दो से ज्यादा बच्चे होने के आधार पर नगरसेवक का चुनाव रद्द, नहीं मिली राहत

Election canceled for corporator on the basis of having more than two children, no relief
दो से ज्यादा बच्चे होने के आधार पर नगरसेवक का चुनाव रद्द, नहीं मिली राहत
दो से ज्यादा बच्चे होने के आधार पर नगरसेवक का चुनाव रद्द, नहीं मिली राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। दो से ज्यादा बच्चे होने के आधार पर नगरसेवक को अपात्र ठहराए जाने के आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट ने कायम रखा है। मामला सोलापुर महानगरपालिका में शिवसेना की नगरसेवक अनीता मगर से जुड़ा हुआ है। जिसके दो से ज्यादा बच्चे होने के आधार पर नगरसेवक पद को रद्द करने के निर्णय को हाई कोर्ट ने बरकरार रखा है। इससे पहले सोलापुर कोर्ट ने साल 2018 में मगर के नगरसेवक के पद को रद्द कर दिया था। जिसके खिलाफ मगर ने हाईकोर्ट में अपील की थी। 

न्यायमूर्ति सी वी भडंग के सामने मगर की अपील पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद पाया न्यायमूर्ति ने पाया कि मगर ने साल 2017 में मनपा का चुनाव जीता था। लेकिन चुनाव हारने वाली भाग्यलक्ष्मी महंता ने मगर के चुनाव को सोलापुर कोर्ट में चुनौती दी।

महंता ने सोलापुर कोर्ट में दावा किया कि मगर के तीन बच्चे हैं। नियमानुसार नगरसेवक के दो से अधिक बच्चे नहीं होने चाहिए। इस तरह से देखा जाए, तो मगर ने दो से अधिक बच्चे होने पर चुनाव लडने से रोकने वाले नियम का उल्लंघन किया है। इसलिए मगर के चुनाव को रद्द किया जाए। क्योंकि यह बॉम्बे म्युनिसिपल कारपोरेशन अधिनियम व  सितंबर 2001 में राज्य चुनाव आयोग की ओर से जारी दिशा निर्देशों के प्रावधानों का उल्लंघन है। 

वहीं मगर ने सोलापुर कोर्ट में दावा किया था कि उसके दो ही बच्चे हैं। जिस तीसरे बच्चे को लेकर सवाल उठाए गए है वह उसके देवर का बेटा है। अस्पताल की गलती के चलते तीसरे बच्चे के जन्मप्रमाण पत्र मंर उसका (मगर) व उसके पति का नाम लिखा गया है। इस जन्म प्रमाणपत्र को साल 2012 में सुधरवाया भी गया था। सोलापुर कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद मगर के नगर सेवक पद को रद्द कर दिया था। इसलिए उसने हाईकोर्ट में अपील की। 

मामले से जुड़े तथ्यों व सोलापुर कोर्ट के फैसले पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि मगर ने ऐसा कोई दस्तावेजी सबूत व पैटरनिटी टेस्ट की रिपोर्ट नहीं पेश की है। जो दर्शाए की तीसरी संतान उसकी  जैविक संतान नहीं है। इसलिए मगर की याचिका को खारिज किया जाता है। और सोलापुर कोर्ट के आदेश को कायम रखा जाता है। न्यायमूर्ति ने फिलहाल अपने फैसले पर चार सप्ताह तक की रोक लगाई है। ताकि वह उपरी अदालत अथवा उपलब्ध कानूनी विकल्पों के इस्तेमाल कर सके। 
 

Created On :   26 May 2021 7:35 PM IST

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