सद्विचारों से मन होता है शुद्ध, उपराजधानी में भक्ति रस

Different programmes organised on worship in orange city
सद्विचारों से मन होता है शुद्ध, उपराजधानी में भक्ति रस
सद्विचारों से मन होता है शुद्ध, उपराजधानी में भक्ति रस

डिजिटल डेस्क, नागपुर। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जिस अव्यभिचारिणी भक्ति का उल्लेख किया, वह कामनारहित और कल्याणकारी भावना से प्रणीत होना चाहिए। भक्ति केवल अपने इष्ट के लिए करे, जैसे हनुमान का हर कार्य श्रीराम के लिए ही रहा। कल्याणकारी भावना रखते हुए कर्म करनेवाले भक्त या साधक की कुशलता और सुरक्षा का ध्यान स्वयं परमात्मा रखते हैं। गीता जयंती की पूर्व संध्या पर स्वामीश्री निर्मलानंद महाराज ने यह उद्गार श्री गीता मंदिर में व्यक्त किए। हनुमानजी साक्षात कर्म का अवतार थे। कर्म तीन प्रकार के हैं। सत्कर्म, दुष्कर्म और निरर्थक कर्म, सत्कर्म की प्रेरणा अंत:करण में होती है। अंत:करण की शुद्धि के लिए सत्संग व सद्विचारों का चिंतन आवश्यक है। 

बरसे पुरस्कार, हर्षित बच्चे

इस मौके पर स्पर्धाओं के समापन दिवस शनिवार को 12 शालाओं व कनिष्ठ महाविद्यालयों के संयुक्त सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने उपस्थितों का भाव-विभोर कर दिया। कार्यक्रम के बाद 160 पुरस्कारों का वितरण 55 स्कूलों के विजेता विद्यार्थियों को किया गया। जैसे-जैसे पुरस्कारों की घोषणा होती रही, तालियों की गड़गड़ाहट के साथ विद्यार्थियों का उत्साह बढ़ता गया। 

भवन्स श्रीकृष्णनगर ने दिया कन्या संरक्षण का संदेश

वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम में हरियाणवी घूमर नृत्य के माध्यम से "बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ" की शानदार प्रस्तुति पर भवन्स बी.पी. विद्यामंदिर श्रीकृष्णनगर को प्रथम, संजूबा सीबीएससी द्वतीय, भवन्स बी.पी. विद्या मंदिर त्रिमूर्तिनगर, तृतीय और दादीबाई देशमुख हिंदू मुलींची शाला को चतुर्थ रैक मिला। स्वामीश्री निर्मलानंद महाराज ने विजेताओं को पुरस्कृत किया। इस अवसर पर स्वामी प्रशांतानंद, ट्रस्टी हरीश गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार आनंद निर्बाण, प्रमुखता से उपस्थित थे। मंगलाबेन भुसारी, गजानन भुसारी, ओमप्रकाश गुप्ता, गजल गहाणकर व टीम ने व्यवस्था संभाली। संपूर्ण समारोह का  संचालन करने पर उमाशंकर अग्रवाल को स्वामीजी ने आशीर्वाद दिया।

विराट भक्ति सत्संग की तैयारी जोर-शोर से जारी

वहीं विश्व जागृति मिशन की ओर से आचार्य सुधांशु महाराज के सानिध्य में विराट भक्ति सत्संग का आयोजन 25 से 29 दिसंबर तक किया गया है। सत्संग ‘आनंदधाम’, रेशमबाग मैदान में होगा। इस संबंध में सभा का आयोजन रविवार, 8 दिसंबर को दोपहर 4.30 बजे झूलेलाल मंदिर, गांधीसागर में किया गया है। शाखा के महामंत्री दिलीप मुरारका ने बताया कि 25 दिसंबर को सत्संग का आरंभ शाम 4.30 बजे होगा। 26 दिसंबर से 29 दिसंबर तक सुबह 9 से 11.30 व शाम 4 से 6 बजे तक सत्संग होंगे। 28 दिसंबर को विशेष कार्यक्रम के अंतर्गत गुरुमंत्र सिद्धि साधना सुबह से 12 बजे तक सुरेश भट्ट सभागृह, रेशमबाग में होगा। 29 दिसंबर को मंत्र दीक्षा सुबह 11.30 बजे आनंदधाम में होगी। सभा में सभी गुरुभाई व बहनों से बड़ी संख्या में उपस्थिति की अपील की गई है।

