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दंत विभाग में आ रहे 50% मरीजों को पायरिया, चर्मरोग विभाग में फंगल इंफेक्शन के मरीज
डिजिटल डेस्क, नागपुर। ज्यादातर लोग अपने दांतों को लेकर लोग सतर्क नहीं हैं। उचित खानपान व सफाई के अभाव में दांतों को कई प्रकार के रोग होते हैं। इन्हीं में से एक रोग पायरिया है। इस रोग से ग्रस्त मरीजों के मुंह से असह्य बदबू आती है, जिससे शर्मिंदगी सहनी पड़ती है। इसलिए इस बीमारी की शुरुआत में ही उपचार करवाना जरूरी है। शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय की ओटीपी में हर दिन 200 से अधिक मरीज दांतों से संबंधित विविध समस्या का निदान करवाने आते हैं। इनमें से 50 फीसदी यानी 100 से अधिक मरीज पायरिया से ग्रस्त होते हैं।
35 साल से अधिक उम्र वाले होते शिकार
शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय की ओपीडी में दांतों की विविध समस्या लेकर हर रोज 200 से अधिक मरीज आ रहे हैं। इनमें से 50 फीसदी यानी 100 से अधिक मरीज पायरिया रोग से ग्रस्त होते हैं। 35 साल से अधिक आयुवर्ग के मरीज पायरिया का शिकार होते हैं। खानपान व दांतों की सफाई का ध्यान नहीं रखने के कारण यह बीमारी तेजी से फैल रही है। समय रहते इस बीमारी का इलाज नहीं किया गया तो इसके परिणाम गंभीर होते हैं।
इन कारणों से होती है यह बीमारी
दांतों से संबंधित बीमारियां कई कारणों से होती हैं। इसमें पायरिया होने के पीछे कुछ कारण बताए गए हैं। शरीर में कैल्शियम की कमी से पायरिया होने की आशंका बनी रहती है। इसी तरह मसूड़ों की खराबी, दांत, जीभ और मुंह की सफाई में लापरवाही, अनियमित खानपान, पौष्टिक आहार की कमी, अपचन, रक्त में अम्लता बढ़ने से, गरिष्ठ भोजन का सेवन, पान, गुटखा, तंबाकू, आदि का अधिक मात्रा में सेवन, भोजन चबाकर न खाने से पायरिया रोग होता है।
दूसरे चरण में समस्या और गंभीर
पायरिया बीमारी के दो चरण बताए जाते हैं। दंत चिकित्सा महाविद्यालय में आने वाले मरीजों में दोनों चरणों के मरीज होते हैं। इस रोग के होने पर मरीज को शर्मसार होना पड़ता है। वहीं उसके साथ रहने वालों को भी नाक बंद करनी पड़ी है। इस रोग में मुंह से बदबू आती है। इसमें मसूड़े पिलपिले और खराब हो जाते हैं। मसूड़ों से खून आता है। पायरिया होने पर जॉ बोन को नुकसान पहुंचता है। जब यह बीमारी दूसरे चरण में पहुंचती है, तो समस्या और भी गंभीर हो जाती है। इसमें मसूड़ों में सूजन के अलावा पस भरने की समस्या भी पैदा होती है। इसके अलावा हड्डी गलने की समस्या होने की भी आशंका बनी रहती है।
समय रहते इलाज जरूरी
इस बीमारी के बारे में गलत धारणा है कि इसका इलाज मुमकिन नहीं है, जबकि इस बीमारी का इलाज आसानी से हो सकता है। लेकिन समय रहते इस बीमारी का पूरा इलाज करना जरूरी है। यदि पायरिया के कारण दात हिलने लगे तो उन्हें भी पक्का किया जा सकता है। मुंह, दांत और जीभ की नियमित साफसफाई करने से यह बीमारी नहीं होती। मसूड़ों को अधिक नुकसान पहुंचना हो तो सर्जरी कर ठीक किया जा सकता है। दांत निकलने के करीब हो तो डेंटल इम्प्लांट के जरिए फिर से नए दांत लगाए जा सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार दांतों के लिए हार्ड टूथ ब्रश का उपयोग नहीं करना चाहिए। मुंह में सैकड़ों बैक्टीरिया होते हैं। इसलिए रात को सोने के पहले भी दांतों व मुंह की सफाई करना जरूरी है।
हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए
डॉ. मंगेश फडनाईक, अधिष्ठाता, शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय के मुताबिक दांतों को लेकर हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए। नियमित साफ-सफाई करने से दात निरोगी रहते हैं। हमारे यहां ओपीडी में आने वाले मरीजों में से आधे मरीज पायरिया से ग्रस्त पाए जाते हैं। खानपान, साफ-सफाई, कैल्शियम की कमी, रोगप्रतिकारक शक्ति का अभाव और अन्य कारणों से पायरिया होता है। दांतों की सुरक्षा के संबंध में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। जब भी दांतों को लेकर कोई समस्या पैदा हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह से इलाज करवाना चाहिए, ताकि बीमारी गंभीर रूप न ले सके।
चर्मरोग विभाग में फंगल इंफेक्शन के मरीज
भास्कर संवाददाता | नागपुर. शहर में नॉन कोविड मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। अस्पतालों में ओपीडी में कतारें लगी हुई हैं। शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल के चर्मरोग विभाग में मरीजों की संख्या बढ़ी है। यहां पर फंगल इंफेक्शन के मरीज बढ़ गए हैं।
2 बजे तक शुरू रहती है ओपीडी
बदलते मौसम और मानसून में कई तरह की नई बीमारियां होती हैं। बारिश और नमी के कारण फंगल इंफेक्शन भी बढ़ता है। मेडिकल के चर्मरोग विभाग की अलग ओपीडी होती है। यह ओपीडी दोपहर 2 बजे तक शुरू रहती है। इसमें फंगल इंफेक्शन और इंसेक्ट बाइट के मरीज बहुत बढ़ गए हैं। ओपीडी में करीब 80 प्रतिशत मरीजों में अलग-अलग तरह के फंगल इंफेक्शन के मरीज आ रहे हैं। ओपीडी में रोजाना 100-120 मरीज आते हैं।
दवाइयां भी नहीं मिल रहीं
इसके साथ ही दवाइयों की कमी के कारण ओपीडी में आने वाले मरीजों को डिस्पेंसरी से दवाई नहीं मिल पा रही है। इसमें फंगल इंफेक्शन का ट्यूब और एलर्जी की एविल जैसी भी पर्याप्त दवाइयां नहीं हैं। 100 में से सिर्फ 20 मरीजों को ही दवाइयां और ट्यूब नहीं मिल पा रहा है।
Created On :   18 Aug 2021 2:49 PM IST