दीमक खा रही सरकारी रिकॉर्ड, कलेक्टर आफिस में नहीं सुरक्षा के इंतजाम

Government records eating termites, no security arrangements in collector office
दीमक खा रही सरकारी रिकॉर्ड, कलेक्टर आफिस में नहीं सुरक्षा के इंतजाम
दीमक खा रही सरकारी रिकॉर्ड, कलेक्टर आफिस में नहीं सुरक्षा के इंतजाम

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  वर्ष 1916 से 1960 के बीच का आपको अपने जन्म, जमीन और थानों से संबंधित रिकॉर्ड तलाशना है, तो वह जिलाधिकारी कार्यालय के रिकॉर्ड रूम में मिलेगा या नहीं? इसकी कोई गारंटी नहीं है। 1916 से 1960 के बीच के कुछ रिकॉर्ड पहले से गायब हैं, जो हैं, उनमें से ज्यादातर में अब दीमक लग चुकी है। फिलहाल इसे सहेजकर रखने के लिए न तो किसी केमिकल का इस्तेमाल हो रहा है और न कोई उपाय योजना की जा रही है। विशेष यह कि प्रशासन ने इन रिकार्डों को 2015 में स्कैनिंग किया है, लेकिन इनका अब तक न तो डिजिटाइजेशन और न ही इन्हें ऑनलाइन किया गया है। बताया गया कि सॉफ्टवेयर चेकिंग में कुछ दिक्कतें आ रही हैं। फिलहला प्रक्रिया शुरू होने का दावा किया गया है। अब रिकॉर्ड के एक-एक पेज संभालने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। 

रोज 30-40 आवेदक रिकॉर्ड लेने पहुंचते है
नागपुर जिले के प्रत्येक गांव, तहसील, शहर के हर एक परिवार  का यहां कोतवाली, पंजीयन, राजस्व व भूमि अभिलेख रिकॉर्ड या संबंधित पुलिस थानों में उसके परिवार के नाम का उल्लेख रिकॉर्ड में मिलता है। विशेषकर जाति वैधता प्रमाण पत्र या 1960 से पहले का स्थानीय नागरिक दिखाने के लिए इन दस्तावेजों का इस्तेमाल होता है। इस रिकॉर्ड के लिए जिलाधिकारी कार्यालय स्थित रिकॉर्ड रूम में रोजाना बड़ी संख्या में नागरिक पहुंचते हैं। करीब 30 से 40 आवेदक रोज पहुंचते हैं। कुछ का रिकार्ड मिल जाता है, लेकिन कुछ का नहीं मिल पाता। पता चलता है कि उसका रिकॉर्ड ही गायब है या जो रिकॉर्ड है, उसमें दीमक लगने से स्पष्ट दिख नहीं पाता है। ऐसे में संबंधित व्यक्ति को रिकॉर्ड नहीं मिलने का प्रमाणपत्र दे दिया जाता है। इस तरह का प्रमाणपत्र लेने वालों की संख्या बढ़ी है। यह प्रमाणपत्र लेकर वे आगे बढ़ जाते हैं। प्रमाणपत्र नहीं मिलने से आवेदकों को सरकारी कामों में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

खोखला निकला डिजिटाइजेशन का दावा
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि कई सालों से ये रिकॉर्ड अस्त-व्यस्त पड़े थे, जिस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था। कई जगह जाली लगी थी। वहां  कागजातों में दीमक लगी है। कुछ साल पहले ही रिकॉर्ड रूम को व्यवस्थित किया गया है। अब कुछ हद तक ठीक-ठाक स्थिति में रिकॉर्ड हैं। 2015 में इन सभी दस्तावेजों की स्कैनिंग भी की गई है, लेकिन स्कैनिंग के बाद इसके डिजिटाइजेशन या ऑनलाइन होने का दावा किया जा रहा था, जो धरा का धरा रह गया। रिकॉर्ड जैसे थे, वैसे ही पड़े हैं। दावा किया गया कि डिजिटाइजेशन की प्रक्रिया शुरू है, लेकिन सॉफ्टवेयर में तकनीकी खराबी आने से काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है।

Created On :   4 Jan 2020 1:29 PM IST

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