अब संसद से सड़क तक विरोध करने के मूड में कांग्रेस, विपक्ष को साथ आने की अपील

Congress will protest from Parliament to the street on Maharashtra issue
अब संसद से सड़क तक विरोध करने के मूड में कांग्रेस, विपक्ष को साथ आने की अपील
अब संसद से सड़क तक विरोध करने के मूड में कांग्रेस, विपक्ष को साथ आने की अपील

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कांग्रेस ने महाराष्ट्र में सरकार गठन के मुद्दे पर संसद से सड़क तक विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में आज यहां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ हुई बैठक में यह फैसला लिया गया। जानकारी के अनुसार कांग्रेस अपने अन्य सहयोगी दलों के साथ सरकार द्वारा मंगलवार को संविधान दिवस के अवसर पर बुलाए गए संयुक्त सत्र का भी बहिष्कार करेगी। सूत्रों का कहना है कि पार्टी सदन के संयुक्त सत्र का बहिष्कार करके यह संदेश देना चाहती है कि एक ओर मोदी सरकार संविधान दिवस मनाने का नाटक कर रही है और दूसरी ओर महाराष्ट्र में संविधान की हत्या कर रही है। कांग्रेस ने शिवसेना, टीएमसी, डीएमके, वामदलों सहित अन्य दलों से भी संयुक्त सत्र का बहिष्कार करने की अपील की है।  
 

सदन में शक्ति परिक्षण से ही तय होगा सरकार का भविष्य, जानिए जानकारों की राय

महाराष्ट्र कि राजनीति में नया भूकंप लानेवाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उपमुख्यमंत्री अजित पवार की भूमिका को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। अब जब राकांपा ने अजित के स्थान पर नया विधायक दल का नेता चुन लिया है तो ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि क्या अजित पवार अभी भी राकांपा के विधायक दल के नेता बने रहेंगे या राकांपा ने जिसे दोबारा विधायक दल का नेता चुना है उसे पार्टी का नेता माना जाएगा? जवाब में हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बीजी कोल्से पाटील कहते हैं कि लोकतांत्रिक मूल्यों के नजरिए से अजित पवार को विधायक दल का नेता नहीं माना जा सकता है। हर पार्टी को लोकतंत्र में अपना नेता दोबारा चुनने का अधिकार होता है। लेकिन तकनीकी रुप से विधानसभा अध्यक्ष अजित के दावे को स्वीकार कर सकता है। अब विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय सही है या नहीं इसका अदालत में न्यायिक परीक्षण हो सकता है। उन्होंने कहा कि जब तक न्यायिक परीक्षण होगा तब तक नई सरकार का कार्यकाल पूरा हो जाएगा। कोल्से पाटील ने कहा कि जैसे जनता किसी को गलती से भी चुन लेती है तो उसे पांच साल का कार्यकाल मिल ही जाता है। इसके विपरीत राज्य के पूर्व महाधिवक्ता श्रीहरि अणे का कहना है कि गटनेता के चुनाव को लेकर कोई विशेष नियम नहीं है। यह चुनाव विधायकों के बहुमत के आधार पर होता है। सिर्फ एक बार ही विधायक दल का नेता नहीं चुना जाता, जहां तक बात सरकार के गठन की है तो इसका सारा दारोमदार फ्लोर टेस्ट के दौरान मिलनेवाले बहुमत पर होता है।

मानना होगा अजित पवार का आदेश

हाईकोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश व वरिष्ठ अधिवक्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि फिलहाल अजित पवार को ही अपनी पार्टी का विधायक दल का नेता माना जाएगा। क्योंकि अभी भी वे अपनी पार्टी में बने हुए हैं। यदि पार्टी को दोबारा विधायक दल का नेता चुनना है तो फिर से उतने ही निर्वाचित विधायकों के जरिए विधायक दल के नेता को चुना जाएगा जितने विधायकों ने पहले चुना था। इस लिहाज से अजित पवार के आदेश को सभी विधायकों को मानना होगा अन्यथा वे अपात्र ठहराए जा सकते हैं। 

फिर से हो सकता है विधायक दल नेता का चुनाव

जबकि पूर्व एडिशनल सालिसिटर जनरल राजेंद्र रघुवंशी का कहना है कि सदन में बहुमत परिक्षण यानी फ्लोर टेस्ट में यह देखा जाएगा कि अजित पवार के पास उपमुख्यमंत्री के रुप में काम करने का बहुमत है कि नहीं। चूंकी उनकी पार्टी ने दूसरे को विधायक दल का नया नेता चुन लिया है लिहाजा अब अजित पवार को विधायक दल का नेता नहीं माना जा सकता। पार्टी के पास दोबारा विधायक दल का नेता चुनने का अधिकार होता है। इस पूरे मामले में राज्यपाल की भूमिका संविधान के अनुरुप नहीं है। वहीं जाने-माने अधिवक्ता उदय वारुंजेकर का कहना है कि बहुमत के आधार पर दूसरा विधायक दल का नेता चुना जा सकता है। ऐसा कोई नियम नहीं है, जो पार्टी को दोबारा विधायक दल का नेता चुनने से रोकता हो।

Created On :   25 Nov 2019 10:18 PM IST

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