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शरद पवार पर टिप्पणी करने वाले छात्र को हाईकोर्ट का राहत देने से इंकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार को लेकर आपत्तिजनक ट्विट करने के मामले में पिछले माह गिरफ्तार फार्मेसी के एक छात्र को तत्काल राहत देने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है मौलिक अधिकार असीमित अथवा निरंकुश नहीं हैं। किसी के पास किसी के निजी जीवन पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं हैं। महज किसी के पास अधिकार हैं इसका मतलब यह नहीं है कि वह उस अधिकार का इस्तेमाल बिना किसी बंधन के करें। न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एमएन जाधव ने यह बात नाशिक निवासी छात्र निखिल भामरे की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कहीं। याचिका में भामरे ने मांग की है कि उनके खिलाफ नाशिक सहित राज्य के विभिन्न इलाकों में दर्ज पांच एफआईआर को रद्द कर दिया जाए। इसके साथ ही उसकी याचिका के प्रलंबित रहते हुए उसे जेल से जमानत पर बरी किया जाए।
भामरे के वकील सुभाष झा ने खंडपीठ के सामने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि महाराष्ट्र जैसे राज्य में एक युवा छात्र के साथ यह सलूक हो रहा है। जबकि हम लोकतंत्र में जीते हैं। इस पर खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की उम्र 22 साल हैं। इस उम्र में कुछ हद तक जिम्मेंदारी अपेक्षित है। हर नागरिक को मौलिक अधिकार मिले हैं। किंतु यह अधिकार कुछ निर्बंधों के आधीन हैं। मौलिक अधिकार अपने आप में निरंकुश अथवा असीमित नहीं हैं। खंडपीठ ने फिलहाल इस मामले में पुलिस को भामरे के खिलाफ दर्ज मामले को लेकर की गई जांच की प्रगति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। इस पर अधिवक्ता झा ने खंडपीठ से आग्रह किया कि उनके मुवक्किल को जमानत पर रिहा किया जाए। इस आग्रह पर खंडपीठ ने कहा कि पहली सुनवाई के दौरान जमानत का आदेश नहीं दिया जा सकता है। खंडपीठ ने अब इस याचिका पर 10 जून को सुनवाई रखी है।
Created On :   6 Jun 2022 7:52 PM IST