गर्म कपड़ों की कमाई पर टिकी है बच्चों की पढ़ाई, दोहरा संकट झेल रहे तिब्बती शरणार्थी

Childrens education depends on earning warm clothes, Tibetan refugee facing double crisis
गर्म कपड़ों की कमाई पर टिकी है बच्चों की पढ़ाई, दोहरा संकट झेल रहे तिब्बती शरणार्थी
जागी उम्मीद गर्म कपड़ों की कमाई पर टिकी है बच्चों की पढ़ाई, दोहरा संकट झेल रहे तिब्बती शरणार्थी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। ठंड की आहट होते ही शहर में बैद्यनाथ चौक के समीप ऊनी कपड़ों और स्वेटरों की दुकानें सज रही हैं। करीब 8 सालों से दुकानों का संचालन तिब्बती शरणार्थियों के माध्यम से हो रहा है। आम जनता को लगता है कि तिब्बत में तैयार कर स्वेटर सहित ऊनी कपड़ों को बिक्री के लिए लाया जाता है, लेकिन यह शरणार्थी समीप के अर्जुनी (मोरगांव) के करीब 54 परिवारों का सालभर का आजीविका का साधन है। दिल्ली सहित देश भर के अलग-अलग हिस्सों से स्वेटर की खरीदी कर बिक्री के लिए मुहैया कराया जाता है। थोक बिक्री के लिए धर्मशाला से निकले अनुयायी सहायता करते हैं, ताकि तिब्बती शरणार्थियों के रूप में अस्तित्व बना रहे। शहर में इन दिनों 54 दुकानें लग चुकी हैं, इन दुकानों में प्रत्येक परिवार के दो सदस्य अपने परिवार के लिए सालभर का खर्च जुगाड़ करना चाह रहे हैं। पिछले साल कोरोना संक्रमण के चलते तिब्बती शरणार्थियों को दोहरा संकट का सामना करना पड़ा है। एक ओर संक्रमण में स्वेटर बिक्री की दुकानें नहीं लग पाई थीं, वहीं दूसरी ओर खेतों में धान की फसल पर कीट संक्रमण से नुकसान हुआ है। दोहरे संकट से इन परिवारों के बच्चों की शिक्षा सहित अन्य बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में मुश्किलें पैदा हो गई हैं। इस साल कड़ी ठंड के पड़ने की उम्मीद और कोरोना संक्रमण में कमी से राहत महसूस करने की उम्मीद पाल रहे हैं।

विदर्भ और परिसर के इलाकों में 120 परिवार

करीब 6 दशक पहले तिब्बत से निर्वासित के रूप में नागरिक पहुंचे थे। आरंभ में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित सरकार के साथ नागरिक बसे थे, लेकिन रोजगार की तलाश में देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंच गए हैं। विदर्भ में नागपुर के अलावा यवतमाल, भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर और परिसर से सटे सिवनी, बालाघाट में करीब 120 परिवार अब बसे हुए हैं। स्थानीय प्रशासन ने विस्थापित के रूप में जमीन अावंटन की है, जिस पर खेती कर अपनी आजीविका चला रहे हैं। 

ऊनी कपड़ों की बिक्री के माध्यम से सालभर के बच्चों की शिक्षा के खर्च को चलाते हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण में भीड़ पर पाबंदी के चलते इन पर भी आजीविका का संकट आ गया है। 
संकट से निजात 

मिलने की उम्मीद

टेंजिंग पासंग, प्रमुख, तिब्बती शरणार्थी स्वेटर विक्रेता, कल्याणकारी संगठन के मुताबिक पिछले दो सालों से हम पर ही नहीं, पूरे विश्व में संकट के रूप में कोरोना संक्रमण जारी है। इस संक्रमण के चलते खासी परेशानी हो रही है। पिछले साल दुकानाें के नहीं लगाने से सालभर के खर्च में खासी असुविधा हुई है। इतना ही नहीं, धान की फसल पर कीट का प्रकोप होने से भी खासा नुकसान हुआ है। इस साल मई में धान की बेहतर फसल होने की उम्मीद बंधी थी, लेकिन लगातार बरसात से उम्मीद खत्म हो गई है। स्वेटर और ऊनी कपड़ों की बिक्री से ही अब नई उम्मीद बंधी है।

Created On :   24 Oct 2021 2:57 PM IST

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