मन से प्रयास न हो। समस्या की पहचान कर उसका समाधान निकाला जाए।
हालांकि सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता जुगल किशोर गिलडा ने कहा कि आदिवास इलाकों में पहले की अपेक्षा बाल विवाह कम हुआ है। इस दौरान अधिवक्ता उदय वारुंजेकर ने कहा कि राज्य के 16 जिलों में बाल विवाह हो रहे है। वहीं राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने कहा कि सरकार आदिवासी इलाकों को मुख्यधारा से जोड़ने व  स्वास्थ्य सुविधाओं को आदिवासी लोगों तक पहुंचाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। सरकार चाहती है कि कुपोषण के चलते एक भी मौत न हो। उन्होने कहा कि आदिवासी को शहरों में लाकर उन्हें फ्लैट में रखकर उनकी स्थिति को नहीं सुधारा जा सकता है। हम चाहते कि वे अपनी परंपराओं को सुरक्षित रखे और सुधार की ओर से भी बढे। इस पर खंडपीठ ने कहा कि आदिवासियों को कानून के बारे में भी जागरुक करना जरुरी है।

तांत्रिकों को मरीज अस्पताल लाने पर दो सौ रुपए देने का प्रावधान

महाधिवक्ता कुंभकोणी ने कहा कि आदिवासी पहले उपचार के लिए तांत्रिक(भूमका) के पास जाते है बाद में अस्पताल आते है।तब तक मरीज की हालत बिगड़ जाती है और उसे बचा पाना मुश्किल होता है। इसलिए सरकार ने एक योजना के तहत तय किया है कि यदि तांत्रिक मरीज को सीधे अस्पताल लगाएगा तो उसे दो सौ रुपए दिए जाएगे। इस बीच खंडपीठ को बताया गया कि आदिवासी इलाकों में बच्चों की होनेवाली मौत में कमी देखने को मिली है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि ऐसी व्यवस्था हो कि बच्चों की मौत ही न हो। खंडपीठ ने आठ अप्रैल 2022 को अब इस याचिका पर सुनवाई रखी है। और अगली सुनवाई के दौरान डाक्टर अभय बंग व सामाजिक कार्यकर्ता बंडू साने सहित अन्य लोगों को अपने सुझाव देने को कहा है। 
 

Created On :   14 March 2022 10:15 PM IST

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