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हाईकोर्ट : बड़े वाहनमालिकों को राहत, अग्निसुरक्षा से जुड़े नियमों से समझौता नहीं, पाक्सो के तहत दोषी बुजुर्ग दंपति को जमानत
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने दुष्कर्म का शिकार एक नाबालिग पीड़िता को 24 सप्ताह के भ्रूण का गर्भपात कराने की अनुमति दे ही है। इसके साथ ही पुलिस को निर्देश दिया है कि वह मामले से जुड़े दस्तावेज जिला विधि सेवा प्राधिकरण को सौपे। जिससे पीड़िता को सरकार की मनोधैर्य योजना के तहत मुआवजा देने पर विचार किया जा सके। सरकार ने दुष्कर्म पीड़िता को मुआवजा देने के लिए मनोघधैर्य योजना बनाई है। इस संबंध में 1 अगस्त 2017 को शासनादेश जारी किया है। नियमानुसार 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण का गर्भपात अदालत की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है। इसलिए पीड़िता के घरवालों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका पर गौर करने के बाद कोर्ट ने पीड़िता की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन किया था। बोर्ड ने पीड़िता की स्थिति को देखते हुए उसे गर्भपात की अनुमति देने की सिफारिस की थी। इसके मद्देनजर खंडपीठ ने पीड़िता को गर्भपात की इजात दे दी। लेकिन पुलिस को भ्रूण के रक्त के नमूने को लेने को कहा। जिससे डीएनए जांच कराई जा सके। इसके अलावा खंडपीठ ने पुलिस को कहा है कि वह पीड़िता के मामले से जुड़ी एफआईआर व दूसरे दत्वावेज जिला विधि सेवा प्राधिकरण के पास जमा करे। जिससे पीड़िता को मनोधैर्य योजना के तहत चरणबध्द तरीके से मुआवजे की रकम मिल सके।
पाक्सो कानून के तहत दोषी पाए बुजुर्ग दंपति को हाईकोर्ट ने दी जमानत
वहीं बांबे हाईकोर्ट ने पड़ोस में रहनेवाली चार साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न के मामले में दोषी पाए गए एक 80 साल के ऊपर के बुजुर्ग दंपति को जमानत प्रदान की है। पाक्सो अदालत ने मार्च 2021 में साल 2013 से जुड़े इस मामले में 87 वर्षीय आरोपी अश्विन पारेख व उनकी पत्नी विमला(81) को दोषी ठहराते हुए दस साल की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ बुजुर्ग दंपति ने हाईकोर्ट में अपील की है और अपनी सजा से जुड़े आदेश को निलंबित कर जमानत प्रदान करने का निवेदन किया है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे के सामने आरोपियों की अपील पर सुनवाई हुई। इस दौरान आरोपियों की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता दिनेश तिवारी ने कहा कि मेरे मुवक्किल पर गलत आरोप लगाए गए है और उन्हें दोषी ठहराए जाने का आदेश भी गलत है। उन्होंने कहा कि मामले की शिकायताकर्ता (पीडिता की मां) के बयान में काफी अनियमितता है। इसलिए मेरे मुवक्किल को जमानत प्रदान की जाए। सरकारी वकील ने आरोपियों की जमानत का विरोध किया। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि मामले से जुड़े सबूतों में काफी अनियमितता नजर आ रही है। इसके अलावा निचली अदालत में सुनवाई के दौरान आरोपी जमानत पर थे। आरोपियों ने जमानत से जुड़ी शर्तों का उल्लंघन नहीं किया है। इस लिहाज से प्रथम दृष्या आरोपी जमानत पाने के पात्र नजर आते है। इसिलए आरोपियों को सुनाई गई सजा को निलंबित किया जाता है और उन्हें 25 हजार रुपए के नकद मुचलके पर जमानत प्रदान की जाती है।
अग्निसुरक्षा से जुड़े नियमों से समझौता नहीं कर सकते
