गणेश मूर्तियों के नायाब संग्रह के लिए भी जाने जाते हैं डॉ प्रकाश कोठारी

गणेश मूर्तियों के नायाब संग्रह के लिए भी जाने जाते हैं डॉ प्रकाश कोठारी
कलाकृतियां सहेजी गणेश मूर्तियों के नायाब संग्रह के लिए भी जाने जाते हैं डॉ प्रकाश कोठारी

डिजिटल डेस्क, मुंबई. देश के जानेमाने सेक्सोलॉजिस्ट डॉ प्रकाश कोठारी गुप्त रोगों की चिकित्सा के लिए पहचाने जाते हैं पर अपने पेशे से इतर एक और काम है जिसमें उनका मन रमता है। डा कोठारी के पास गणेश मूर्तियों का नायाब संग्रह है। उनके संग्रह में गणेश प्रतिमाओं के अलावा, गणेश की तस्वीरों वाले सिक्के और स्टैम्प शामिल हैं। खास बात यह है कि उन्होंने अपने संग्रह की हर कलाकृति की जांच कराकर आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया या किसी नामी आर्कियोलॉजिस्ट का प्रमाण पत्र भी ले रखा है। किसी निजी संग्रह में दुनिया की सबसे पुरानी गणेश प्रतिमा भी उनके ही पास है। डॉक्टर कोठारी ने बताया कि भगवान गणेश से जुड़ी वस्तुओं का संग्रह एक इत्तेफाक के चलते शुरू हुआ। मैं इरोटिक ऑर्ट का संग्रह करता हूं। मेरे पास इरोटिक आर्ट का जो संग्रह है वह किसी म्यूजियम में नहीं होगा। साढ़े सात हजार पुरानी कलाकृति भी मेरे पास है। इन्हीं कलाकृतियों की तलाश में कई बार मैं चोर बाजार जाता हूं। इसी तरह मैं करीब 10 साल पहले चोर बाजार में मेरी नजर एक मोहर पर पड़ी जिस पर नंदी (बैल) की आकृति बनी हुई थी और ब्राह्मी लिपी में कुछ लिखा हुआ था। उसे खरीदकर मैं घर लाया और कुछ दिनों बाद पलटकर देखा तो हैरान हो गया। उस पर दो हाथों वाले गणेशजी बने हुए थे। माना जाता है कि जब गणेशजी दुनिया में आए तो वे विघ्नकर्ता थे फिर छठवी सदी में उन्हें चार हाथ हुए और वे विघ्नहर्ता बनें। इसमें ऐक और खास बात थी कि दो हाथ वाले गणेशजी के साथ प्रभामंडल भी बना हुआ था। इसके बाद कुछ विशेषज्ञों से राय ली तो उनकी राय बंटी हुई थी। विशेषज्ञों ने इसे पहली से चौथी सदी के बीच की कलाकृति बताई। गणेश प्रतिमा के बारे में मराठवाडा यूनिवर्सिटी के इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर एस देशमुख का मानना है कि यह सातवाहन काल का है। दुनिया में अब तक ज्ञात सबसे पुरानी गणेश प्रतिमा चीन में मिली थी जो छठी सदी की थी। यह साफ था कि मेरे पास जो मोहर थी वह चीन में बरामद भगवान गणेश की मूर्ति से कम से कम दो सौ साल पुरानी थी। कोठारी ने बताया कि मोहर में योगमुद्रा में बैठे गणेश की लघु प्रतिमा है। टेराकोटा की इस लाल प्रतिमा के बाएं हाथ में मोदक है और दायां हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है। इसके पीछे एक हुक है, जिस पर चेन लगाई जाती होगी। यानी इसे पेंडैंट की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा होगा। चोर बाजार से मिली प्राचीन यह महाराष्ट्र के पैठण में गोदावरी तट के पास की प्रतिमा है। इस तरह, करीब दो हजार साल पहले का 6.4 सेंटीमीटर लंबा और 34.9 ग्राम वजन का यह दुर्लभ गणेश आर्ट पीस इतिहास के इतने लंबे काल खंड में न जाने कितने स्थानों और हाथों से होते हुए मुंबई के चोर बाजार पहुंचा, जहां से यह डॉ कोठारी के नायाब संग्रह का हिस्सा बना। 

लोगों के लिए लगाते हैं प्रदर्शनी

डॉ कोठारी ने बताया कि उन्होंने अपने पास मौजूद कलाकृतियों की जहांगीर आर्टगैलरी में प्रदर्शनी भी लगाई थी जिसे देखने 25 हजार से ज्यादा लोग आए थे। इसके अलावा इन वस्तुओं की तस्वीरों के साथ एक किताब छपवाई है। डॉ कोठारी ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि इस किताब के कुल 108 पेज हुए हैं। उन्होंने कहा कि मैं दो तरह की चीजों का संग्रह करता हूं पहली जो दुर्लभ हो और दूसरी जो बेहद खूबसूरत हो। डॉ कोठारी ने बताया कि उनके पास गणेशजी खुद आते गए और अब एक नायाब संग्रह तैयार हो गया है। कुछ कलाकृतियां लोगों ने भेंट की, कुछ नीलामी में खरीदी और संग्रह बढ़ता चला गया। 

दूतिया राज्य के गणेशजी के स्टैंप

डॉ कोठारी ने बताया कि आजादी से पहले हिंदुस्तान में दूतिया नाम का एक राज्य था जिसने भगवान गणेशजी के स्टैंप निकाले थे। मैंने नीलामी में इसका पूरा संग्रह खरीदा था। किसी और ने इसके लिए बोली नहीं लगाई इसलिए मुझे कम बोली लगाने के बावजूद यह मिल गया। इसके अलावा सातवीं शताब्दी की महाराष्ट्र की शंक्वाकार गणेश प्रतिमा, नवीं शताब्दी की हिमाचल प्रदेश की सूर्य और चंद्रमा के साथ गणेश की प्रतिमा, 10वीं शताब्दी की तमिलनाडु की शिवलिंग पर स्थित गणेश की प्रतिमा समेत कई सिक्के, प्रतिमाएं, तस्वीरें संग्रह में शामिल है। 

Created On :   4 Sept 2022 7:32 PM IST

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