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जब बिना बैलों के चल पड़ी गाड़ियां, उमड़ पड़ी भीड़
डिजिटल डेस्क, वाड़ी (नागपुर)। बैलगाड़ी बिना बैलों के भी दौड़ती है यह बात सुनने में अजीब लगती है, लेकिन समीपस्थ लावा गांव में ऐसा हर साल होता है। बिना बैल की बंडियां चलना चमत्कार नहीं, देवी शक्ति है। यह कहना है 7वीं पीढ़ी के माधवराव गोरले का। यह परंपरा बीते 300 साल से लावा का गोरले परिवार निरंतर चला रहा है। नागपुर से करीब 14 किमी दूर पश्चिम की ओर वाड़ी से समीप ग्राम लावा में हर साल की तरह इस साल भी आयोजित होने वाले कार्यक्रम में बिना बैल की चलती बंडियों को देखने के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
घरों की छतों पर जमा हुई भीड़
गौरतलब है कि, माधोराव ने अपने घर पर स्थित मंदिर में प्रथम देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करने के बाद चौक पर सोनबा बाबा के मंदिर में आकर पूजा-अर्चना की। चौक पर एक झूला लगाया गया, जिस पर माधोराव को बिठाकर झुलाया गया। इसके बाद महोत्सव की शुरूआत हुई। झूला झूलने के बाद लाल फेटा और सफेद दुपट्टा पहने माधोराव गोरले हाथ में तलवार लेकर हजारों भक्तों के साथ सीधा बंडियों की तरफ चल पड़ा। उन्हें देखने के लिए घरों के छतों पर भी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।
पुलिस का तगड़ा बंदोबस्त
लावा गांव वाड़ी पुलिस स्टेशन अंतर्गत आता है। इस उत्सव के दौरान पुलिस का तगड़ा बंदोबस्त रखा गया। वाड़ी के पीआई आर.एल. पाठक ने पुलिस दल-बल का नेतृत्व संभाला। सोनबा बाबा यात्रा महोत्सव के अध्यक्ष गणेश हिरणवार, उपसभापति सुजित नितनवरे, सरपंच ज्योत्सना नितनवरे, उपसरपंच महेश चोखान्द्रे, पांडुरंग बोरकर, मनोज तभाने, रॉबिन शेलारे, बबन वानखड़े, प्रकाश नगरारे, मोरेश्वर वरठी, मंगेश चोखान्द्रे, देवनाथ गोरले, उमेश गोरले, रामचन्द्र ढवले ने कार्यक्रम को सफल बनाया।
यह है इतिहास
गोरले का कहना है कि, यह उत्सव होली के पांचवे दिन यानी पंचमी पर मनाया जाता है। हर साल इसी दिन सोनबा बाबा की देवी शक्ति से बिना बैल की बंडियां चलने का करिश्मा दिखाया जाता है। इसे दखने के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं। पूरा गांव उत्साह में डूब जाता है। गांव की हर लड़की में इस त्योहार में मायके आने से खुशी अलग ही देखने को मिलती है। सोमवार की शाम 5.30 बजे सोनबा बाबा के वंशज तथा शिष्य 85 वर्षीय माधोराव गणपत गोरले ने गांव के पंचायत चौक पर सोनबा मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना कर मैदान पर खड़ी पांच बिना बैल की बंडियों पर बैठ कर "होक रे होक’ की आगाज कर अद्भुत देवी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। यहां पर पहले दस बंडियों को लगाया जाता था, लेकिन बंडियां कम होने से अब केवल पांच बंडियांं ही लगाई जाती हैं। बंडियांं एक-दूसरे को रस्सी से बांधकर बिना बैल के चौक पर रखकर चलाई जाती है।
बंडियों को बिना हाथ लगाए चलाकर दिखाएं
अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति नागपुर ने इसे अंधश्रद्धा बताया है। बिना बैल की बंड़ियों को बिना हाथ लगाए चलाने पर 25 लाख का इनाम देने का घोषणा अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के हरीश देशमुख ने हमारे संवाददाता से बातचीत में की। बताया गया कि, 1982 में निर्मूलन समिति ने चेलैंज किया था, लेकिन स्वीकारा नहीं।
आस्था है मेरी
परंपरा से चल रहे सोनबा बाबा की पावन नगरी लावा में यह परंपरा आगे भी जारी रखेंगे। गांव के सभी समाज के लोग एक होकर इस उत्सव में हिस्सा लेते हैं। मैं तो इसे आस्था से मानता हूं।
महेन्द्र चोखान्द्रे, उपसरपंच ग्राम पंचायत, लावा
Created On :   26 March 2019 12:28 PM IST