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लॉक डाउन में बेसहारों के लिए वरदान साबित हुए गुरद्वारे, गुरु नानक पात्शाह का संदेश इस तरह हुआ साकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। कोरोना संक्रमण के दौरान प्रवासी मजदूरों और बेसहारा लोगों के लिए गुरूद्वारे वरदान साबित हुए हैं। महानगर के पश्चिमी उपनगर मरोल इलाके में स्थित गुरूद्वारे की ओर से शहीद भगतसिंह विचार मंच नामक संस्था के जरिए सख्त लॉकडाउन के दौरान फंसे चार हजार लोगों को रोजाना खाने के पैकेट बांटे गए थे,
दिशानिर्देशों के मुताबिक मनेगा प्रकाश पर्व
दूसरे त्यौहारों की तरह बाबा नानक पात्शाह का प्रकाशपर्व पर भी कोरोना संक्रमण का असर पड़ेगा। इस साल प्रकाशपर्व कोरोना संक्रमण के चलते जारी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए बनाया जाएगा। साहेब सिंह ने बताया कि हर साल बड़े पैमाने पर त्योहार मनाया जाता था और गुरुद्वारों में काफी चहल पहल होती थी। इस बार सीमित संख्या में लोगों के साथ सोशल डिस्टेंसिंग, सैनेटाइजर और मास्क का इस्तेमाल करते हुए प्रकाशपर्व मनाया जाएगा। उल्हासनगर में पिछले साल हेडफोन लगातर कीर्तन करने वाले अमृतवेला ट्रस्ट ने कोरोना संक्रमण के चलते इस साल ऑनलाइन ही कीर्तन का आयोजन किया और लोग घर बैठे ही कीर्तन में शामिल हुए। प्रकाशपर्व पर भी कोई बड़ा आयोजन नहीं किया गया है।
पुलिस वालों के लिए खोल दिया होटल
सरबजीत सिंह ने बताया कि प्रशासन की भी हमने पूरी मदद की और पुलिसवालों के रहने के लिए एक 40 कमरों वाला होटल मुफ्त में उपलब्ध कराया। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण के बाद ड्यूटी पर मौजूद पुलिसवाले वापस परिवार के पास या घर में जाने से हिचकिचाते थे, क्योंकि कोरोना संक्रमण का डर था। इसके अलावा यातायात के साधनों की भी परेशानी थी। हमें इसकी जानकारी मिली, तो हमने पुलिसवालों के लिए होटल में मुफ्त रुकने की व्यवस्था कर दी। इस दौरान मरीजों को संस्था की एंबुलेंस भी मुहैया कराई गई। उल्हासनगर में अमृतवेला ट्रस्ट से जुड़े हुशार सिंह ने बताया कि आम दिनों में भी हम दो हजार लोगों के लिए लंगर की व्यवस्था की जाती थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान तहसीलदार और मनपा आयुक्त की अपील पर हम रोजाना करीब 20 हजार लोगों को खाना पहुंचाने लगे। देशभर में अमृतवेला ट्रस्ट की ओर से रिकॉर्ड संख्या में लोगों को खाना पहुंचाया गया।
संस्था से जुड़े सरबजीत सिंह ने बताया कि लॉकडाउन की शुरूआत हुई, तो हालात सबके लिए बहुत मुश्किल थे। गुरूद्वारे में लंगर बनता तो था ही, लेकिन प्रवासी मजदूरों की परेशानी देखते हुए हमने उनके घरों तक खाने के पैकेट पहुंचाने का फैसला किया। सेवादारों की मदद से गुरूद्वारे में खाना बनाकर अंधेरी, विलेपार्ले जैसे आसपास के इलाकों में रोजाना 4 हजार जरूरत मंदों तक खाने के पैकेट पहुंचाए। लोगों की सेवा का यह काम 75 दिनों तक चला, जब तक लोगों को लॉकडाउन से राहत नहीं मिल गई। यही नहीं कामकाज बंद होने के बाद श्रमिक ट्रेनों और सड़क मार्ग से वापस लौट रहे लोगों की भी पूरी मदद की गई और संस्था की ओर से उन्हें रास्ते के लिए फल आदि और रास्ते के खाने की व्यवस्था की गई। जिन लोगों के पास खाने पीने का सामान नही था ऐसे हजारों लोगों को राशन भी पहुंचाया गया।
लेकिन इसके पीछे सबसे बड़ा कारण था गुरु नानक पात्शाह का वो संदेश, जिसमें नाम जपना (ईश्वर को याद करना), किरत करना (जीविका का निर्वाह) और वंड छकना (मिल बांटकर खाना) तीन प्रमुख बातें शामिल थीं। छोटी उम्र में गुरु नानक पात्शाह को जब उनके पिता मेहता कल्याण दास से 20 रुपए देकर व्यापार करने भेजा था। तो गुरु नानक पात्शाह ने रास्ते में मौजूद भूखे साधुओं को खाना खिलाया था। साथ ही तन ढंकने के लिए कपड़ों की व्यवस्था की थी। तब से लंगर की प्रथा सिख धर्म का मूल बन गई।
Created On :   29 Nov 2020 7:46 PM IST