श्री महामंडलेश्वर माधवदास महाराज का जन्मोत्सव मनाया

श्री महामंडलेश्वर माधवदास महाराज का जन्मोत्सव शनिवार को श्री थाड़ेश्वरी राम मंदिर में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। सुबह महाराज द्वारा गोपूजन, किया गया। वृद्धाश्रम एवं अंधविद्यालय में प्रसाद वितरण किया गया। शाम श्याम नाम संकीर्तन की प्रस्तुति जयपुर की सुरभि चतुर्वेदी द्वारा पहली बार नागपुर में की गई। नागपुर की भजन गायिका स्मिता गनुवाला ने महाराज के जन्म की बधाई एवं श्यामबाबा के भजनों से िरझाया। सफलतार्थ थाड़ेश्वरी परिवार, शिष्य परिवार और भक्त मंडलों ने प्रयास किया।  यह जानकारी यशदास वैष्णव ने दी है।

साधु बनना सरल है, साधुता पाना कठिन 

साधु बनना सरल है, पर साधुता पाना बहुत कठिन है। यह उद्गार तपस्वी सम्राट आचार्य सन्मतिसागर के शिष्य आचार्य सुवीरसागर ने श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर, सूर्यनगर में सिद्धचक्र विधान में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि आचार्य कुन्दकुन्द देव ने प्रवचनसार ग्रंथराज में कहा है कि पुण्य का फल अरिहंत है। पुण्य में इतनी ताकत है वह आत्मा को परमात्मा बना देती है। सर्वार्थसिद्धि ग्रंथराज में कहा है कि शुभ परिणामों से पुण्य की और अशुभ परिणामों से पाप की प्राप्ति होती है। जो आत्मा को शुद्ध करता है वह पुण्य होता है। पूजा का फल पुण्य और पुण्य का फल अरिहंत होता है। आचार्य जयसेन और भी आचार्यों ने इसी का विस्तार कर पुण्य की अच्छी तरह से परिभाषा की है। पुण्य से आत्मा पवित्र होता है। अरिहंत पद की प्राप्ति होती है और परंपरा से मोक्ष की प्राप्ति होती है। आचार्यश्री ने कहा कि तीनों लोक में शांति के लिए विश्वशांति महायज्ञ जारी है। धर्मात्मा अंदर से सरल होता है। संसार के सभी जीवों का कल्याण हो यही भावना रहती है। जब तक इस धरती पर दिगंबर साधु विचरण करते रहेंगे तब तक इस धरती से अग्नि, पानी का अभाव नहीं होगा। इस पंचम काल के आखिरी तक दिगंबर साधु रहेंगे। दिगंबर साधु की महिमा अपरंपार है। केसलोच करते हैं। उनका पता नहीं होता। यह निरंतर धर्मोपदेश के लिए विहार करते रहते हैं। जिनेंद्र देव ने अहिंसा का पाठ पढ़ाया है उसे आगे बढ़ाते हैं।

शत्रुंजय गिरिराज की महाध्वजा 

जैनियों के सबसे बड़े तीर्थ शत्रुंजय गिरिराज के श्री आदिनाथ जैन मंदिर की 18 फीट लंबी ध्वजा रविवार, 8 दिसंबर को नागपुर आएगी। गिरिराज महिमा के प्रखर उद्घोषक मुनिवर श्री प्रशमरतिविजय म. के सान्निध्य में श्री मुनिसुव्रत जैन मंदिर, श्री जैन श्वेतांबर मूर्ति पूजक तपागच्छ संघ, इतवारी में  489 स्वस्तिक, 489 दीपक, पुष्पवर्षा, अक्षत वर्षा एवं अष्टप्रकारी पूजा से ध्वजा की विशिष्ट अर्चना होगी।  गुरुदेव ने बताया कि श्री शत्रुंजय तीर्थ शाश्वत है, किंतु मंदिरों के पुनर्निमाण होते रहते हैं। तीर्थ के मुख्य जिनालय का जीर्णोद्धार 489 साल पूर्व हुआ था। उसके बाद से ध्वजा की सालगिरह की गिनती शुरू हुई। इस साल 489वीं सालगिरह है और इस साल की ध्वजा 489वीं ध्वजा है। दादा की ध्वजा की महिमा बहुत बड़ी होती है। ध्वजा दिव्य तत्वों को आकर्षित करती है। इसलिए ध्वजा को भगवान के जैसा ही सम्मान मिलता है। ध्वजा के आगमन से नागपुर धन्य हो गया है। ध्वजा की बोली शत्रुंजय तीर्थ, पालीताणा में हुई थी। दादरा नगर हवेली निवासी महेंद्र रायचंद लुनावत परिवार ने बोली ली थी। इसी परिवार के राजाभाई ध्वजा लेकर नागपुर आए हैं। गिरिराज के उत्कृष्ट भक्त राजाभाई शाह ने बताया कि भारत के विविध जैन संघों में ध्वजा जाएगी जिसका सर्वप्रथम मुकाम नागपुर में हुआ है। गुरुदेव श्री प्रशमरतिविजय म. हमारे परम उपकारी गुरुदेव है। 

Created On :   8 Dec 2019 5:05 PM IST

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