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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पेंशन रोकना न्यायसंगत नहीं
डिजिटल डेस्क, मुंबई। स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन रोकना बिल्कुल भी न्यायसंगत व उचित नहीं है। बांबे हाईकोर्ट ने एक स्वतंत्रता सेनानी की 90 साल की पत्नी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। इसके साथ ही राज्य सरकार को इस याचिका पर जवाब देने का निर्देश दिया है। याचिका में बुजुर्ग महिला ने दावा किया है कि उनके पति ने भारत छोड़ों आंदोलन में हिस्सा लिया था। 56 साल पहले उनका निधन हुआ था। रायगढ निवासी शालिनी चव्हाण ने याचिका में मांग की है कि सरकार को उन्हे स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन स्कीम के तहत पेंशन देने का निर्देश दिया जाए, क्योंकि उनके पति एक स्वतंत्रता सेनानी थे। याचिका के मुताबिक याचिकाकर्ता के पति लक्ष्मण चव्हाण ने 1942 में भारत छोड़ों आंदोलन में हिस्सा लिया था। इसके लिए उन्हें 17 अप्रैल 1944 से 11 अक्टूबर 1944 में भायखला जेल में रखा गया था। 12 मार्च 1965 को लक्ष्मण चव्हाण का निधन हो गया था। याचिका के मुताबिक बेटे के निधन के बाद याचिकाकर्ता अकेले रह रही हैं। उन्हें रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने के लिए संर्घष करना पड़ रहा है। चव्हाण ने 1993 में पेंशन की मांग को लेकर सरकार के पास आवेदन किया था। 2002 में सरकार के पास सारे दस्तावेज जमा किए गए थे। कुछ समय बाद याचिकाकर्ता को पेंशन मंजूर होने की सूचना दी गई थी। लेकिन अब तक पेंशन नहीं मिली है।
याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता जितेंद्र पथाडे ने न्यायमूर्ति उज्जल भुयान व न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ के सामने कहा कि मेरे मुवक्किल को सिर्फ इसलिए स्वतंत्रता सेनानी को मिलनेवाले लाभ से वंचित रखा गया, क्योंकि उनके पति की गिरफ्तारी व जेल जाने से जुड़ा रिकार्ड उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा कि मेरी मुवक्किल ने अपने पति के निधन के बाद उनके जेल जाने से जुड़ा प्रमाणपत्र राज्य सरकार के पास जमा किया था। चूंकि भायखला जेल के पुराने दस्तावेज नष्ट हो गए हैं, इसलिए मेरे मुवक्किल की ओर से दिए गए दस्तावेज का सत्यापन नहीं हो पाया। इसकी वजह से मेरी मुवक्किल को पेंशन से जुड़ा लाभ नहीं मिल पाया है।
इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने जो दस्तावेज दिए हैं, वे निर्विवाद नजर आ रहे हैं। इनसे पता चलता है कि याचिकाकर्ता लक्ष्मण चव्हाण की विधवा पत्नी हैं। इसके बावजूद लंबे वक्त तक याचिकाकर्ता की पेंशन को रोकने को बिल्कुल भी न्यायसंगत नहीं माना जा सकता है। खडंपीठ ने सरकारी वकील पुर्णीमा कंथारिया को इस मामले में निर्देश लेने को कहा और याचिका पर सुनवाई 30 सितंबर 2021 तक के लिए स्थगित कर दी।
Created On :   27 Sept 2021 6:42 PM IST