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हाईकोर्ट : कालाबाजारी को लेकर सरकार से पूछा - क्या अस्पतालों में उपलब्ध करा सकते हैं कोरोना की दवाईयां
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कोरोना मरीज के इलाज के लिए इस्तेमाल की जानेवाली दवाइयां व इंजेक्शन सीधे अस्पतालों व क्वारेंटाइन केंद्रों में उपलब्ध कराने की मांग से जुडी याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। इस विषय पर आल महाराष्ट्र ह्यूमेन राइट वेलफेयर एसोसिएशन नामक गैर सरकारी संस्था ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि कोरोना के इलाज में लगनेवाली दवाई रेमडीसिवर व इंजेक्शन सिर्फ चुनिंदा केमिस्ट के पास उपलब्ध है। जिससे इसकी कालाबाजारी हो रही है। मरीजों के परिजन को एमआरपी से अधिक कीमत पर यह दवाइयां लेनी पड़ती हैं और इसके लिए उन्हें यहां वहां भटकना भी पड़ता है। इसलिए यह दवा सीधे कोरोना का इलाज करनेवाले सरकारी व निजी अस्पताल तथा क्वारेंटाइन केंद्रों में सीधे पहुचाई जाए जिससे मरीजों तक समय पर यह दवा उपलब्ध हो सके। शुक्रवार को यह याचिका न्यायमूर्ति के तातेड़ व न्यायमूर्ति एन आर बोरकर की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता प्रशांत पांडे ने कहा कि कोरोना के इलाज में इस्तेमाल होनेवाले ड्रग्स के चुनिंदा केमिस्ट के पास मिलने के कारण मरीजों के परिजन को काफी परेशानी होती है है। दवा लाने में काफी वक़्त और पैसा बर्बाद होता है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि क्या राज्य सरकार कोरोना मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होनेवाली दवा सीधे अस्पतालों में उपलब्ध कराने की इच्छुक है। इसकी जानकारी हलफनामे में दी जाए। खंडपीठ ने फिलहाल याचिका पर सुनवाई 2 अक्टूबर 2020 तक के लिए स्थगित कर दी है।
दो शिफ्ट में काम करें निचली अदालते
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई की निचली अदालतों को दो शिफ्ट में काम करने का निर्देश जारी किया है। हाईकोर्ट की प्रशासकीय कमेटी का यह निर्देश सोमवार से लागू होगा। अब तक निचली अदालतों का कामकाज दोपहर दो बजे तक खत्म हो जाता था लेकिन अब अदालतों को दो शिफ्ट में काम करना होगा। पहली शिफ्ट सुबह साढ़े दस बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक होगी दूसरी शिफ्ट दोपहर दो बजे से शाम साढ़े पांच बजे तक होगी। हाईकोर्ट ने निचली अदालतों को मुकदमों की सुनवाई शुरु करने को कहा है। इसके साथ ही अदालतों को महिलाओं व बच्चों के गुजारे भत्ते व घरेलू हिंसा कानून से जुड़े मामलों की सुनवाई को प्राथमिकता देने को कहा गया है।
जुर्माना न भरने पर जेल की सजा दोषसिद्ध नहीः हाईकोर्ट
जुर्माने की रकम न भरने के एवज में कारावास की सजा कानून के अंतर्गत दोषसिद्धि व दंड नहीं है। गुरुवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह बात कहते राज्य सरकार को 18 साल से जेल में बंद एक कैदी के आपात पैरोल के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया है। महाराष्ट्र संगठित अपराध कानून (मकोका) के तहत दोषी पाए गए कैदी को निचली अदालत ने 14 साल के कारावास व 15 लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। जुर्माने की रकम न भरने पर 10 साल तक और जेल में रहने का निर्देश दिया गया था। कैदी ने 14 साल के कारावास की सजा पूरी कर ली हैऔर जुर्माना न भरने के चलते चार साल और सजा काट चुका है। और कोरोना के प्रकोप के मद्देनजर आपात पैरोल पर रिहा करने का आग्रह किया है। न्यायमूर्ति एस एस शिंदे व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ के सामने कैदी की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान सरकारी वकील ने कैदी के आवेदन का विरोध किया। उन्होंने कहा कि आरोपी को विशेष कानून माने जाने वाले मकोका कानून के तहत दोषी पाया गया है। इसलिए सरकार की अधिसूचना के तहत वह आपात पैरोल का हकदार नहीं है। इसके अलावा उसने अभी तक जुर्माना न भर पाने के एवज में कारावास की सजा नहीं पूरी की है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि कैदी ने मकोका कानून के तहत दी गई सजा को भुगत चुका है। कैदी ने जुर्माना न भरने के चलते 10 में से चार साल की सजा भी भुगत ली है। