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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का घोंटा जा रहा गला : डॉ. पवार
डिजिटल डेस्क, नागपुर। महिला नैसर्गिक रूप से स्वतंत्र है, लेकिन उसे गुलाम करने की व्यवस्था आज भी कायम है। एक ओर महिलाओं के देह पर कपड़े, बोलने, लिखने, व्यवहार पर आपत्ति जताई जाती है और राजनेताओं द्वारा गैरजिम्मेदार बयान दिए जाते हैं। दूसरे ओर देश में अभिव्यक्ति स्वतंत्रता की पग-पग गला घोंटा जा रहा है। यह टिप्पणी प्रख्यात आंबेडकरी लेखिका डॉ. उर्मिला पवार ने किया। अ.भा. आंबेडकरी साहित्य और संस्कृति संवर्धन महामंडल के दूसरे आंबेडकरी महिला साहित्य सम्मेलन का आयोजन सुलोचनाबाई डोंगरे परिसर (दीक्षाभूमि में) में नलिनी सोमकुंवर सभागृह में शनिवार से दो दिवसीय आयोजन किया गया है।
इस अवसर पर सम्मेलन के रजनी तिलक विचार मंच पर उद्घाटिका प्रसिद्ध कथाकार नूर जहिर, स्वागताध्यक्ष कुसुमताई तामगाडगे, प्रमुख अतिथि डॉ. वृंदा साखरकर, सम्मलेन पूर्वाध्यक्ष कौशल पनवार, मुख्य संयोजक छायाताई खोब्रागडे, अ.भा. आंबेडकरी साहित्य व संस्कृति संवर्धन महामंडल के अध्यक्ष अशोक बुरबुरे उपस्थित थे। डॉ. पवार ने आगे कहा कि महिलाओं को नवजीवन साहित्य, नई प्रतिमा, प्रतीक, बौद्ध साहित्य के कथा विश्व अलग-अलग साहित्य प्रकाशन से आंबेडकरी विचाराधार में आना चाहिए। प्रास्ताविक छाया खोब्रागडे ने और महामंडल की भूमिका अशोक बुरबुरे ने रखी। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. जलदा ढोके व आभार प्रदर्शन सुगंधा खांडेकर ने किया। सम्मेलन में प्रशांत वांजरे के ‘आंबेडकरी साहित्य: आकलन व निरीक्षण’ समीक्षा ग्रंथ का अतिथियों के हाथों प्रकाशन हुआ।
आंबेडकरी जनता को नक्सलवादी घोषित किया जा रहा है
डॉ. उर्मिला पवार ने कहा कि तमिलनाडु के लेखक मुरुगन को खुद को लेखक के रूप में मृत घोषित करना पड़ा। नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, कलबुर्गी, गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई। इसके विरोध में नयनतारा जैसे अनेक लेखकों ने अपना पुरस्कार मंत्रालय में जाकर मुख्यमंत्री को लौटाया। खैरलांजी के बाद दलित लड़कियों पर दुष्कर्म और हत्या की घटना होते रही हैं। असंवदेनशीलता के कारण मनुवादी विचारों को बढ़ावा मिला है। संभाजी भिड़े को सरकार ने खुला छोड़ दिया है। आंबेडकरी जनता को नक्सलवादी, माओवादी ठहराया जा रहा है। निर्दोष लोगों का जीवन बर्बाद किया जा रहा है।
संविधान के स्वतंत्रता मूल्य खतरे में : नूर जहिर
नूर जहिर ने कहा कि यह समय अत्यंत कठिन है। विचार, संचार भाषण स्वतंत्रता खतरे में है। धर्म, मॉब लिंचिंग, आरक्षण पर राजनीति शुरू है। संविधान की स्वतंत्रता मूल्य ही खतरे में है। जिसकारण देश में दलित, मुस्लिम और महिला असुरक्षित है। न्याय, समता, बंधुत्व के भारत निर्माण के लिए और महिलाओं के प्रश्न हल करने के लिए आज के लेखक व लेखिकाओं को अपनी कलम घिसनी होगी।
दूसरे अखिल भारतीय आंबेडकर महिला साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कौशल परमार ने दलित आंबेडकरी चुनौती पर अपने विचार रखे। उन्होंने मौजूदा लेखकों पर निशाना साधते हुए कहा कि आज पुरुष लेखक, महिला लेखकों से प्रमाणपत्र मांग रहे है। हमारे बीच में ही ब्राह्मणवाद पहुंच गया है। जिसकारण एक झंडा, विचारधारा के छाया में कैसे आए, यह सवाल भी उपस्थित किया। उन्होंने कहा कि जो सिर्फ वैचारिकता के आधार पर तमाशा करते है, वे आंबेडकरी विचारधारा नहीं है।
Created On :   10 March 2019 6:07 PM IST