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हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी - सरकारी संपत्ति को पिता की संपत्ति मान रहे सरकारी अधिकारी
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकारी अधिकारी राज्य की संपत्ति को अपने पिता द्वारा अर्जित की गई संपत्ति मान रहे हैं। हाईकोर्ट ने नियमों की अनदेखी कर महानगर तेजी से हो रहे अवैध निर्माण को देखते हुए यह तल्ख टिप्पणी की है। इसके साथ ही अनाधिकृत निर्माण को लेकर राज्य सरकार व मुंबई महानगरपालिका को कड़ी फटकार लगाई। इससे पहले राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि जिन झोपड़ाधारकों के पास वैध फोटोपास है उसे स्लम कानून के तहत संरक्षित ढांचा माना गया है। इसलिए 1 जनवरी 2000 के पहले बने ऐसे ढांचे को नहीं गिराया जा सकता है। इस पर मामले की न्यायमित्र की रुप में पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता शरण जगतियानी ने कहा कि कानून के तहत झोपड़े को संरक्षण दिया गया है। पर कोई कानून स्थानीय निकाय अथवा मुंबई महानगरपालिका को ऐसे ढांचे के खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं रोकता है, जो झोपड़े की तय कई गई 14 फुट की ऊचाई से जुड़े नियमों का उल्लंघन करता हो।
इसलिए अवैध ढांचे के तहत कार्रवाई की जा सकती है। उन्होंने बढते अवैध निर्माण को लेकर कोर्ट को सौपी गई रिपोर्ट को पूरी तरह से न्यायसंगत ठहराया। इन दलीलों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारी अधिकारी राज्य सरकार को अपने पिता द्वारा अर्जित की हुई संपत्ति मान रहे। जिसके चलते नियमों का पालन किए बिना तेजी से अवैध निर्माण बढ रहा है।
यहां अतिक्रमण करने वालों को मिलता है घर
खंडपीठ ने मुंबई महाननगर क्षेत्र में अवैध निर्माण व मालवणी में गिरी इमारत हादसे की घटना का स्वत संज्ञान लिया है और इसे जनहित याचिका में परिवर्तित किया है। खंडपीठ ने कहा कि मुंबई इकलौता ऐसा शहर है जहां अतिक्रमण करनेवाले को मुफ्त में मकान मिलता है। खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार ऐसा कानून लेकर जिससे इमारत गिरने के चलते लोगों की होनेवाले मौत को रोका जा सके। खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को गरीबों को घर देने के मामले में सिंगापुर के हाउसिंग मॉडल से प्रेरणा लेनी चाहिए।
Created On :   6 July 2021 9:49 PM IST