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जुर्माने की रकम न भरने के चलते कारावास का दंड अपने आप में कानून के तहत सजा अथवा दोषसिद्धि नहीं है। यह जुर्माना न भरने का परिणाम है। इसके अलावा इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि कैदी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। उसकी मां मजदूरी करके जीवनयापन कर रही है। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने राज्य सरकार कैदी के आपात पैरोल के आवेदन पर विचार करने को कहा।
मंहगा पड़ा अदालती नोटिस लेकर गए पुलिसकर्मी से दुर्व्यवहार
नोटिस लेकर घर गए पुलिस कर्मी के साथ बदसलूकी के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। पुलिसकर्मी के साथ दुर्व्यवहार करनेवाले आरोपी एकनाथ गवस पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। गुरुवार को हाईकोर्ट ने आरोपी को जुर्माने की रकम महाराष्ट्र पुलिस कल्याण निधि में जमा करने का निर्देश दिया है। चूंकि इस मामले के आरोपी को पुलिस हिरासत में लेकर पूछताछ की जरुरत नजर नहीं आती है। इसलिए उसे दस हजार रुपए के निजी मुचलके पर अग्रिम जमानत दी जाती है। गवस ने मामले में गिरफ्तारी की आशंका के चलते कोर्ट में अग्रिम जमानत आवेदन दायर किया था।
दरअसल पुलिस नाइक आर बी डिसूजा आरोपी के यहां आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 41 ए के तहत नोटिस लेकर गए थे लेकिन आरोपी ने नोटिस स्वीकार नहीं किया। यही नहीं आरोपी व उसके घरवालों ने पुलिसकर्मी के साथ बदसलूकी शुरु कर दी।न्यायमूर्ति भारती डागरे ने इसे गैर जिम्मेदाराना व्यवहार माना और आरोपी पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जिसे पुलिस कल्याण निधि में जमा करने व जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट में सरकार ने दी सफाई- सहकारी समितियों पर राकांपा-कांग्रेस के कब्जे की बात गलत
गुरुवार को राज्य सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट में उस आरोप का खंडन किया है जिसके तहत याचिका में कहा गया है कि सहकारी समितियों में राष्ट्रवादी कांग्रेस व कांग्रेस पार्टी के लोग काबिज है। इसलिए वहां की प्रबंध कमेटी के कार्यकाल को बढ़ाया गया है। जबकि ग्रामपंचायत में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े लोग हैं। इसलिए वहां पर प्रशासकों की नियुक्ति की गई है। सरकार की ओर से सहकारिता विभाग के अधिकारी ने हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर इस आरोप को आधारहीन बताया और इसका खंडन किया है। सरकार ने यह हलफनामा को-ऑपरेटिव सोसायटियों की प्रबंध कमेटी का कार्यकाल बढ़ाने के खिलाफ दायर याचिका के जवाब में दायर किया गया है। अधिवक्ता सतीश तलेकर के मार्फत दायर याचिका में मांग की गई है कि जिन को-ऑपरेटिव सोसायटी की प्रबंध कमेटी का कार्यकाल खत्म हो गया है वहां पर भी प्रशासक की नियुक्ति करने का निर्देश दिया जाए। इसके साथ ही याचिका में को-ऑपरेटिव सोसायटी के कार्यकाल बढ़ाने के निर्णय को राजनीति से प्रेरित व अवैध बताया गया है। न्यायमूर्ति एस जे काथावाला की खंडपीठ के सामने राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुम्भकोणी ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि ग्रामपंचायत लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई संवैधानिक निकाय है। जबकि को-ऑपरेटिव सोसायटी की प्रबंध समिति स्वैच्छिक निकाय है। इसलिए सरकार के पास इनके विषय में हस्तक्षेप करने का सीमित अधिकार है। इसलिए सरकार की ओर से को-ऑपरेटिव सोसायटी का कार्यकाल बढ़ाने व ग्रामपंचायत में प्राशासक की नियुक्ति का निर्णय वैध है। याचिका में लगाए गए आरोप आधारहीन है। याचिका के मुताबिक सरकार ने हाउसिंग सोसाईटी,डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक व सुगर फैक्टरी के चुनाव को स्थगित कर दिया है और इनकी प्रबंध कमेटी के कार्यकाल को तीन माह के लिए बढ़ा दिया है।
Created On :   18 Sept 2020 5:47 PM IST