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अपनी पसंद की खेती करने के लिए स्वतंत्र हैं किसान, हाईकोर्ट में सरकार की सफाई

डिजिटल डेस्क, मुंबई। किसी क्षेत्र में बुवाई के लिए सरकार की ओर से तय की गई फसल (क्रॉपिंग पैटर्न) किसानों के लिए अनिवार्य नहीं कि जा सकती। यह फसल मूल रुप से सिंचाई योजनाओं के मार्गदर्शन के लिए तय की जाती है। इस संबंध में राज्य सरकार के हलफनामे पर गौर करने के बाद बांबे हाईकोर्ट ने यह बात कही। इसी के साथ अदालत ने पुणे के दो किसानों की याचिकाओं को खारिज कर दिया है। किसानों ने याचिका में दावा किया था कि सरकार ने 2017 में जरुरी अध्ययन व आकड़ों का विश्लेषण किए बगैर गुंजावानी इरिगेशन प्रोजेक्ट के कमांड क्षेत्र में क्रापिंग पैटर्न तय किया है। जिससे इलाके के किसान अपनी परंपरागत ज्वार, बाजारा व धान की खेती करने से वंचित हो गए हैं। सरकार ने इस क्षेत्र में फलों व मेवो की खेती करने को मंजूरी दी है। जो इस क्षेत्र के अनुकूल नहीं है। इस तरह से एक क्षेत्र के लिए फसल तय करना किसानों के मौलिक अधिकारों का हनन है। इसके अलावा सरकार ने इलाके में सिंचाई के लिए पानी पाइपलाइन से देना तय किया है। सरकार ने जल नियमन से जुड़े कानून का पालन किए बिना ऐसा किया है। जबकि पहले किसानों को बांधों व नहर के जरिए पानी लेने की छूट थी। न्यायमूर्ति अकिल कुरेशी व न्यायमूर्ति एसजे काथावाल की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान विभागीय संयुक्त कृषि निदेशक ने हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर साफ किया कि किसानों पर सरकार द्वारा तय फसल की खेती करना बंधनकारक नहीं है। किसान अपनी इच्छा के मुताबिक अपनी पसंद की खेती करने के लिए स्वतंत्र हैं। सरकार हर क्षेत्र के मुताबिक जरुरी अध्ययन व विभिन्न पहलूओं पर गौर करके किसानों के फायदे के लिए एक फसल तय करती है ताकि वे एक खास फसल की अधिक से अधिक पैदावार कर सके। सरकार की ओर से किसानों के लिए तय किया क्रापिंग पैटर्न अनिवार्य न हो कर सुझाव स्वरुप होता है। सरकार ने जल सरंक्षण व जमीन का अधिग्रहण करने से बचने के लिए पाइप लाइन के माध्यम से किसानों को पानी की आपूर्ति करने का निर्णय लिया है। क्योंकि नहर बनाने के लिए जमीन का अधिग्रहण करना पड़ता। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिका से जुड़ा मुद्दा सरकार का नीतिगत मामला है। याचिकाकर्ता ने क्रापिंग पैटर्न से जुड़े आदेश को सहीं तरीके से नहीं समझा है। सरकार किसानों के हित व फायदे को ध्यान में रखकर क्षेत्र के लिए फसल तय करती है. पर वह भी यह किसानों के लिए अनिवार्य नहीं है। जहां तक बात पानी की आपूर्ति की है तो वह जल संरक्षण को ध्यान में रखकर की गई है। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया।
अपने जैविक माता-पिता की जानकारी की तलाश में जुटी विदेशी महिला को हाईकोर्ट ने दी राहत
इसकेे अलावा अपने जैविक माता-पिता की तलाश में महाराष्ट्र आयी एक विदेशी महिला को बांबे हाईकोर्ट ने राहत प्रदान की है। यह विदेशी महिला स्विटजरलैंड की नागरिक है। जिसे स्विटजर लैंड के एक दंपति ने 1978 में मुंबई के एक आशा सदन से गोद लिया था। अब यह महिला अपने जड़ो की तलाश में मुंबई आयी है। और दत्तक से जुड़े विभाग से अपने जैविक माता-पिता की जानकारी जुटाने की कोशिश कर रही है। चूंकी उसके लिए स्विटजरलैंड से बार-बार भारत आ पाना संभव नहीं है। इसलिए उसने पुणे की एक महिला को अपने दत्तक से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करने के लिए पावर ऑफ अट्रॉनी दी है। लेकिन