धनतेरस दो दिन :  विभिन्न पंचांगों में तिथि गणना को लेकर ज्योतिषियों में मतभेद, जानिए - कैसे करें लक्ष्मी पूजा 

धनतेरस दो दिन :  विभिन्न पंचांगों में तिथि गणना को लेकर ज्योतिषियों में मतभेद, जानिए - कैसे करें लक्ष्मी पूजा 
धनतेरस दो दिन :  विभिन्न पंचांगों में तिथि गणना को लेकर ज्योतिषियों में मतभेद, जानिए - कैसे करें लक्ष्मी पूजा 

डिजिटल डेस्क, नागपुर। धनतेरस तिथि को लेकर लोगों मंे असमंजस की स्थिति है। पंचांग में तिथि के गणना भेद को लेकर यह स्थिति बनी है। कोई धनतेरस 12 को, तो कोई 13 नवंबर को मनाने के पक्ष में है। हालांकि अधिकांश पंडित 13 नवंबर को धनतेरस मनाना ही उचित ठहरा रहे हैं। उनका मत है कि त्रयोदशी 13 शुक्रवार को उदया ितथि में भी रहेगी और प्रदोषकाल के समय भी। इस दिन शाम 5.59 बजे तक त्रयोदशी तिथि है, जबकि कई पंडितों का मत है कि शुक्रवार को शाम 4.20 बजे तक त्रयोदशी समाप्त हो जाएगी और प्रदोष काल में नहीं रहेगी। इसलिए 12 नवंबर को ही धनतेरस मनाना उचित है।

12 को द्वादशी तिथि शाम 6.18 बजे तक रहेगी। इसके बाद त्रयाेदशी प्रारंभ हो जाएगी। इसलिए प्रदोष काल के बाद त्रयोदशी लगने पर गुरुवार को ही इसे मनाना चाहिए। कुबेर पूजा का समय शाम 6.19 से 7.48 तक उत्तम रहेगा।

त्रयोदशी 12 नवंबर को ही मनाई जाना श्रेष्ठ रहेगा। पंचांग भेद हो सकते हैं। तभी रूपचौदस 13 को सुबह के समय और 14 को दीपावली मनाना उचित रहेगा। अमावस्या तिथि 15 नवंबर को दोपहर तक रहेगी। इसलिए भाई दूज 16 को मनेगी।

त्रयोदशी तिथि गुरुवार व शुक्रवार दोनांे दिन है। सावधानी यह बरते कि गुरुवार को पूजा करें, तो त्रयोदशी लगने पर रात 9.30 के बाद और शुक्रवार को करें, तो शाम 5.59 से पहले। खरीदारी शुक्रवार को ही करें तो शुभ रहेेगी।

12 नवंबर को त्रयोदशी प्रदोषकाल में रहेगी। इसलिए इसी दिन त्रयोदशी मनाई जाए। नारायण विजय पंचांग के मुताबिक 13 को त्रयोदशी दोपहर 3.30 बजे समाप्त हो जाएगी। प्रदोषकाल में नहीं रहेगी। विभिन्न पंचांगों में त्रयोदशी तिथि को लेकर भेद होने के कारण यह स्थिति बनी है। त्रयोदशी 12 को ही मनाना उचित है।
 
12 को रात 9.30 तक द्वादशी गोवत्स पर्व रहेगा। 9.31 से त्रयोदशी प्रारंभ होगी, जो 13 को 5.59 तक रहेगी। इस दिन प्रदोष काल शाम 5.33 से रात 7.57 तक रहेगा। इसलिए 13 को धनतेरस मनाना श्रेष्ठ है।

12 को धनतेरस मनाई गई तो फिर 13 को नरक चतुर्दशी कैसे मनाई जाएगी। 13 को उदयातिथि में त्रयोदशी तिथि रहेगी, जो शाम 5.59 तक रहेगी।

धनतेरस गणेश, लक्ष्मी व कुबेर पूजा का दिन होता है। 13 को सूर्यास्त शाम 5.34 बजे होगा। इसके बाद 2 घंटे से अधिक समय तक प्रदोषकाल रहेगा। प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी इसी दिन मनाई जाएगी। 

भगवान धन्वंतरि का प्रकटोत्सव त्रयोदशी पर ही है। उनकी पूजा भी सुबह होती है। 13 को उदयातिथि में त्रयोदशी तिथि है इसलिए इसी दिन धनतेरस मनाया जाना उचित रहेगा। शाम 5.29 से 6 बजे तक पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा।

12 नवंबर को त्रयोदशी तिथि रात 9.31 बजे प्रारंभ होगी, जो 13 नवंबर को शाम 5.59 बजे तक रहेगी। इस कारण प्रदोष व्यापी त्रयोदशी 13 नवंबर को रहेगी। इसके बाद चतुर्दशी प्रारंभ होगी जो 14 नवंबर को सुबह मनाया जाना उचित रहेगा। इसके बाद दोपहर 2.20 बजे अमावस्या तिथि प्रारंभ हो जाएगी, इसलिए इसी दिन दीपावली मनाई जाएगी।

गाय की पूजा ही लक्ष्मी पूजा 

12 नवंबर को गौ वत्स द्वादशी व्रत किया जाएगा। इसमें गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है। भविष्य पुराण के अनुसार गाय लक्ष्मी का रूप होती है। गाय की आंखों में सूर्य-चंद्रमा, मुख में रुद्र, गले में विष्णु, शरीर के बीच में सभी देवी-देवता और पिछले हिस्से में ब्रह्मा का वास होता है। इसलिए गाय और उसके बछड़े की पूजा से लक्ष्मी जी सहित सभी देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। महिलाएं ये व्रत अपने परिवार की समृद्धि और अच्छी सेहत की कामना के लिए करती हैं।

व्रत और पूजा विधि

इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर व्रत और पूजा का संकल्प लेती हैं। शुभ मुहूर्त में गाय और उसके बछड़े की पूजा करती हैं। गाय को हरा चारा और रोटी सहित अन्य चीजें खिलाई जाती है। गाय और बछड़े को सजाया जाता है। इस दिन गाय के दूध और उससे बनी चीजें नहीं खाई जाती है। गाय का पूरा दूध उसके बछड़े के लिए छोड़ दिया जाता है। भैंस के दूध का उपयोग किया जाता है। पूजा के बाद घर में खासतौर से बाजरे की रोटी और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाई जाती है। इस दिन अगर कहीं गाय और बछड़ा नहीं मिल पाए तो चांदी या मिट्टी से बने बछड़े की पूजा भी की जा सकती है। 

गाय और बछड़े की पूजा से महिलाओं को संतान सुख मिलता है। संतान की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए भी ये व्रत किया जाता है। पुराणों में इस व्रत का माहात्म्य बताते हुए कहा गया है कि इस दिन जिस घर की महिलाएं गौमाता की पूजा करती हैं उनका परिवार समृद्ध होता है। इस दिन गाय को रोटी और हरा चारा खिलाकर संतुष्ट करने वालों पर लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। ऐसे परिवार में कभी भ‍ी अकाल मृत्यु नहीं होती है। गाय और बछड़े की पूजा करने से सभी देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।
 

 

Created On :   11 Nov 2020 5:18 PM IST

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