बेटियां हैं अहम, उन्हें सम्मान देने का है खास दिन

Daughters are important, a special day to honor them
बेटियां हैं अहम, उन्हें सम्मान देने का है खास दिन
आज डॉटर-डे बेटियां हैं अहम, उन्हें सम्मान देने का है खास दिन

डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे। कहा जाता है कि बेटे अपनी किस्मत खुद बनाते हैं, लेकिन बेटियां तो अपने साथ ही किस्मत लेकर आती हैं, इसलिए जिस घर में बेटी का जन्म होता है, तो माना जाता है कि घर में लक्ष्मी का आगमन हुआ है। सितंबर का अंतिम रविवार बेटियों के लिए समर्पित होता है। यह दिन बेटी को सम्मान देने का खास दिन है। समाज में बेटा और बेटी के बीच का फर्क खत्म करने के लिए हर साल बेटी दिवस (डॉटर-डे) मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने 2012 में इसकी शुरुआत की थी। बेटियों को लेकर कई देशों में अलग-अलग धारणाएं बनी हुई हैं। संकुचित मानसिकता के चलते कोख में और जन्म के बाद बेटियों के साथ अन्याय-अत्याचार होता रहता है। एक ओर दुनिया मंगल पर घर बसाने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर आज भी देश-दुनिया में संकुचित मानसिकता वाले लोग बेटियों के प्रति समान भाव नहीं बना पाए हैं, फिर भी भेदभाव का बंधन दूट रहा है। लोग गर्व से कह रहे हैं कि हां हमारे घर लक्ष्मी आई है। दैनिक भास्कर बेटियों को अहम मानता है। हमने यहां कुछ बेटियों को स्थान दिया है, जिन्होंने प्रेरणात्मक कार्य कर देश, समाज और अपने परिवार का नाम रोशन किया है।

नागपुर जिले की रामटेक तहसील निवासी निकिता महाजन नागपुर की माझी मेट्रो ट्रेन चलाने वाली पहली महिला चालक हैं। निकिता ने किट्स कॉलेज रामटेक से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा पूरी की। वह नौकरी की तलाश में थीं। इस दौरान उनकी नजर मेट्रो के एक विज्ञापन पर पड़ी। उन्होंने मेट्रो की परीक्षा देने का निर्णय लिया। इस बीच उन्होंने स्पर्धा परीक्षाओं की तैयारी भी शुरू की थी। मेट्रो की परीक्षा दी, तो वह पास हो गईं। मेट्रो ट्रेन ऑपरेटर के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। इसके बाद उन्हें दिल्ली में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। वहां अनेक महिलाएं ट्रेन का परिचालन कर रही थीं। इससे निकिता का आत्मविश्वास बढ़ा। वहां से लौटने के बाद निकिता ने नागपुर मेट्रो में चालक के रूप में जिम्मेदारी निभानी शुरू की। मेट्रो ट्रेन के चालक के रूप में सेवा देते हुए उन्होंने यात्री सुरक्षा को सर्वाेपरि माना है।

1952 का माइन एक्ट कहता है कि महिलाओं को अंडर ग्राउंड माइंस में काम करने की अनुमति नहीं है और वे केवल ओपनकास्ट माइंस में ही काम कर सकती हैं, लेकिन जब 2016 में धनबाद के इंडियन स्कूल ऑफ माइंस ने घोषणा की कि अब वे माइनिंग इंजीनियरिंग में लड़कियों को भी दाखिला देंगे, तो इस फैसले का समर्थन देश की कई नामी संस्थानों ने किया। इस निर्णय से पहले ही बिना किसी बदलाव की प्रतीक्षा किए प्रशासन को चुनौती देकर माइनिंग इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने वाली पहली बेटी डॉ. चंद्राणी प्रसाद वर्मा हैं। जो 1999 में ही माइनिंग इंजीनियर बनीं। चंद्राणी के पिता माइनिंग इंजीनियर थे, इसलिए उनका रुझान इस ओर था, लेकिन चंद्राणी को इस क्षेत्र में प्रवेश कराने में माइन एक्ट के कारण रुकावटें आ रही थीं। किसी भी कॉलेज ने उन्हें इस पाठ्यक्रम के लिए अनुमति नहीं दी, इसलिए न्यायालय की मदद ली गई। 1996 में न्यायालय ने चंद्राणी के पक्ष में फैसला सुनाकर भेदभाव मिटा दिया। इस जीत के बाद चंद्राणी ने 1999 में श्री रामदेवबाबा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट नागपुर से माइनिंग इंजीनियरिंग की डिग्री ली। 2006 में मास्टर डिग्री पूरी की। 2015 में पीएचडी पूरी की। उन्होंने 2 महीने के भीतर कोयले के 600 सैंपल की जिओ-टेक्निकल टेस्टिंग की। सीएसआईआर-केंद्रीय खनन और ईंधन अनुसंधान संस्थान में पहली महिला माइनिंग वैज्ञानिक के रूप में उनका चयन हुआ।

