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पहली लहर में डिप्रेशन दूसरी में मौत का भय, कॉल सेंटर में अलग-अलग किस्म की मानसिक पीड़ा बता रहे लोग
डिजिटल डेस्क जबलपुर । कोरोना की पहली लहर का वायरस ज्यादा जानें नहीं ले सका हालात कुछ ठीक थे लेकिन दूसरी लहर ने जो हाहाकार मचाया है उसका असर लोगों की मानसिक दशा में भी पड़ रहा है। आसपास रहने वाले लोगों में से कोरोना की गिरफ्त में आने के बाद दुनिया से चला जाना, परिचितों की अचानक मौत से घर में रहकर असुरक्षा, अनहोनी यहाँ तक कि असमय मौत का भय सता रहा है। लोकल कमांड कॉल सेंटर से लेकर स्टेट लेबल तक अलग-अलग तरह से मानसिक पीड़ा के बाद लोग सवाल पूछ रहे हैं। लॉकडाउन में घर में बैठे रहने के दौरान फोन लगाकर पूछा जाता है कि कहीं मुझे भी यह वायरस चपेट में तो नहीं ले लेगा। यदि हो गया तो मेरे परिजनों का क्या होगा, मैं घर में बैठकर क्या करूँ कि इसकी गिरफ्त में न आ सकूँ। पलंग मिलेगा कि नहीं, बेड खाली न हुआ तो क्या होगा और नहीं मिलेगा तो कहीं मेरी मौत न हो जाए। कई तरह के सवाल हैं जिनका उत्तर मानसिक चिकित्सक राज्य स्तर पर दे रहे हैं। मानसिक चिकित्सक डॉ. रत्नेश कुरारिया कहते हैं कि मैं खुद इस वायरस से अभी जूझ रहा हूँ समझ सकता हूँ कि किस तरह यह लहर लोगों को मानसिक पीड़ा भी पहुँचा रही है। इससे लेकिन घबराना नहीं है, जो चिकित्सक सलाह दें उसका पालन करना जरूरी है। बेवजह नकारात्मक सोच के साथ पैनिक बना लेने से परिवारजन परेशान हो सकते हैं। ऐसे लोग जो पहले ही डिप्रेशन से ग्रसित हैं या कुछ मानसिक परेशानियों से जूझ रहे हैं उनके परिजनों को उनका और भी ज्यादा ख्याल रखना होगा। यह सेहत को लेकर एकदम धैर्य का वक्त है।
नकारात्मकता डिप्रेशन में बदलती है
मानसिक चिकित्सक कहते हैं कि ज्यादा दिनों तक दिमाग में बैठी नकारात्मकता बाद में डिप्रेशन जैसी बीमारी को जन्म दे सकती है। अच्छे खासे आदमी को यह शुरूआत में समझ में नहीं आती है इसका इलाज किया जाना जरूरी हो जाता है। अशंका, भय, खौफ, असुरक्षा, उदासी, मन विचलित रहना सब ये लक्षण हैं जिनको पहचानना जरूरी है।
Created On :   5 May 2021 4:39 PM IST