डॉ पायल तडवी आत्महत्या : हाईकोर्ट का महिला डाक्टरों को फिर हिरासत में भेजने से इंकार

High Court refuse re send on remand to female doctors
डॉ पायल तडवी आत्महत्या : हाईकोर्ट का महिला डाक्टरों को फिर हिरासत में भेजने से इंकार
डॉ पायल तडवी आत्महत्या : हाईकोर्ट का महिला डाक्टरों को फिर हिरासत में भेजने से इंकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने मुंबई के नायर अस्पताल में डॉक्टर पायल तडवी आत्महत्या मामले में आरोपी तीन महिला रेजिडेंट डॉक्टरों को पुलिस हिरासत में भेजने से इनकार कर दिया है। हालांकि हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस की अपराध शाखा को इस मामले में आरोपी डॉ. भक्ति मेहर, डॉ हेमा आहूजा, डॉ अंकिता खडेलवाल से चार दिनों तक केवल दिन में पूछताछ करने की इजाजत दे दी है। हाईकोर्ट ने क्राईम ब्रांच अधिकारियों को गुरुवार को दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक और शुक्रवार से रविवार सुबह नौ बजे से शाम 6 बजे तक आरोपी डाक्टरों से पूछताछ की अनुमति दी है। फिलहाल तीनों डाक्टर भायखला जेल में न्यायिक हिरासत में हैं। आरोपी डाक्टरों पर डा तडवी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है। 

दिनभर पूछताछ कर सकेंगे क्राईम ब्रांच के अधिकारी 

आरोपी डॉक्टरों को न्यायिक हिरासत से पुलिस हिरासत में भेजे जाने की मांग को लेकर मुंबई पुलिस की क्राईम ब्रांच ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। गुरुवार को न्यायमूर्ति एस एस शिंदे के सामने याचिका पर सुनवाई हुई । मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि सरकार गंभीर व संवेदनशील मामले की जांच में तत्काल वरिष्ठ अधिकारियों को जांच में क्यो नहीं लगाती। इस प्रकरण से जुड़े आरोपी कोई कुख्यात अपराधी नहीं हैं। वे भी डॉक्टर है। जिन्हें सरकार ने मेडिकल ऑफिसर के तौर पर नियुक्त किया है। ऐसे में आरोपी डॉक्टरों को 24 घंटे हिरासत में लेकर पूछताछ की जरूरत नहीं नजर आ रही है। इसलिए पुलिस दिन के समय डॉक्टरों से पूछताछ करे। क्योंकि इसके पहले आरोपियों को गिरफ्तारी के बाद दो दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेजा जा चुका है। इससे पहले विशेष सरकारी वकील राजा ठाकरे ने कहा कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए राज्य सरकार ने इसकी जांच अपराध शाखा को सौंपा है। लेकिन इससे पहले आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। अपराध शाखा को आरोपियों से पूछताछ का अवसर ही नहीं मिला है। इसलिए आरोपियों को पुलिस हिरासत में भेजा जाए। 

आरोपी डॉक्टरों की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता आबाद पोंडा ने कहा कि मेरे मुवक्किलो को पहले ही पुलिस हिरासत में भेजा जा चुका है। उन्होंने ने कहा कि यदि अपराध शाखा के अधिकारियों को पूछताछ करनी है तो वह दिन के समय मेरे मुवक्किलो से पूछताछ करें। पर शाम 6 बजे के बाद उन्हें जेल में लाया जाए। रविवार तक हम जमानत के लिए निचली अदालत में आग्रह नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि मेरे मुवक्किल युवा डॉक्टर हैं। आत्महत्या करने वाली डॉक्टर तडवी पर मेरे मुवक्किलो ने कोई जातिगत ताने नहीं मारे थे। मेरे मुवक्किल सिर्फ डॉक्टर तडवी को काम से भागने की बजाए अपना काम ठीक से करने के लिए कहते थे। क्योंकि वह मरीजो के ब्लड प्रेशर की गलत एंट्री करती थी। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने आरोपियों को पुलिस हिरासत में भेजने से इंकार कर दिया।

फांसी में देरी पर एतराज जताने हाईकोर्ट में याचिका

इसके अलावा बांबे हाईकोर्ट ने फांसी की सजा पाए दो मुजरिमो की ओर से दायर याचिका पर केंद्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में दोनों मुजरिमों ने 24 जून को तय की गई अपनी फांसी की सजा पर रोक लगाने की मांग की है। दोनों ने याचिका में दावा किया है कि उनकी फांसी की सजा को लागू करने में बहुत देरी की गई है। यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका के अनुसार फांसी की सजा को लागू करने में चार साल (1509 दिन) की देरी हुई है। जिसके चलते इस अवधि के दौरान हमे अनावश्यक क्रूरता व मानसिक पीड़ा की सजा भुगतनी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सजा पुष्ट किए जाने के बाद तीन महीने के भीतर दया याचिका पर निर्णय किया जाना चाहिए। लेकिन इसमें देरी हुई इसलिए हमे (याचिकाकर्ता) लगा कि सरकार ने हमारी सजा माफ कर दी है। पुणे में विप्रो कंपनी में कार्यरत एक महिला कर्मचारी के साथ सामूहिक बलात्कार व हत्या के मामले में दोषी पाए गए पुरुसोत्तम बरोटे व प्रदीप कोकाटे को फांसी की सजा सुनाई गई थी। गुरुवार को न्यायामूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति स्वप्ना जोशी की खंडपीठ के सामने बरोटे व कोकाटे की याचिका सुनवाई के लिए आयी। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने केद्र व राज्य सरकार को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई 14 जून तक के लिए स्थगित कर दी। फांसी की सजा के खिलाफ की गई दोनों मुजरिमों की अपील रद्द की जा चुकी है। साल 2017 में राष्ट्रपति ने भी दोनों मुजरिमों की दया याचिका को नामंजूर कर दिया था। अब इन दोनों की फांसी की तारीख 24 जून 2019 तय की गई है। मार्च 2012 में दोनों याचिकाकर्ताओं को पुणे सत्र न्यायालय ने विप्रो कंपनी की बीपीओ कर्मचारी के साथ दुष्कर्म व हत्या के लिए फांसी की सजा सुनाई थी। साल 2012 में ही हाईकोर्ट ने दोनों की फांसी की सजा की पुष्टि की थी। साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सजा की पुष्टि के संबंध में हाईकोर्ट के फैसले को कायम रखा था। 2016 में राज्यपाल ने दोनों मुजरिमों की दया याचिका नामंजूर कर दी थी। इसके बाद साल 2017 में राष्ट्रपति ने भी दोनों की दया याचिका खारिज कर दी थी। दोनों याचिकाकर्ता फिलहाल पुणे की येरवडा जेल में बंद है। 

Created On :   6 Jun 2019 1:56 PM GMT

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