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सूख गए प्राकृतिक जलस्रोत, कृत्रिम के भरोसे वन्यजीव
डिजिटल डेस्क, नागपुर. आसमान से बरसती आग के कारण जंगल के प्राकृतिक जलस्रोत लगभग सूख गए हैं। प्यास बुझाने के लिए भटक रहे वन्यजीव अब कृतिम जलस्रोत के भरोसे हैं। हालांकि बड़ी नदियां व तालाबों में अभी थोड़ा-बहुत पानी बचा है। सूत्रों के अनुसार विदर्भ के पेंच व्याघ्र प्रकल्प अंतर्गत बोर व्याघ्र प्रकल्प, उमरेड-पवनी-करांडला अभयारण्य, टिपेश्वर अभयारण्य, पैनगंगा अभयारण्य में करीब 176 प्राकृतिक जलस्रोत सूख गए हैं, ऐसे में उन्हें कृत्रिम जलस्रोतों के भरोसे अपनी प्यास बुझानी पड़ रही है। वन विभाग ने कुल 350 कृत्रिम जलस्रोत का निर्माण किया है, जिससे वन्यजीवों को पानी मिल पा रहा है।
180 नैसर्गिक जलस्रोत : उल्लेखनीय है कि फरवरी से प्राकृतिक जलस्रोत सूखने लगते हैं और मई में स्थिति िवकट हो जाती है। इससे निपटने के लिए वन विभाग ने जरूरी जगहों पर छोटे-बड़े वॉटर होल बनाए हैं। अधिकृत आंकड़ों के अनुसार विदर्भ के जंगलों में कुल 180 नैसर्गिक जलस्रोत हैं। जिसमें से 103 जलस्रोत सूख गए हैं। कृत्रिम वॉटर होल की संख्या करीब 350 है, जिसमें सोलर पंप, हैंडपंप, सरकारी टैंकर व निजी टैंकर से जलापूर्ति की जा रही है।
उपलब्ध करवाया जा रहा पानी
डॉ. प्रभुनाथ शुक्ला, डीएफओ (वाइल्ड लाइफ) पेंच व्याघ्र प्रकल्प के मुताबिक केवल पेंच क्षेत्र में कुल 100 कृत्रिम जलस्रोत हैं। इसमें बोरवेल के साथ निजी टैंकरों के माध्यम से जलभराव किया जाता है। अधिकांश प्राकृतिक जलस्रोत सूख गए हैं। ऐसे में कृत्रिम जलस्रोत वन्यजीवों के लिए अहम होते हैं।
Created On :   29 May 2022 6:47 PM IST