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डीजीपी के लिए बाद में पांडे का नाम भेजेने पर हाईकोर्ट ने उठाए सवाल
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति को लेकर महाराष्ट्र सरकार द्वारा यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीएससी) को लिखे गए पत्र को अनुचित बताया है। दरअसल पिछले साल नवंबर महीने में राज्य सरकार ने यूपीएससी को पत्र लिखकर कहा था कि वह राज्य के कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक संजय पांडे के नाम पर इस पद के लिए विचार करे। मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की खंडपीठ ने सवाल उठाया कि किस तरह राज्य के मुख्य सचिव राज्य के पुलिस महानिदेशक के पद के लिए यूपीएससी को भेजे जाने वाले तीन नामों वाले पत्र पर 1 नवंबर 2021 को हस्ताक्षर करते हैं और फिर एक सप्ताह बाद ही एक और पत्र लिखकर कहते हैं कि समिति से फैसला लेने में गलती हो गई और डीजीपी के पद के लिए पांडे के नाम पर भी विचार किया जाए अदालत के मुताबिक यह उचित नहीं था। इस मामले में कानून स्पष्ट है और राज्य सरकार इस तरह की मांग नहीं कर सकती।
हाईकोर्ट ने कहा कि कार्यवाही शुरू होने के बाद फैसले को गलत बताकर उस पर पुनर्विचार करने को नहीं कहा जा सकता। यूपीएससी को भेजे गए पत्र पर तत्कालिन मुख्य सचिव सीताराम कुंटे ने हस्ताक्षर किए हैं अगर इसमें गलती थी तो उन्हें पहले देखना चाहिए था। खंडपीठ वकील दत्ता माने द्वारा दायर उस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने मांग की है कि महाराष्ट्र सरकार यूपीएससी की मनोनयन समिति की सिफारिश के आधार पर डीजीपी का चयन करे। माने का दावा है कि यूपीएससी से फैसले पर पुनर्विचार का आग्रह कर डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया को धीमा करने की कोशिश है। उनके वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने दावा किया कि यह प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति स्थायी तौर पर होनी चाहिए और कार्यवाहक डीजीपी नहीं बनाए जाने चाहिए और डीजीपी का कार्यकाल तय होना चाहिए।
बता दें कि तत्कालीन पुलिस महानिदेशक सुबोध जायसवाल के केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में जाने के बाद यूपीएससी चयन समिति ने इस पद के लिए हेमंत नागराले, रजनीश सेठ और के. वेंकटेशन के नामों का चयन किया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि एक बार नामों का प्रस्ताव भेजे जाने के बाद इस पर पुनर्विचार का सवाल ही नहीं है। वहीं राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल आशुतोष कुंभकोणी ने कहा कि फैसले पर पुनर्विचार करने को इसलिए कहा गया था क्योंकि समिति ने पांडे के ग्रेड और मूल्यांकन रिपोर्ट का सही अध्ययन नहीं किया था। इस पर मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता ने कहा कि सरकार की ओर से पत्र बाद में सोच विचारकर लिखा गया।
Created On :   24 Jan 2022 7:39 PM IST