डेयरियों में पड़ों के साथ क्रूरता, ज्यादा दूध की चाह में पैदा होने के साथ ही उतार देते हैं मौत के घाट

Cruelty with the feet in dairies, being born with a desire for more milk, they take away death
डेयरियों में पड़ों के साथ क्रूरता, ज्यादा दूध की चाह में पैदा होने के साथ ही उतार देते हैं मौत के घाट
डेयरियों में पड़ों के साथ क्रूरता, ज्यादा दूध की चाह में पैदा होने के साथ ही उतार देते हैं मौत के घाट

डिजिटल डेस्क जबलपुर । डेयरी उद्योग में संचालकों द्वारा बेहतर क्लीनिंग, गाय, बछड़ों और पड़ों की बेहतर देखभाल की बात तो की जाती है, पर सच्चाई यही है कि यहाँ पर पड़ों के साथ निर्ममता बरती जाती है। पैदा होने के साथ पड़ों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। यह एक अपराध है जिसमें जन्म देने वाली माँ के साथ तो निष्ठुरता बरती ही  जा रही है साथ ही उसके बच्चे को जन्म के साथ बेरहमी से मारा भी जा रहा है। 300 के करीब डेयरियों में शायद ही किसी यूनिट में ऐसा नहीं होता है कि पड़ों को नहीं मारा जाता है, सभी में यह क्रूरता वर्षों से जारी है। 
 शहर में डेयरियों से आँख बंद कर, भरोसे के साथ दूध लेने वाले ग्राहकों को यह पता होना चाहिए कि किस अंदाज में अमानवीय कृत्यों को यहाँ पर अंजाम दिया जाता है। कई संस्थाओं ने इसका बीते सालों में विरोध किया और जिम्मेदारों तक अपनी बात पहुँचाई पर अफसोस इस दिशा में एक मामला आज तक दर्ज नहीं हो सका है। जन्म होने के साथ किसी बच्चे को उसकी माँ के दूध से दूर रखना गुनाह है तो सोचिए जन्म के साथ मौत के घाट उतार देने की कितनी क्रूरता डेयरियों में की जा रही है। जिनके पास ऐसे सभी कृत्यों को रोकने की जिम्मेदारी है लगता है वे भी जानवरों की तरह मूक हो चुके हैं। ज्यादा दूध उत्पादन और ज्यादा लाभ के  आगे इंसानियत को पूरी तरह से दफन कर दिया गया है। 
इसलिए इनकी आवश्यकता नहीं 
कोई भी स्तनधारी जीव (प्रसूति उपरांत) अपने बच्चे को जब जन्म के साथ देखता है तो उसमें मातृत्व भाव जागता है जिससे दूध स्रवित होना बढ़ता है।  भैंसों में दूध थनों से ज्यादा निकले या पूरा निकल सके इसके लिए  विकल्प के तौर पर ऑक्सीटोसिन हार्मोन का इस्तेमाल होता है। इन हालातों में पड़ों की जन्म के साथ ही कोई जरूरत नहीं समझी जाती और उसे मार दिया जाता है। यह ऑक्सीटोसिन हार्मोन के अत्यधिक इस्तेमाल का भी एक उदाहरण और उसका नकारात्मक असर  है। 
कुछ इस तरह की बेरहमी
यह बात सुनने, पढऩे में कुछ असहज जरूर लगे, लेकिन यह सच है कि डेयरी में जैसे ही पड़े का जन्म होता है उसे एक एक बड़े पात्र में डाल दिया जाता है। इसके बाद उसको माँ से अलग कर कुछ देर बाद कत्ल होने के लिए  बेच दिया जाता है। यह तरीका यदि नहीं अपनाया जाता तो किसी तरह की मजबूरी में भी पड़े के जीवित रहने पर उसको निर्जलीकरण, भारी कुपोषण से गुजरना पड़ता है जिससे वह खुद मर जाता है। कई तरह की निर्ममता से  पड़ों को जन्म के साथ गुजरना पड़ता है।

Created On :   11 Aug 2020 2:04 PM IST

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