अग्नि सुरक्षा से जुड़े नियमों को लेकर किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता है। यह बात कहते हुए बांबे हाईकोर्ट ने मुंबई महानगरपालिका के मुख्य अग्निशमन अधिकारी को मुंबई के दो होटलों का निरीक्षण करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने मुंबई मनपा की ओर से होटल का बिजली व पानी को काटे के संबंध में जारी किए गए नोटिस पर फिलहाल रोक लगा दी है। अग्नि सुरक्षा से जुड़े नियमों का पालन न करने को लेकर मनपा ने अंधेरी इलाके में स्थित दो होटलों को यह नोटिस जारी किया था। होटल की ओर से मनपा की इस नोटिस के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान होटल की ओर से पैरीव कर रहे वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल ने अग्निशमन सुरक्षा से जुड़े नियमों का पालन किया है। इसलिए मनपा की ओर से जारी की गई नोटिस अवैध व मनमानीपूर्ण है। वहीं मनपा के वकील ने अपने नोटिस को न्यायसंगत ठहराया। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि अग्नि सुरक्षा से जुड़े नियमों को लेकर किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता है। किंतु याचिकाकर्ता ने नियमों का पालन किया है कि नहीं इस विषय हमारे सामने निष्कर्ष नहीं रखा गया है। ऐसे में मनपा की नोटिस कठोर लग रही है। इसलिए इस पर रोक लगाई जाती है। और मुख्य अग्निशमन सुरक्षा अधिकारी को होटल का निरीक्षण करने का निर्देश दिया जाता है। ताकि पता चल सके की नियमों का पालन हुआ है या नहीं।
बड़े वाहनमालिकों को हाईकोर्ट ने दी राहत
बांबे हाईकोर्ट ने ट्रेलर जैसे अन्य बड़े वहानों को विभिन्न प्रकार के उपकरणों व माल की ढुलाई करने से पहले अनुमति के लिए दस हजार रुपए से एक लाख रुपए का शुल्क भरने के लिए बाध्य करनेवाली राज्य सरकार की ओर से साल 2017 में जारी की गई अधिसूचना पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट के इस आदेश से माल ढुलाई क्षेत्र से जुड़े वाहन के मालिकों को बड़ी रहात मिली है। इससे पहले 49 टन के माल की ढुलाई की अनुमति के लिए वाहनमालिक को दो हजार रुपए शुल्क देना पड़ता था। 49 टन के ऊपर के माल के लिए चार हजार रुपए शुल्क तय किया गया था किंतु सरकार ने 9 अगस्त 2017 को इस विषय को लेकर नई अधिसूचना जारी की गई जिसके तहत शुक्ल में बढोत्तरी कर दी गई। बढे शुल्क से जुड़ी आदेश को सरकार ने नवंबर 2020 में परिपत्र जारी कर लागू किया। जिसके खिलाफ अशोक कणसे,विठ्ठल शिंदे सहित कई कारोबारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में मुख्य रुप से शुल्क में वृध्दि से जुड़ी अधिसूचना की वैधता को चुनौती दी गई। याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा था कि हमने शुल्क में कमी किए जाने की मांग को लेकर सरकार निवेदन भी दिया था लेकिन सरकार की ओर से हमे कोई जवाब नहीं मिला। याचिका के मुताबिक सरकार ने कारोबारियों पक्ष सुने बिना ही शुल्क में बेहताशा बढोत्तरी कर दी है। इस मामले में नैसर्गिक न्याय के सिद्दांत का पालन नहीं किया गया है। न्यायमूर्ति केके तातेड व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने राज्य सरकार के निर्णय को उचित बताया। किंतु खंडपीठ ने कहा कि सरकार ने शुल्क में सीधे दस गुना की वृध्दि की है और इसको लेकर कोई ठोस आधार भी नहीं बताया गया है। इससे कारोबारियों के कामकाज पर असर पड़ रहा है। इसलिए याचिका पर अंतिम निर्णय आने तक सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाई जाती है। खंडपीठ ने कहा कि सरकार साल 2013 के हिसाब से माल ढुलाई से जुड़े शुल्क को ले सकती है।
Created On :   12 April 2021 9:50 PM IST