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हाईकोर्ट : नागरिकों के मौलिक अधिकार का हनन बर्दाश्त नहीं, शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति पर आरोपी हो सकता है बरी
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने सिर्फ मुकदमा शुरु होने के आधार पर कारोबार के सिलसिले में एक शख्स को विदेश जाने से रोकने पर कड़ी नारजगी जाहिर की है। हाईकोर्ट ने कहा कि नागिरको के मौलिक अधिकारों का हनन किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जाएगा। हाईकोर्ट ने कहा कि क्या सरकार सरकारी बैंकों को कर्ज का भुगतान न करनेवाले लोगों के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर(एलओसी) जारी करने की सिफारिस से संबंधित नीति के बारे में सरकार पुनर्विचार करेगी? दरअसल कारोबारी गौरव तयाल मार्च 2019 में काम के सिलसिले में दोहा जाना चाहते थे। लेकिन जैसे ही वे एयरपोर्ट पर पहुंचे तो ब्यूरो आफ इमिगरेशन ने उन्हें यात्रा करने से रोक दिया। इमिगरेसन विभाग ने बताया कि इलाहाबाद बैंक के आग्रह पर उनके खिलाफ एलओसी जारी की गई है। तयाल के पिता एक कंपनी से जुड़े थे। जिसने बैंक से कर्ज के रुप में लिए कर्ज का भुगतान नहीं किया था। तयाल ने 2013 में इस कंपनी के निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन बाद में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। मेरा कंपनाी के कर्ज से कोई संबंध नहीं है। बैंक ने साल 2016 में डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल(डीआटी) में कर्ज की वसूली के लिए आवेदन किया। तयाल ने याचिका में दावा किया है कि बैंक जिस कर्ज की बात कह रही है उससे उनके पिता का संबंध था। बैंक ने अनावश्यक रुप से मेरे खिलाफ एलओसी जारी की है। जो की नियमों के खिलाफ है। मंगलवार को न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने तयाल की याचिका पर गौर करने के बाद कहा कि सिर्फ मुकदमा जारी होने के आधार पर किसी को विदेश जाने से नहीं रोका जा सकता है। बैंक किसी की स्वतंत्रता को इस तरह से बाधिक नहीं कर सकता है। यह मौलिक अधिकारों का हनन है। जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है। अजकल छोटे-छोटे मामलो में एलओसी जारी कर दी जाती है। इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अपने देश के नागरिकों के साथ ऐसा बरताव कैसे किया जा सकता है। खंडपीठ ने कहा कि हम बुधवार को इस मामले में आदेश जारी करेगे।
शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति के आधार पर मैजिस्ट्रेट आरोपी को कर सकता है बरी
बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी शिकायत को अनिश्चित समय तक के लिए प्रलंबित नहीं रखा जा सकता है। शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति के आधार पर मैजिस्ट्रेट को आरोपी को बरी करने का अधिकार है। हाईकोर्ट ने मुंबई निवासी केतन शाह की अपील को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है। शाह की शिकायत के आधार पर मैजिस्ट्रेट कोर्ट में चेकबाउंसिंग से जुड़ा एक मामला प्रलंबित था। 12 जून 2002 को जब बोरीवली मैजिस्ट्रेट के पास यह मामला सुनवाई के लिए आया तो इस दौरान मैजिस्ट्रेट के सामने न तो आरोपी मौजूद था और न ही शिकायतकर्ता। दोनों के वकील भी कोर्ट में उपस्थिति नहीं थे। 12 जून को ही मैजिस्ट्रेट ने अलग-अलग समय में दो बार इस मामले की अपने सामने पुकार कराई फिर भी कोई हाजिर नहीं हुआ। इसे देखते हुए मैजिस्ट्रेट ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 256 के तहत शिकायत को खारिज कर दिया और आरोपी को बरी कर दिया। मैजिस्ट्रेट ने कहा कि इस मामले में कोई मुकदमा चलाने का इच्छुक नहीं है। इसलिए शिकायत को खारिज किया जाता है। मैजिस्ट्रेट की इस निर्णय के खिलाफ शाह ने हाईकोर्ट में अपील की। न्यायमूर्ति के.आर श्रीराम के सामने अपील पर सुनवाई हुई। अपील में शाह ने कहा था कि उनकी 12 जून 2002 को उनकी तबीयत ठीक नहीं थी और उनके वकील भारत में नहीं थे। इसलिए वे मैजिस्ट्रेट के सामने हाजिर नहीं हो पाए। इसलिए उनकी शिकायत पर सुनवाई का निर्देश दिया जाए। अपील पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने पाया कि शिकायतकर्ता हाईकोर्ट में भी कई बार अनुपस्थित रहा है। चेक बाउंसिग का मामला कोई समाज के खिलाफ अपराध नहीं है। यह एक व्यक्ति विशेष के खिलाफ होनेवाला अपराध है। मैजिस्ट्रेट कोर्ट में अनुपस्थिति को लेकर शिकायतकर्ता ने बीमार होने की बात कही थी लेकिन बीमारी का कोई प्रमाण तक पेश नहीं किया है। इस मामले में मैजिस्ट्रेट ने अपने विशेषाधिकार का सही इस्तेमाल किया है। किसी भी शिकायत को अनिश्चित समय के लिए प्रलंबित नहीं रखा जा सकता है। जल्दी से सुनवाई पाना आरोपी का मौलिक अधिकार है। इसलिए अपील को खारिज किया जाता है।
Created On :   3 Dec 2019 7:29 PM IST