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जीव की इच्छा व भगवान का सामर्थ्य मिल जाए तो प्रभु का अवतार होता है -स्वामी प्रज्ञानानंद
डिजिटल डेस्क, नागपुर। श्री निरंजन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामीश्री प्रज्ञानानंद गिरिजी महाराज ने गौ संवर्धन व संरक्षणार्थ श्रीमद् भागवत श्याम कथा श्री श्यामधाम, न्यू नंदनवन ले-आउट में कथा में कहा कि प्रभु के पास मन ही है, कोई इच्छा नहीं है। जीव की इच्छा व भगवान का सामर्थ्य मिल जाए तो भगवान का अवतार होता है। परमात्मा अवतार भी ले सकता है और जन्म भी ले सकता है। वही निर्गुण है और वही सगुण है। निर्गुण और सगुण में कोई अंतर नही है। भगवान ने मध्य का मार्ग अपनाया है। आयोजन के मुख्य यजमान अशोक अग्रवाल व शोभा अग्रवाल परिवार है। व्यासपीठ का पूजन अशोक अग्रवाल, शोभा अग्रवाल, स्वामी पद्मासेन जी महाराज, दिनेश अग्रवाल, आलोक अग्रवाल, सीए सुधा खोवाल, सीमा साव, रुचि ककरानिया, रेखा अग्रवाल, वर्षा अग्रवाल, बीना अग्रवाल, निकिता अग्रवाल, कविता जायसवाल, छाया जायसवाल, गणेश जायसवाल, श्री चोखानी, अशोक बंसल, प्रमोद सौसरवाले, राजू ठाकुर, गणेश शर्मा ने किया।
विद्या, आयुष्य, यश और सामर्थ्य का मूल है अभिवादन
उन्होंने कहा कि विद्या, आयुष्य, यश और सामर्थ्य का मूल है-अभिवादन। हमारी संस्कृति अभिवादन की संस्कृति है। जहां धरती से आकाश तक प्रत्येक कण प्रणम्य है। दृश्य-अदृश्य जो कुछ भी है, वह भगवदीय अभिव्यक्ति ही है। अतः सबके प्रति सम्मान की भावना रखें। अभिवादन सदाचार का मुख्य अंग है, उत्तम गुण है। इसमें नम्रता, आदर, श्रद्धा, सेवा एवं शरणागति का भाव अनुस्यूत रहता है। बड़े आदर के साथ श्रेष्ठजनों को प्रणाम करना चाहिए और छोटों को आशीर्वाद देना चाहिए। हाथ जोड़ने से शरीर के रक्त संचार में प्रवाह आता है। मनुष्य के आधे शरीर में सकारात्मक आयन और आधे में नकारात्मक आयन विद्यमान होते हैं। हाथ जोड़ने पर दोनों आयनों के मिलने से ऊर्जा का प्रवाह होता है। जिससे शरीर में सकारात्मकता का समावेश होता है। किसी को प्रणाम करने के फलस्वरूप आशीर्वाद की प्राप्ति होती है और आध्यात्मिक विकास होता है।
किसी व्यक्ति का अपमान भगवान का अपमान है
भगवान कपिल अपनी माता देवहूति को उपदेश देते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति किसी भी व्यक्ति का अपमान करता है, तिरस्कार करता है, वह मेरा ही अपमान है, क्योंकि सभी प्राणियों के अंदर उसकी आत्मा के रूप में मैं ही रहता हूं। किसी भी व्यक्ति को अपमानित करने वाला या किसी भी प्रकार से दुख देने वाला व्यक्ति यदि मेरी पूजा करता है, तो उसकी पूजा ढोंग है। दिखावा है, उसे मैं स्वीकार नहीं करता। अतः सभी प्राणियों का आदर करना, सभी का सम्मान करना, दीन-दुखियों पर दया करना, सबको समान रूप से देखना, यही ईश्वर की सच्ची पूजा है।
मैत्रीभाव रखना यथार्थ में अहिंसा
संसार के प्रत्येक प्राणी में मैत्री भाव रखना ही यथार्थ में अहिंसा है तथा यही क्षमाभाव है। प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव सिखाता है धर्म, यही अहिंसा है। हम मानव ही नही धरती पर जितने जीव हैं सभी पर दया करें, सभी से प्रेम करें, तभी पृथ्वी पर पाप कम होगा।
Created On :   20 Dec 2019 12:55 PM IST