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इलेक्ट्रिफिकेशन के दौर में आपातकाल उपकरण बन कर कार्य कर रहे डीजल इंजन
डिजिटल डेस्क, नागपुर। रेलवे में ट्रेनों में हर दौर में विकास होता रहा है। ट्रेनों के कोच और लोको में भी विकास लगातार होता रहा है। जिसमें इलेक्ट्रिफिकेशन मौजूदा दौर में सबसे महत्वपूर्ण है। ट्रेन संचालन के लिए सबसे बेहतर और अन्य विकल्पों से कम खर्चीला है, लेकिन इसके चलते पुरानी पद्धति से चलने वाले इंजन इतिहास बनते जा रहे हैं। अब इलेक्ट्रिफिकेशन होने के बाद डीजल इंजन को भी बंद कर दिया गया। जो अब रेलवे के आपातकाल उपकरण बन कर उपयोग किए जा रहे हैं। इसे पूरी तरह से बंद नहीं किया जा रहा है।
एक समय पर भांप इंजन से ट्रेनें चलाई जाती थी। फिर कोयले की खपत और खर्च को देखते हुए डीजल लोको बनाए गए। जो कोयले की तुलना में अधिक फायदेमंद साबित हुए। डीजल इंजन में कोयले की तुलना में खर्च कम होता था और मैनपाॅवर भी कम उपयोग होता था। डीजल इंजन आने से कोयले के भांप इंजन इतिहास बन गए और उनका उपयोग पूरी तरह खत्म हो गया। डीजल इंजन से कार्बन उत्सर्जन अधिक मात्रा में होता था इसके साथ ही इसमें खर्च भी अधिक हो रहा था, इसलिए इलेक्ट्रिफिकेशन लाया गया। इलेक्ट्रिफिकेशन आते ही कोयले के इंजन की तरह डीजल इंजन भी इतिहास बन कर रह जाने का कयास लगने लगा था, लेकिन डीजल इंजन को आपातकाल उपकरण के रूप में कार्यरत हैं। मध्य रेलवे में भी अब लगभग शत-प्रतिशत इलेक्ट्रिफिकेशन हो चुका है। नागपुर के डीजल लोको शेड में अब भी कई डीजल इंजन है, जिनका उपयाेग किया जा रहा है।
यार्ड में अब भी डीजल इंजन का ही उपयाेग किया जा रहा है। साथ ही इलेक्ट्रिफिकेशन कही पर फेल होन या ओएचई टूटने के समय, शंटिंग के दौरान इनका ही उपयोग किया जा रहा है। डीजल इंजन पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिकाओं में कार्य कर रहे हैं। इलेक्ट्रिफिकेशन में किसी भी कारण से यदि ओएचई टूटता या कोई फेलियर होता है तो पूरा कार्य ठप हो जाता है साथ ही इसे ठीक करने में भी समय लगता है ऐसे में डीजल इंजन कही भी जाने और उतनी ही क्षमता से कार्य करते हैं।
यार्ड में अधिक उपयोग
डीजल इंजन पूरी तरह बंद नहीं किए गए हैं। इनका उपयोग अब भी शंटिंग व इमरजेंसी के दौरान कर रहे है। यार्ड में भी इनका उपयोग ज्यादा होता है। अजनी लोकोशेड में अब भी डीजल इंजन है।
एस.जी. राव, सहायक वाणिज्य प्रबंधक, मध्य रेलवे
Created On :   11 Nov 2019 2:27 PM IST