हाईकोर्ट ने पूछा - अनुचित आचरण पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं

High court asked - why not take action against electronic media on improper conduct
हाईकोर्ट ने पूछा - अनुचित आचरण पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं
हाईकोर्ट ने पूछा - अनुचित आचरण पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से जानना चाहा है कि चैनलों पर प्रसारित होनेवाली सामाग्री से किसी को नुकसान न हो यह देखने के लिए क्या कोई व्यवस्था है। जिससे इस सामाग्री से होनेवाले नुकसान को रोका जा सके। यदि मीडिया अपनी सीमा व लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करता है तो यह सरकार व संसद की जिम्मेदारी है कि वह कार्रवाई करे और इसमें दखल दे। अदालत इस विषय पर कुछ क्यों करे। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि सरकारी अधिकारी कुछ गलत करते है तो उन्हें हटाने का प्रावधान है। यही व्यवस्था निजी कर्मचारियों के लिए भी बनाई गई है। राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च व दूसरे संवैधानिक पद पर बैठे लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई का प्रावधान है। अनुचित अचारण करने पर लोगों को सबक सिखाया जाता है पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को लेकर ऐसा कुछ नजर नहीं आता है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने इस विषय पर दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उपरोक्त टिप्पणी की। खंडपीठ के सामने फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मामले को लेकर मीडिया ट्रायल पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर कई जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है।  

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर क्यों अंकुश नहीं लगा रही सरकार

खंडपीठ ने कहा कि प्रिंट मीडिया के लिए सरकार के पास सेंसर की व्यवस्था है पर परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि आप (सरकार) इलेक्ट्रानिक मीडिया के पंखो पर अंकुश लगाने के पक्ष में नहीं है। इस पर केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे एडिशनल सालिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर हस्तक्षेप न करे। इसके साथ ही सरकार को कहा है कि वह प्रेस को आत्मअनुशासन के लिए प्रोत्साहित करे। उन्होंने कहा कि सरकार ने कारर्वाई को लेकर भी वैधानिक व्यवस्था बनाई है। हम चैनल को लेकर शिकायत मिलने के बाद नेशनल ब्राडकस्टर एसोसिएशन (एनबीए) को भेजते हैं। यदि वह कार्रवाई नहीं करता तो सरकार कार्रवाई करती है।

सिंह के इस जवाब पर खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस को लेकर उपरोक्त बात अपने साल 2012-13 में दिए गए फैसले में कही थी। लेकिन अब समय बदल गया है और स्वतंत्रता का दुरुपयोग हो रहा है। इस दौरान खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी को भी दोहराया जिसमें कहा गया है कि आजकल बोलने की आजादी का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हो रहा है। चैनलों पर वैधानिक सयंम जरुरी है। खंडपीठ ने कहा कि हम चैनलों के नियंत्रण के लिए बनाई गई व्यवस्था के प्रभावी होने के विषय में चिंतित है। वर्तमान में ऐसा लगता है जैसे लोगों के पास बिना किसी रोकटोक के कुछ भी बोलने का लाइसेंस है। ऐसे में हम जानना चाहता है कि न्यूज चैनल में प्रसारित होनेवाली सामाग्री को पहले देखने की कोई व्यवस्था है क्या, जिससे लोगों को इस सामाग्री से होनेवाले नुकसान से बचाया जा सके। 

खंडपीठ ने कहा कि मीडिया इस बात का ध्यान रखे की किसी की प्रतिष्ठा को नाहक में ठेस न पहुंचायी जाए। मीडिया के पास स्वतंत्रता का अधिकार है लेकिन इस अधिकार का इस्तेमाल दूसरे के अधिकारों के हनन के लिए नहीं होना चाहिए। खंडपीठ की इन बातों को सुनने के बाद सिंह ने कहा कि वे संबंधित मंत्रालय को इस बारे में ठोस कदम उठाने की सलाह देंगे। क्योंकि सरकार का मत भी खंडपीठ जैसा ही है। इस दौरान एनबीए की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दतार ने कहा कि एनबीए ने कई चैनलों पर आपत्तिजनक सामाग्री के प्रसारण के लिए जुर्माना लगाया है। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी है।

Created On :   16 Oct 2020 6:28 PM IST

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