प्रबेशन के दौरान दुर्घटना ग्रस्त कांस्टेबल को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता - हाईकोर्ट

CISF can not remove Constable accident duration probation - HC
प्रबेशन के दौरान दुर्घटना ग्रस्त कांस्टेबल को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता - हाईकोर्ट
प्रबेशन के दौरान दुर्घटना ग्रस्त कांस्टेबल को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता - हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने नौकरी में प्रोबेशन की अवधि के दौरान दुर्घटना का शिकार होने के चलते मेडिकल टेस्ट न पास करनेवाले एक कांस्टेबल को राहत प्रदान की है। हाईकोर्ट ने सेंट्रल इंडस्ट्रीयल सिक्योरिटी फोर्स  (सीआईएसएफ) को निर्देश दिया है कि वह कांस्टेबल शंकर कुमार को आफिस में चपरासी अथवा रसोइए के रुप में नियुक्त करे। शंकर की साल 2009 में सीआईएसएफ में कांस्टेबल के रुप में नियुक्ति की गई थी। इस बीच प्रोबेशन की अवधि के दौरान वह 11 जनवरी 2010 को एक दुर्घटना का शिकार हो गया जिससे उसके कमर में चोट लग गई। इलाज के कुछ समय बाद शंकर मेडिकल टेस्ट पास नहीं कर पाए। मेडिकल टेस्ट को पास करने के लिए शंकर को कई मौके दिए गए लेकिन चोट के चलते उन्हें मेडिकल टेस्ट को पास करने में सफलता नहीं मिली। इसे देखते हुए सीआईएसएफ ने शंकर को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। सीआईएसएफ के इस निर्णय के खिलाफ शंकर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में शंकर ने मेडिकल प्रमाणपत्र के आधार पर दावा किया था वह कार्यालय में बैठकर किए जानेवाले  काम के लिए फिट है। न्यायमूर्ति भूषण गवई की खंडपीठ के सामने शंकर की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान सीआईएसएफ के अधिकारी ने हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि उसके पास कार्यालयीन ड्यूटी की नियुक्ति के लिए कोई अलग से कोटा नहीं है। कुछ जगहों पर कार्यालय से जुड़े काम हैं लेकिन यह काम बुनियादी प्रशिक्षण के बाद सीआईएसएफ के लोग ही करते हैं। सीआईएसएफ में ड्यूटी के लिए मेडिकल टेस्ट पास करना जरुरी है। 

अदालत ने कहा कि दिया जाए कोई दूसरा काम

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि इसमे कोई शक नहीं है कि सीआईएसएफ एक पैरामिलिटरी फोर्स है, इसके लिए मेडिकल फिटनेस टेस्ट पास करना जरुरी है लेकिन यदि शंकर नौकरी पक्की होने के बाद ड्यूटी के दौरान दुर्घटना का शिकार होता तो क्या उसे पर्सन विथ डिसेबिलिटी कानून के तहत दूसरी नौकरी नहीं प्रदान की जाती? मामले की सुनवाई के दौरान शंकर कोर्ट में मौजूद थे। जिन्हे देखने के बाद खंडपीठ ने कहा कि शंकर शारीरिक रुप से फिट हैं वे कांस्टेबल की ड्यूटी के लिए सक्षम नहीं लेकिन दूसरे कार्य कर सकते है। पैरामिलिटरी फोर्स में भी चपरासी व रसोइए व रसोइए के सहायक की जरुरत होती है। इन कामो को शंकर कर सकते हैं। इस लिहाज से हमें शंकर को नौकरी से निकालने का सीआईएसएफ का फैसला न्यायसंगत नहीं नजर आता है। 

गैर अनुदानित स्कूलों के शिक्षकों को मिली राहत बरकरार
    
वहीं बांबे हाईकोर्ट ने गैर अनुदानित स्कूलों के शिक्षकों को चुनावी ड्यूटी से मिली राहत को बरकरार रखा है। चुनाव ड्यूटी के खिलाफ अनएडेड स्कूल फोरम ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। सोमवार को न्यायमूर्ति अभय ओक की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान फोरम की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मिहीर देसाई ने कहा कि चुनाव आयोग गैर अनुदानित स्कूलों के शिक्षकों को चुनावी ड्यूटी पर नहीं लगा सकता है। चुनावी ड्यूटी पर उन्हीं स्कूलों के शिक्षकों को लगाया जा सकता है जिन्हें सरकार वित्तीय सहयोग प्रदान करती है अौर उन्हें नियंत्रित करती है। जबकि चुनाव आयोग के वकील ने दावा किया कि उसके पास इन स्कूलों के शिक्षकों को चुनावी ड्यूटी में बुलाने का अधिकार है। फोरम इस मामले में याचिका नहीं दायर कर सकता है। क्योंकि हमने शिक्षकों को व्यक्तिगत रुप से नोटिस दिया है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि ड्यूटी के लिए नोटिस जारी करते समय नियमों का पालन नहीं किया गया है। खंडपीठ ने पिछली सुनवाई के दौरान आयोग को निर्देश दिया था चुनावी ड्यूटी पर न आनेवाले शिक्षकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई न की जाए। खंडपीठ ने सोमवार को इस राहत को बरकरार रखा और मामले की सुनवाई 3 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी। 
 

Created On :   1 April 2019 1:48 PM GMT

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