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बगैर अदालत की मंजूरी के आपराधिक मामले वापस नहीं ले सकती सरकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। भीमा-कोरेगांव आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने पूरे राज्य भर में चक्का जाम कर दिया तो मराठा आदोलन के दौरान भी आंदोलनकारियों ने जमकर हंगाम किया था। कोकण में नाणार परियोजना को लेकर भी आंदोलनकारी सड़कों पर नजर आए थे। मेट्रो कारशेड का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए भी पुलिस को काफी मशक्त करनी पड़ी। कानून-व्यवस्था के लिए बड़ा संकट पैदा करनेवाले इन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले अब सरकार वापस लेना चाहती है। सरकार के इस फैसले पर कानून के जानकारों की मिली जुली प्रतिक्रिया सामने आयी है। सरकार की ओर से कई चर्चित आपराधिक मामलों की पैरवी करनेवाले मशहूर अधिवक्ता उज्जवल निकम का कहना है कि सरकार के पास आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए आपराधिक मामले वापस लेने का अधिकार है पर यह एक शासनादेश से नही होगा। अदालत की मंजूरी के बिना यह मामले वापस नहीं लिए जा सकते है। सरकारी वकील को इस संबंध में संबंधित कोर्ट में आवेदन दायर कर कहना पड़ेगा कि वह आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए मामले वापस लेना चाहती है। सार्वजनिक शांति बनाए रखने व जनहित में सरकार के पास आपराधिक मामले वापस लेने का अधिकार है। इसके लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 321 में प्रावधान किया गया है।
आंदोलन के दैरान मामले वापस लेने की तैयारी में है ठाकरे सरकार
वहीं पूर्व एडिशनल सालिसिटर जनरल राजेंद्र रघुवंशी का मानना है कि इस तरह से मामले वापस लेने से पुलिस के मनोबल पर असर पड़ता है क्योंकि प्रदर्शन व आंदोलन के दौरान पुलिस ही सड़क पर होती है और उसे कानून व्यवस्था को कायम रखने के लिए लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ती है। यदि ऐसे मामले वापस लेंगे तो लोग बेखौफ होकर सड़कों पर उतरेंगे। इसलिए भले सरकार के पास मामले वापस लेने का अधिकार है, पर इस निर्णय को अदालत की मंजूरी के बिना लागू नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि सरकारी वकील भले मामले वापस लेने के लिए आग्रह करेंगे लेकिन यदि न्यायाधीश को मामला गंभीर लगा तो वह अपने विवेकाधिकार के तहत मामले वापस लेने पर रोक भी लगा सकते हैं। इसलिए संतुलन बनाने के लिए कानून में न्यायालय की अनुमति के बिना आपराधिक मामले वापस नहीं लिए जा सकते है। पूर्व प्रशासनिक अधिकार व अधिवक्ता आभा सिंह की माने तो देश में कानून का राज जरुरी है। सरकार के पास भले ही मामले वापस लेने का हक है लेकिन ऐसा एक आम आदेश से नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में राजनीतिक रंजीश के चलते व अनायास दर्ज किए जाने वाले मामले वापस लेने का अधिकार दिया है। लेकिन कानून-व्यवस्था ठीक रहे इसके लिए आपराधिक मामले कोर्ट की मंजूरी के बिना वापस नहीं लिए जा सकते।
Created On :   5 Dec 2019 7:32 PM IST