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मेलघाट में मौतें रोकने अल्पकालिक योजना बनाए सरकार, चंद्रपुर में शराब बंदी हटाने के खिलाफ भी याचिका
डिजिटल डेस्क, मुंबई। महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में शराब बंदी हटाए जाने के राज्य सरकार के निर्णय के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। यह याचिका डॉक्टर अभय बंग ने दायर की है। सोमवार को यह याचिका मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रफिक दादा व उदय वारुंजेकर ने खंडपीठ के सामने कहा कि राज्य सरकार ने चंद्रपुर में शराब पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया है। चंद्रपुर एक आदिवासी इलाका है। इससे सबसे ज्यादा महिलाएं व बच्चे प्रभावित होंगे। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। राज्य मंत्रिमंडल की ओर से मई 2021 में चंद्रपुर में शराबबंदी हटाने का लिया गया निर्णय मनमानीपूर्ण व अतर्किक है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि इस याचिका को हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ के सामने दायर किया जाना चाहिए। क्योंकि चंद्रपुर नागपुर खंडपीठ के क्षेत्राधिकार में आता है और राज्य सरकार ने सिर्फ चंद्रपुर के लिए यह फैसला लिया है। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता रफीक दादा ने कहा कि चंद्रपुर में शराब बंदी हटाने का निर्णय मुंबई स्थित मंत्रालय में लिया गया है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि वैसे तो हर फैसला मंत्रालय में होता है इसका अर्थ यह नहीं है कि हर मामला यहां पर सुना जाए। जहां तक बात चंद्रपुर की है तो यह इलाका नागपुर खंडपीठ के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसलिए इस याचिका पर वहां सुनवाई होना अपेक्षित है। इस मामले को लेकर कुल तीन याचिकाएं दायर की गई है। हालांकि खंडपीठ ने अभी यह तय नहीं किया है कि वे इस याचिका पर सुनवाई करेंगे या फिर इसे नागपुर की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए भेजा जाएगा।
मेलघाट सहित आदिवासी इलाकों में मौतों को रोकने अल्पकालिक योजना बनाए सरकार
बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार मेलघाट व आदिवासी इलाकों में कुपोषण से होनेवाली मौतों को रोकने के लिए अल्पकालिक योजना बनाए। हाईकोर्ट ने कहा कि हम नहीं चाहते है कि इस मामले को लेकर आईपीएस अधिकारी छेरिंग दोरजे की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट कुछ दिनों बाद धूल में ढकी मिले। इसलिए सरकार इस रिपोर्ट के आधार पर मेलघाट व आदिवासी इलाकों में कुपोषण से जुड़े मुद्दे के निराकरण के लिए अल्पकालिक योजना तैयार करे और विभिन्न विभागों के सहयोग से ठोस कार्ययोजना बनाए। हाईकोर्ट में साल 2007 में मेलघाट में कुपोषण से होनेवाली मौत को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है।सोमवार को यह याचिका मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान कोर्ट के आदेश के तहत नागपुर रेंज के विशेष पुलिस महानिरीक्षक छेरिंग दोरजे ने मेलघाट में कुपोषण से होनेवाली मौत व स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर अपनी रिपोर्ट खंडपीठ के सामने पेश की। रिपोर्ट में श्री दोरजे ने कहा कि मेलघाट में कुपोषण से निपटने के लिए व्यापक योजना बनाने की जरुर है। जिससे गर्भवती व बच्चों को स्तनपान कराने वाली महिलाओं की परेशानी का हल निकाला जा सके। मेलघाट में अभी भी स्वास्थ्य सेवा पूरी तरह से आशा वर्कर पर निर्भर है। रिपोर्ट में दोरजे ने कहा है कि आदिवासी इलाको में लोग अपनी पुरानी प्रथाओं व अस्थाओं के चलते इलाज के लिए सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर जाने में हिचकिचाहट दिखाते है। इन इलाकों में लोग सरकारी अस्पताल में जाने की बजाय जब तांत्रिक के पास जाते तो उनकी सेहत और बिगड़ती है। इस पर खंडपीठ कहा कि आदिवासी इलाकों के लोगों की जो भी मान्यताएं व परंपराए हो लेकिन बात जब स्वास्थ्य की हो तो उन्हें मुख्यधारा से जुड़ाना चाहिए। और उपचार को लेकर अपनी हिचकिचाहट को छोड़ना चाहिए।
आदिवासी इलाकों से पलायन एक बड़ा मसला
रिपोर्ट में श्री दोरजे ने कहा है कि आदिवासी इलाको में पलायन एक बड़ा मुद्दा है। रिपोर्ट के मुताबिक मेलघाट में बड़े पैमाने पर महिलाएं दूसरे इलाकों में पलायन करती हैं। कई बार ये महिलाएं गर्भवती भी होती हैं। इनके मेलघाट में रहते तो इन्हें पोषक आहार मिल सकता है पर दूसरी जगह पर यह सुविधा नहीं मिल पाती। जब वे मेलघाट वापस लौटती हैं तो समय वे काफी कमजोर होती हैं। दोजरे ने रिपोर्ट में कहा है कि मेलघाट इलाके में लोगों के घरों की बनावट ऐसी है कि वहां पर हवा की आवाजाही (वेंटिलेशन) न के बराबर होता है। इससे वहां काफी बीमारी फैलती है और लोग उसकी चपेट में आते रहते हैं। उन्होंने कहा कि इस इलाके में शिक्षा का प्रसार भी काफी कम है। लोगों को जागरुक किया जाना जरुरी है।
चार बच्चों की हुई मौत
राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने कहा कि वे इस रिपोर्ट के आधार पर अगली सुनवाई के दौरान पहले सरकार की अल्पकालिक योजना के बारे में जानकारी देंगे। इस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता बंडू साने ने कहा कि अभी भी नंदुरबार पालघर व डहाणू में बच्चों की मौत हो रही है। उन्होंने कहा कि इन इलाकों में चार सौ बच्चों की मौत हुई है। उन्होंने कहा कि जिस तरह श्री दोरजे मेलघाट गए वैसे अन्य अधिकारियों को भी जाने के लिए कहा जाए। उन्होंने कहा कि आदिवासी इलाकों में स्कूल शुरु करने का निर्देश दिया जाए और उन्हें गर्म भोजन उपलब्ध कराया जाए। खंडपीठ ने अब 3 जनवरी को इस याचिका पर सुनवाई रखी है।
Created On :   20 Dec 2021 8:57 PM IST