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गैंगरेप-हत्या का आरोपी फांसी की सजा से हुआ बरी
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने दो महिलाओं के साथ सामुहिक दुष्कर्म व एक महिला की हत्या करने के मामले में फांसी की सजा पाए आरोपी को बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी पर लगे आरोपों को संदेह से परे जाकर साबित करने में विफल रहा है। इसलिए आरोपी की फांसी की सजा को कायम नहीं रखा जा सकता है।
न्यायमूर्ति साधना जाधव व न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए मामले में दोषी पाए गए आरोपी रहिमुद्दीन शेख को तत्काल जेल से रिहा करने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने साफ किया है कि सिर्फ कोई अपराध बहुत जघन्य व बर्बर है इसलिए उसे बगैर पुष्ट सबूत के साबित नहीं किया जा सकता। मौजूदा मामला बहुत ज्यादा संदेह से जुड़ा है। इस मामले में आरोपी को पहले ही संदेह का लाभ मिलना चाहिए था। इस प्रकरण में आरोपी को फांसी की सजा देने का सवाल ही नहीं पैदा होता है।
ठाणे कोर्ट ने साल 2012 के इस मामले में शेख को फांसी की सजा सुनाई थी। जबकि एक आरोपी को नाबालिग घोषित कर दिया था। इसलिए उसके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया गया था। खंडपीठ ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि दोनों महिलाएं कचरा बिनती थी। जिसमें से एक की उम्र 28 साल थी जबकि दूसरी की उम्र 19 साल थी। मई 2012 में दोनों महिलाएं आरोपियों के साथ नई मुंबई गई थी। जहां दोनों महिलाओं ने आरोपियों के साथ शराब पी थी। फिर उनके साथ दुष्कर्म किया गया। इस दौरान एक महिला की घटना स्थल पर ही मौत गई। जबकि दूसरी महिला भाग गई और उसके बयान के आधार पर पुलिस ने दो आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
पुलिस ने जांच में की भारी लापरवाही
खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में दूसरी पीड़िता की गवाही विश्वसनीय नजर नहीं आती है। वह खुद यह नहीं जानती है कि पुलिस ने क्या लिखा है। पुलिस ने मामले की जांच बेहद लापरवाही पूर्ण ढंग से की है। इस मामले में मुकदमा भी लापरवाही से चलाया गया और आरोपी को फांसी की सजा सुनाई गई है। अभियोजन पक्ष इस मामले में विश्वसनीय सबूत पेश नहीं कर पाया है। इसलिए आरोपी को मामले से बरी किया जाता है। खंडपीठ ने कहा कि यह अभियोजन पक्ष का दायित्व है कि वह आरोपी पर लगे आरोपों को संदेह से परे जाकर साबित करे। कोर्ट का काम यह नहीं है कि वह अपराध के घटित होने की कल्पना करे।
Created On :   3 Dec 2021 12:25 PM IST