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3000 लोगों को रोशनी का इंतजार लगातार घट रहे नेत्रदान के आंकड़े
डिजिटल डेस्क, नागपुर। जिले में नेत्रदान की स्थिति काफी चिंतनीय है। सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जिले में राष्ट्रीय अंधत्व निवारण कार्यक्रम अंतर्गत जिले में हर साल 500 नेत्रदान का लक्ष्य दिया है, लेकिन जिले ने इसे कभी भी पूरा नहीं किया है। 2018-19 में 496 नेत्रदान हुआ था। वहीं इस चालू साल में 127 नेत्रदान हुए हैं। जिले में 3000 लोग रोशनी पाने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन कई कारणों के चलते नेत्रदान का प्रमाण कम है। इसलिए जागरूकता की आवश्यकता बताई जा रही है। नेत्रदान को लेकर जागरूकता का अभाव है। इस कारण नेत्रदान कार्यक्रम प्रभावी रूप से नहीं चल पा रहा है। 2018-19 में 496, 2019-20 में 491, 2020-21 में 93 और 2021 में अब तक 127 नेत्रदान हो चुके हैं। बता दें कि नेत्रदान की प्रक्रिया के दौरान केवल कार्निया लिया जाता है। यह आंकड़े मृतदेह का कार्निया निकालने के हैं। मृत्यु के 6 घंटे के भीतर कार्निया निकालने पर ही काम में आता है। इसे अधिकतर 7 दिन में प्रत्यारोपित किया जाता है। हालांकि 28 दिन तक रखा जा सकता है, लेेकिन कार्निया के टिश्यूज डेड होने लगते हैं। एक समय ऐसा आता है कि यह किसी को रोशनी नहीं दे सकते। जिले के 6 केंद्रों में नेत्रदान किया जाता है। इसमें मेडिकल, मेयो, महात्मे आय बैंक, लता मंगेशकर अस्पताल, सूरज अस्पताल, माधव नेत्रालय शामिल हैं, जहां की टीम द्वारा नेत्रदान व प्रत्यारोपण की प्रक्रिया पूरी की जाती है।
नेत्रदान करने के बाद हर नेत्र उपयोगी होगा, इसकी गारंटी नहीं होती। सबसे पहले तो मृत्यु के 6 घंटे के भीतर कार्निया निकालना जरूरी होता है। इसलिए मृत्यु होने के बाद तुरंत जानकारी मिलने पर ही यह संभव होता है। इसके लिए मृतक संकल्प लेनेवाला हो या नहीं यह जरूरी नहीं होता। यह परिजनों पर निर्भर होता है। इसके लिए किसी पर जाेर-जबर्दस्ती नहीं की जा सकती है। नेत्रदान का संकल्प लेकर मृत व्यक्तियों के परिजन इसकी जानकारी देंगे या नहीं, इस बात की भी गारंटी नहीं होती। क्योंकि मृत्यु के बाद गमगीन माहौल होता है, उस समय यह जरूरी नहीं कि नेत्रदान की याद आ जाए। इसलिए संकल्प करने के बाद भी अधिकतर मृतक की आंखें नहीं मिल पातीं हैं।
सभी आंखें नहीं देतीं रोशनी
मृत्यु के बाद निकाले गए सभी नेत्र उपयोगी होंगे, यह जरूरी नहीं है। इसका पता परीक्षण के बाद ही चलता है। इनमें से कुछ इंफेक्शन के कारण रोशनी नहीं दे सकते। कुछ में अल्सर पाया जाता है। कुछ दूसरी बीमारियों के चलते काम नहीं आते। वहीं कुछ कार्निया चिपके हुए होते हैं। ऐसे नेत्र उन लोगों के काम आते हैं, जिनकी एक आंख अच्छी होती है, लेकिन दूसरे में गड्ढा या आंख नहीं होती। ऐसे लोगों को आंख लगाई जाती हैं, ताकि दोनों आंखें एक जैसी प्राकृतिक दिखाई दे सके। इस कारण नेत्रदान का आंकड़ा भले ही अधिक हो, लेकिन प्रत्यारोपण की संख्या कम होती है। 2018-19 में 496 नेत्रदान हुआ था, इनमें से केवल 144 कार्निया का प्रत्यारोपण किया गया था। 2019-20 में 491 में से 164 प्रत्यारोपण, 2020-21 में 93 में से 32 प्रत्यारोपण और चालू वर्ष 2021-22 में अप्रैल से नवंबर 20 तक 127 में से 34 प्रत्यारोपण हो चुके हैं। 2020-21 में कोरोना के कारण सर्वाधिक कम नेत्रदान व प्रत्यारोपण हुआ है।
किसी तरह की दुर्घटना में मृत्यु होने पर मामला पुलिस में दर्ज होता है। कागजी कार्रवाई से लेकर पोस्टमार्टम तक सारी प्रक्रिया पूरी करने में 10 घंटे से अधिक समय लगता है। इसलिए दुर्घटनाग्रस्तों की आंखें किसी को रोशनी नहीं देती। सूत्रों के अनुसार, शहर के सरकारी व निजी अस्पतालों में सालाना 200 से अधिक दुर्घटना व विविध कारणों से दम तोड़ देते हैं। लेकिन पुलिस कार्रवाई में मामला उलझ जाता है। इसलिए जिला समिति की ओर से पुलिस विभाग को पत्र दिया था, लेकिन इसकी सकारात्मक पहल नहीं की गई। समिति ने दुर्घटना के तुरंत बाद मृतक के नेत्र देने की सिफरिश की थी। राज्य में 1976-77 में अंधत्व नियंत्रण कार्यक्रम शुरू हुआ था। जिले में 1983 से इसकी शुरुआत हुई। 2000 तक नेत्रदान का प्रमाण काफी कम था। 2001 से 2020 तक 2500 लोगों को रोशनी मिलने का अनुमान है। समिति द्वारा शिविर व अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
पूर्ववत हो रही स्थिति
डॉ. दीपक थेटे, कार्यक्रम अधिकारी जिला अंधत्व नियंत्रण कार्यक्रम अंतर्गत जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाता है। जिले को सालाना 500 का लक्ष्य दिया गया है। इस हिसाब से यहां की स्थिति समाधानकारक है। कोरोना के कारण प्रमाण कम हुआ था, लेकिन अब स्थिति पूर्ववत होने लगी है। स्वयं प्रेरित होकर नेत्रदान के लिए आगे आना चाहिए।
Created On :   24 Nov 2021 3:48 PM IST