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10वीं की परीक्षा रद्द करने के फैसले में हस्तक्षेप से हाईकोर्ट का इंकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कक्षा दसवीं की परीक्षा रद्द करने के राज्य सरकार के निर्णय को नीतिगत निर्णय बताते हुए इसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार के ऐसे निर्णय में तभी हस्तक्षेप किया जा सकता है। जब वह मनमानीपूर्ण नजर आए अथवा इससे जनता में मूलभूत अधिकारों का हनन होता हो। कोर्ट ने कहा कि पूरे देश में कोरोना की दूसरी लहर के चलते कक्षा दसवीं व 12 वीं की परीक्षा रद्द की गई है। ऐसे में भला हम कैसे राज्य सरकार के दसवीं की परीक्षा रद्द करने के फैसले पर हस्तक्षेप कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान में हर कोई भीड़ से बच रहा है इस स्थिति में यदि परीक्षा होगी तो काफी बच्चे एक जगह इकट्ठा होंगे। इस पर यदि बच्चे कोरोना संक्रमण का शिकार होते हैं तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? हम कोरोना की दूसरी लहर के बीच बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते है। क्योंकि यह लहर पहले से ज्यादा घातक सिद्ध हुई है। यह बात कहते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने परीक्षा रद्द करने के सरकार के फैसले पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
खंडपीठ ने कहा कि कई बार आपको (याचिकाकर्ता) और हमें सरकार के फैसले मूर्खता पूर्ण लग सकते हैं। फिर भी इस तरह के निर्णय तभी रद्द किए जा सकते हैं, जब वे मनमानी पूर्ण व जनता के मौलिक अधिकारों का हनन करते हों। परीक्षा रद्द करने का फैसला तो सरकार का नीतिगत निर्णय है। पुणे निवासी धनंजय कुलकर्णी ने कक्षा दसवीं की परीक्षा रद्द करने के फैसले के खिलाफ कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी।
खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील अधिवक्ता उदय वारुनजेकर से पूछा कि वे हमे बताया कि सरकार के परीक्षा रद्द करने के निर्णय में क्या मनमानीपूर्ण है। श्री वरुनजेकर ने कहा कि चूंकि सरकार कक्षा 11 वीं में प्रवेश के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा लेगी। इसलिए अब वे परीक्षा रद्द करने के फैसले को आगे नहीं बढ़ाएंगे। पर वे चाहते हैं कि मूल्यांकन को लेकर एक समरूप नीति हो। क्योंकि अलग अलग बोर्ड़ के बच्चे दाखिले के लिए कॉलेज में आएंगे।
इस पर राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने कहा कि प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रवेश के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा ली जाएगी।
इस परीक्षा में सभी बोर्ड़ के विद्यार्थी शामिल हो सकते हैं। जिसका प्रदर्शन श्रेष्ठ होगा। वह प्रवेश के लिए पात्र होगा। इस दलील को सुनने को बाद श्री वरुनजेकर ने कहा कि वे याचिका को वापस लेते हैं लेकिन विद्यार्थियों के मूल्यांकन को लेकर सरकार की ओर से 28 मई 2021 को जारी शासनादेश खामिपूर्ण दिख रही है। इसके बाद खंडपीठ ने याचिका को वापस लेने की अनुमति देकर उसे खारिज कर दिया। इसके साथ ही खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को कक्षा दसवीं के विद्यार्थियों के मूल्यांकन को लेकर बनाए गए फॉर्मूले को चुनौती देने की छूट दे दी।
Created On :   3 Jun 2021 7:31 PM IST