राज्य में दत्तक से जुड़े सरकार के प्राधिकरण से संबंधित अधिकारी उस महिला के साथ सहयोग नहीं कर रहे है जिसे विदेशी महिला ने अपने विषय में जानकारी निकालने के लिए पावर आफ अट्रॉनी दी है। लिहाजा विदेशी महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति अकिल कुरैशी व न्यायमूर्ति एसजे काथावाला की खंडपीठ के सामने विदेशी महिला की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान सहायक सरकारी वकील ने खंडपीठ के सामने कहा कि नियमानुसार तीसरे व्यक्ति को गोद लिए गए शख्स के बारे में सूचनाएं व दस्तावेज देने की अनुमति नहीं है। जबकि याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मेरी मुवक्किल ने एक महिला को लिखित रुप में पावर ऑफ अट्रॉनी देकर अपने दत्तक से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए अधिकृत रुप से नियुक्त किया है। ऐसे में सरकारी अधिकारियों से असहयोग की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि गोद लिए गए बच्चे से जुड़ी गोपनीय व संवेदनशील जानकारी साझा करने से रोकने के लिए सरकार की ओर से बनाए गए नियम सारहनीय है लेकिन जिसे गोद लिया गया है यदि वह स्वयं किसी तीसरे व्यक्ति को पावर ऑप एट्रॉनी जरिए नियुक्ति करता है तो ऐसी स्थिति में उस अधिकृत व्यक्ति को जानकारी देनी चाहिए। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने दत्तक से जुड़े प्राधिकरण को उसके पास विदेशी महिला से संबंधित उपलब्ध जानकारी उस महिला को देने को कहा है जिसे विदेशी महिला ने पावर ऑफ अट्रॉनी दी है। खंडपीठ ने इस विषय पर विदेशी महिला को एक हलफनामा भी देने को कहा है और उसमे स्पष्ट करने को कहा है कि जानकारी देने के बाद वह खुद से जुड़ी गोपनीयता के भंग होने का दावा नहीं करेगी। इस तरह खंडपीठ ने अपनी ज़ड़ो की तलाश में भारत आयी विदेशी महिला को राहत प्रदान की और याचिका को समाप्त कर दिया।
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Real Estate: खरीदना चाहते हैं अपने सपनों का घर तो रखे इन बातों का ध्यान, भास्कर प्रॉपर्टी करेगा मदद

डिजिटल डेस्क, जबलपुर। किसी के लिए भी प्रॉपर्टी खरीदना जीवन के महत्वपूर्ण कामों में से एक होता है। आप सारी जमा पूंजी और कर्ज लेकर अपने सपनों के घर को खरीदते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि इसमें इतनी ही सावधानी बरती जाय जिससे कि आपकी मेहनत की कमाई को कोई चट ना कर सके। प्रॉपर्टी की कोई भी डील करने से पहले पूरा रिसर्च वर्क होना चाहिए। हर कागजात को सावधानी से चेक करने के बाद ही डील पर आगे बढ़ना चाहिए। हालांकि कई बार हमें मालूम नहीं होता कि सही और सटीक जानकारी कहा से मिलेगी। इसमें bhaskarproperty.com आपकी मदद कर सकता है।
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ध्यान रखें की प्रॉपर्टी RERA अप्रूव्ड हो
कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले इस बात का ध्यान रखे कि वो भारतीय रियल एस्टेट इंडस्ट्री के रेगुलेटर RERA से अप्रूव्ड हो। रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवेलपमेंट एक्ट, 2016 (RERA) को भारतीय संसद ने पास किया था। RERA का मकसद प्रॉपर्टी खरीदारों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देना है। राज्य सभा ने RERA को 10 मार्च और लोकसभा ने 15 मार्च, 2016 को किया था। 1 मई, 2016 को यह लागू हो गया। 92 में से 59 सेक्शंस 1 मई, 2016 और बाकी 1 मई, 2017 को अस्तित्व में आए। 6 महीने के भीतर केंद्र व राज्य सरकारों को अपने नियमों को केंद्रीय कानून के तहत नोटिफाई करना था।