राज्य के धुलिया जिले के शिरपुर गांव में जन्मी कमलाताई का मायके का नाम यमुना कृष्ण मोहोनी था। 12 साल की उम्र में गुरुराव होस्पेट से उनका विवाह हुआ। जब वें 15 साल की थीं, तब पति की मौत हो गई। उनका भाई उन्हें लेकर नागपुर आया। आगे की शिक्षा के लिए पुणे भेजा गया, लेकिन कमलाताई वहां नहीं रुकीं। वह किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं। वह नागपुर लौटीं और ब्रिटिशकालीन डफरीन अस्पताल में नर्सिंग कोर्स में प्रवेश लिया। यहां एक भारतीय मरीज को कागज-पेन देने के कारण ब्रिटिश डॉक्टर ने फटकार लगाई। इसका उन पर गहरा असर हुआ। 1918 से 1920 तक शिक्षा लेने के बाद उन्होंने सीताबर्डी में भारतीय महिलाओं के लिए 4 बिस्तरों वाला मातृसेवा संघ शुरू किया। अब मातृसेवा संघ की महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत अनेक राज्यों में 20 से अधिक शाखाएं हैं। नर्सिंग स्कूल, विकलांगों के लिए स्कूल, अनाथालय, समाजकार्य संस्थान शुुरू किया। 1931 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया। 1980 में उन्हें जमनालाल बजाज पुरस्कार से नवाजा गया। 15 नवंबर 1981 को उन्होंने दुनिया से विदा ली।

जब पूरा देश कोरोना की दूसरी लहर से लड़ रहा था, तब नागपुर की बेटी ने अपना दमखम दिखाते हुए महिला फाइटर पायलट बनने का गौरव प्राप्त किया। 2020 में अंतरा मेहता महाराष्ट्र से पहली फाइटर पायलट बनीं। श्री रामदेवबाबा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट नागपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कंबाइंड डिफेंस सर्विसेस यानी सीडीएस परीक्षा पास की। इसके बाद इंडियन एयरफोर्स ट्रेनिंग एकेडमी में प्रवेश लिया। पासिंग आउट परेड के बाद देश की 10 महिला पायलटों में उनका शुमार हुआ। अंतरा अपने बैच की पहली महिला अधिकारी थीं, जो फाइटर स्ट्रीम के लिए चुनी गईं।

राज्य की पहली महिला एंबुलेंस चालक नागपुर की बेटी हैं। विषया लोणारे डागा स्मृति महिला अस्पताल नागपुर में सेवा दे रही हैं। बचपन से ही वाहन चलाने की इच्छा रखने वाली विषया ने कई भारी वाहन चलाए हैं। राज्य परिवहन निगम की बसें भी उन्होंने चलाई हैं, लेकिन यहां स्थायित्व नहीं मिल पाया। उनके पास हैवी व्हीकल चलाने का लाइसेंस है, इसलिए उन्होंने परीक्षाएं दीं और पास होती चली गईं। जब एंबुलेंस चलाने की बात सामने आई, तो पहले हिचकिचाहट हुई। कुछ अपने निराश हुए, लेकिन हालात ऐसे थे कि उन्हें नौकरी करनी पड़ी। उन्होंने एंबुलेंस चलाने की नौकरी स्वीकार कर ली। महिला सक्षमीकरण के दौर में एंबुलेंस चलाने वाली विषया राज्य की पहली महिला हैं। इसी साल मई महीने में विषया की दखल ली गई। सरकार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजेश टाेपे ने उनका सत्कार किया। कोरोनाकाल के बावजूद विषया ने अपनी सेवा प्रवृत्ति में कोई बदलाव नहीं आने दिया। अब वह गर्भवती माताओं को लाने-ले जाने का काम एंबुलेंस के माध्यम से करती हैं।
 

 

Created On :   25 Sept 2022 6:50 PM IST

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