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जंगल के बीच नदी में नाव चला कर स्कूल जाने वाली बच्चियों की मदद करे सरकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि लड़कियों को सुरक्षित व अनुकुल वातावरण प्रदान करके ही ‘बेटी बचाओं-बेटी पढाओं’ जैसे सराहनीय लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के सतारा जिले में घने जंगल के बीच चार किमी नाव चलाकर स्कूल जाने को मजबूर लड़कियों की पीड़ा को जानने के बाद यह बात कही है। हाईकोर्ट ने इस संबंध में मीडिया में आई खबर का स्वयं संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को इस मामले लड़कियों को सहयोग प्रदान करने के लिए सभी जरुरी कदम उठाने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति पीबी वैराले व न्यायमूर्ति अनिल किल्लोर की खंडपीठ ने पाया कि सतारा जिले के जवली तहसील में स्थित खिरवंदी गांव की लड़किया अपनी जान जोखिम में डालकर रोजाना चार किमी नाव चलाकर स्कूल जाने को मजबूर हैं। सुबह नौ बजे स्कूल पहुंचने के लिए नाव से जानेवाली लड़कियों की हकीकत पर हाईकोर्ट ने हैरानी जाहिर की है। लड़कियां स्कूल जाने के लिए कोयना बांध के एक छोर से अपनी यात्रा की शुरुआत करती हैं और घने जंगल के बीच चार किमी की यात्रा पूरी कर स्कूल पहुंचती हैं। खबर के मुताबिक इन जंगलों में बाघ व भालु जैसे जंगली जानवर भी पाए जाते हैं। खंडपीठ ने कहा कि इस तरह से स्कूल जानेवाली लड़कियों की पीड़ा व्यक्त करने के लिए हमारे पास शब्दों का अभाव नजर आ रहा है।
खंडपीठ ने कहा कि पढाई के लिए चुनौतियों को दर्शानेवाली यह खबर एक ओर उस विसंगति को दर्शाती है जिसका लड़कियां रोज सामना करती है वहीं दूसरी ओर यह खबर शिक्षा को लेकर लड़कियों की दृढ निश्चय को व्यक्त करती है। खंडपीठ ने कहा कि इस परिस्थिति के मद्देनजर ‘बेटी बचाओ-बेटी पढाओं’ जैसा प्रशंसनीय लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है जब लड़कियों को सुरक्षित व अनुकूल वातावरण प्रदान किया जाए। खंडपीठ ने फिलहाल राज्य सरकार को स्कूल जानेवाली लड़कियों को हर संभव सहयोग प्रदान करने को कहा है और इस खबर को जनहित याचिका में परिवर्तित कर इस मामले में और निर्देश जारी करने के लिए उपयुक्त खंडपीठ के समक्ष रखने का निर्देश दिया है।
Created On :   1 Feb 2022 9:18 PM IST