चुनाव मैदान में अकेले पड़ रहे  कांग्रेस उम्मीदवार, नहीं दिख रही एकजुटता

Congress candidates falling alone in the election field, not seeing solidarity
चुनाव मैदान में अकेले पड़ रहे  कांग्रेस उम्मीदवार, नहीं दिख रही एकजुटता
चुनाव मैदान में अकेले पड़ रहे  कांग्रेस उम्मीदवार, नहीं दिख रही एकजुटता

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विधानपरिषद की नागपुर स्नातक सीट के िलए चुनाव की सरगर्मी बढ़ने लगी है। चुनाव परिणाम के लिहाज से देखें तो इस सीट को भाजपा के प्रभाव की सीट माना जाता रहा है। 4 दशक पहले गठन के बाद इस सीट से भाजपा उम्मीदवार ही चुनाव जीतते रहे हैं। इस बार कांग्रेस ने कड़ी चुनौती देने का दावा किया है। राज्य में सत्ता में शामिल कांग्रेस ने भरोसा जताया है कि महाविकास आघाड़ी के अन्य दलों का भी उसे लाभ मिलेगा। लेकिन चुनाव प्रचार शुरू होने के साथ ही कांग्रेस पर कथित परंपरागत गुटबाजी प्रभाव दिखाने लगी है। स्थिति यह है कि कांग्रेस उम्मीदवार इस चुनाव मैदान में अकेले पड़ते दिख रहे हैं। कांग्रेस के एकजुटता के दावों का प्रभाव कहीं नहीं दिख रहा है।

अपेक्षित तैयारी नहीं

महाविकास आघाड़ी के कुछ पदाधिकारी ही कहने लगे हैं कि चुनाव प्रबंधन की कमी है। अपेक्षित तैयारी नहीं हो पाई है। कांग्रेस उम्मीदवार अभिजीत वंजारी की राजनीतिक छवि का भी असर है। वंजारी के पिता गोविंदराव वंजारी विधायक रहे हैं। लेकिन अभिजीत  विधानसभा स्तर के चुनाव प्रबंधन में कम पड़े। 2004 में गोविंदराव वंजारी दक्षिण नागपुर से विधानसभा का चुनाव जीते थे। लेकिन विधायक पद की शपथ लेने के पहले ही उनका निधन हो गया। बाद में इस क्षेत्र के लिए उपचुनाव में कांग्रेस के तत्कालीन प्रभावशाली नेताओं ने दीनानाथ पडोले को उम्मीदवार बनाया। अभिजीत ने निर्दलीय चुनाव लड़कर कांग्रेस से बगावत की थी। उस चुनाव में पडोले जीते थे। अभिजीत के चुनाव लड़ने के निर्णय को कांग्रेस के नेताओं ने अपरिपक्व ठहराया था। बाद में अभिजीत को दक्षिण नागपुर में कांग्रेस के ही बड़े नेता का अंदरूनी विरोध झेलना पड़ा। स्थिति यह हुई कि अभिजीत ने दक्षिण छोड़ पूर्व से दांव आजमाया। पार्टी के भीतर ही पाला बदल हुआ। वह पूर्व मंत्री  सतीश चतुर्वेदी के साथ जुड़े। चतुर्वेदी के एचबी टाउन स्थित कार्यालय से अभिजीत ने राजनीति काे बल देने का प्रयास किया। 2014 के चुनाव में टिकट भी पाया। लेकिन पूर्व में वे पराजित हो गए। बाद में उन्होंने फिर से पाला बदला। पडोले के लिए टिकट कटवाने वाले नेता से फिर से जुड़े। लेकिन अपनी राजनीति को ताकत नहीं दे पाए। संगठन में शहर स्तर के सामान्य पदाधिकारी बनकर रह गए। 2019 के चुनाव में वे विधानसभा चुनाव की उम्मीदवारी पाने से दूर रहे।

अब क्या

फिलहाल कांग्रेस को अधिक ताकत दिखाने की जरूरत है। लेकिन अभिजीत के लिए बड़े नेता एकजुट नहीं हो पा रहे हैं। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, राकांपा अध्यक्ष शरद पवार कोल्हापुर में स्नातक सीट के लिए प्रचार करने पहुंचे, लेकिन अब तक यहां के लिए समय नहीं निकाल पाए हैं। अभिजीत का नामांकन दर्ज कराने को लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी थी। प्रदेश अध्यक्ष बालासाहब थोरात तय समय से 3 दिन बाद नामांकन दर्ज कराने के लिए यहां पहुंचे थे। कांग्रेस में उम्मीदवार के लिए अभिजीत के बजाय अन्य का नाम चलाने वाले कुछ कांग्रेस नेता व मंत्री अब में चुनाव कार्य में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि एक दो दिन में नई राह खुल सकती है।


 

Created On :   22 Nov 2020 1:28 PM GMT

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