हाईकोर्ट में सीबीआई का दावा- दस्तावेज नहीं सौंप रही राज्य सरकार

Former Home Minister Deshmukh may face legal action in money laundering case
हाईकोर्ट में सीबीआई का दावा- दस्तावेज नहीं सौंप रही राज्य सरकार
अनिल देशमुख को ईडी ने पांचवी बार जारी किया समन हाईकोर्ट में सीबीआई का दावा- दस्तावेज नहीं सौंप रही राज्य सरकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनीलांड्रिंग से जुड़े मामले में राज्य के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ फिर एक नया समन जारी किया है। समन में ईडी ने देशमुख को बुधवार को ईडी कार्यालय में उपस्थित रहने को कहा है। ईडी की ओर से देशमुख को जारी की गई है यह पांचवा समन नोटिस है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक ईडी ने यह नोटिस देशमुख का बयान दर्ज करने के उद्देश्य से प्रिवेंशन आफ मनी लांड्रिग कानून (पीएमएलए) के तहत जारी किया है। जिसमें देशमुख को 18 अगस्त को ईडी के कार्यालय में उपस्थित रहने को कहा गया है। पूछताछ के लिए ईडी की ओर से जारी किए गए समन को अनुचित बताते हुए देशमुख अब तक एक बार भी ईडी के सामने हाजिर नहीं हुए हैं।  देशमुख के बेटे ऋषिकेष को भी ईडी की ओर से उपस्थित रहने के लिए नोटिस जारी किया गया है। देशमुख की पत्नी व बेटा भी समन जारी करने के बावजूद ईडी के सामने हाजिर नहीं हुए है। इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता देशमुख को ईडी की कड़ी कार्रवाई से राहत देने से इंकार कर दिया था। ऐसे में माना जा रहा है कि अब देशमुख की मुश्किले बढ सकती हैं। 

हाईकोर्ट में सीबीआई का दावा, दस्तावेज नहीं सौप रही राज्य सरकार 

उधर राज्य सरकार ने बांबे हाईकोर्ट को सूचित किया है कि वह राज्य के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के कथित आरोपों की जांच कर रही सीबीआई के साथ जांच में सहयोग के लिए तैयार है, किंतु सीबीआई ने इस प्रकरण को लेकर जो दस्तावेज महाराष्ट्र सरकार से मांगे है वे इस मामले में प्रासांगिक नहीं है। मंगलवार को राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में सीबीआई के आवेदन के जवाब में अपना हलफनामा दायर किया। आवेदन में सीबीआई ने दावा किया है कि देशमुख से जुडे मामले की जांच में राज्य सरकार सहयोग नहीं कर रही है। इसके साथ ही सरकार मामले से जुड़े दस्तावेज भी सीबीआई को नहीं दे रही है। सीबीआई ने पिछले माह यह आवेदन दायर किया था जिसमें दावा किया गया है कि राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत काम कर रही है। क्योंकि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि सीबीआई राज्य के पुलिस विभाग में पुलिसकर्मियों के तबादले व तैनाती से जुड़े पहलू के अलावा पुलिस अधिकारी सचिन वाझे (अब बर्खास्त) की सेवा बहाली की जांच कर सकती है। 

जबकि राज्य सरकार ने अपने हलफनामें में कहा है कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सीबीआई को पुलिस विभाग के तबादले व तैनाती के उस पहलू की जांच करने का अधिकार नहीं है, जिसका राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता व पूर्व गृहमंत्री देशमुख प्रकरण से संबंध नहीं है। इस लिहाज से सीबीआई को जांच के मामले में निरंकुश व मनमाना अधिकार नहीं मिला है। हलफनामे में कहा गया है कि सीबीआई वे कागजात व सूचनाएं मांग रही है, जिसका जांच के दायरे वाले मामले से कोई संबंध नहीं है। एक तरह से सीबीआई अप्रासंगिक दस्तावेज मांग रही है। सीबीआई की ओर से जांच के नाम पर मांगे जा रहे दस्तावेजों का पूर्व गृहमंत्री देशमुख व उनसे जुड़े लोगों से कोई संबंध नहीं है। हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा है कि सीबीआई इस मामले में अपने अधिकार व  क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर सूचनाएं व दस्तावेज मांग रही है। 

अदालत के आदेश का पालन हो

न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एन जे जमादार की खंडपीठ ने कहा कि हम इस मामले को अब 20 अगस्त 2021 को सुनेंगे। खंडपीठ ने सरकार को आगाह करते हुए कहा कि फिलहाल हम कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन सरकार सनिश्चित करे कि अदालत के आदेश का पालन हो। गृह विभाग के संयुक्त सचिव की ओर से दायर किए गए हलफनामे में कहा गया है कि राज्य सरकार व सरकारी अधिकारी कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य हैं। कोर्ट के आदेश के तहत जांच में सीबीआई के साथ सहयोग कर रहे हैं। राज्य सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि कोर्ट के आदेश को नीचा दिखाने की मंशा नहीं है। हलफनामे के मुताबिक सीबीआई जो दस्तावेज मांग रही है वे दूसरे मामले से जुड़े हैं जिनकों लेकर राज्य की सायबर पुलिस ने अपनी जांच शुरु की है। इस तरह से देखा जाए तो सीबीआई दस्तावेज मांगकर सायबर पुलिस की जांच में हस्तक्षेप कर रही है। 
 

सुप्रीम कोर्ट का भी अंतरिम राहत देने से इंकार

इससे पहले अनिल देशमुख को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से मना कर दिया। उन्होंने मामले में सुप्रीम कोर्ट से किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा की गुहार लगाई थी। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पूर्ण पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अदालत उन्हें कोई अंतरिम राहत देने के इच्छुक नहीं है। उन्हें सीआरपीसी, 1973 के तहत उपलब्ध उपचारों का उपयोग करने की स्वतंत्रता है। देशमुख की ओर से पेश वकील विक्रम चौधरी ने दलील देते हुए कहा कि ईडी के आदेशों पर निरंतरता नहीं है। उन्होंने कहा कि एक पहलू पर विचार नहीं किया गया है और वह है धन-शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 50 है।

बता दें कि देशमुख ने शीर्ष अदालत से अपने खिलाफ चल रही जांच को स्थगित के साथ ईडी द्वारा भेजे जा रहे समन्स को रद्द करने और संभावित गिरफ्तारी रोकने की मांग की थी, लेकिन पीठ ने अनिल देशमुख की याचिका में की गई सभी मांगे ठुकरा दी। हालांकि, पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी से बचने के लिए प्री अरेस्ट बेल के लिए वे मुंबई के स्थनीय न्यायालय में अपील कर सकते है। इस बारे में स्थानीय अदालत ही फैसले लेती है। सुप्रीम कोर्ट इसमें उनकी कोई मदद नहीं कर सकता। गौरतलब है कि देशमुख और अन्य के खिलाफ ईडी का मामला तब सामने आया जब सीबीआई ने उन पर मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा किए गए 100 करोड़ रुपये की रिश्वत के आरोपों से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले मामला दर्ज किया।

Created On :   17 Aug 2021 2:47 PM IST

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