जयपुर: भारतीय दर्शन को मुखरित करने वाली भाषा है हिन्दी - राज्यपाल कलराज मिश्र
डिजिटल डेस्क, जयपुर।, 14 सितम्बर। राज्यपाल श्री कलराज मिश्र ने कहा है कि किसी भी राष्ट्र की संस्कृति धर्म, दर्शन और गौरवशाली परंपराओं को समझने के लिए उसकी अपनी भाषा ही सशक्त माध्यम हो सकती है। भारतीय भाषाओं के बूते पर ही यह महान राष्ट्र दुनिया का सिरमौर बना तथा विश्व गुरु तक का दर्जा हासिल कर सका। यह एक ऎतिहासिक सच्चाई है, जिस पर हमें स्वाभाविक रूप से गर्व की अनुभूति होनी चाहिए। हिन्दी भारतीय दर्शन को मुखरित करने वाली भाषा है। श्री मिश्र सोमवार को यहां राजभवन से वीडियो कान्फ्रेन्स के माध्यम से वाराणसी के सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय एवं राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित हिन्दी दिवस और शिक्षक सम्मान समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। राज्यपाल ने कहा कि हिन्दी सहज और सरल भाषा है। इसे आसानी से सीखा जा सकता है। उन्होंने पूर्ण विश्वास जताते हुए कहा कि वह दिन जल्दी आयेगा, जब हिन्दी को उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम सभी जगह स्वीकार किया जायेगा। राज्यपाल ने कहा कि हिन्दी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह जनभाषा है। लेकिन रोजगार प्राप्त करने के लिए अन्य भाषा का विकल्प ढूंढना पडता है। श्री मिश्र ने कहा कि वैश्विक जगत में हिन्दी का प्रसार हो रहा है। हिन्दी विश्व में तेजी से बढ रही है। एक सौ से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी के केन्द्र हैं। हिन्दी के समाचारपत्र अधिक पढे जाते हैं। हिन्दी तेजी से प्रसारित हो रही है और आगे बढती जा रही है। सन 2021 में 14.05 करोड लोग हिन्दी को इन्टरनेट पर पढेंगे। देश के प्रधानमंत्रियों ने भी विश्व मंच पर हिन्दी का मान बढाया है। राज्यपाल ने कहा कि भाषा व्यक्ति को जोडती है। भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति का परिवार, समाज, गांव, नगर, महानगर, राज्य और देश से जुडाव होता है। हिन्दी सर्वाधिक बोली जाने वाली चौथी भाषा है। हिन्दी मात्र भाषा ही नहीं है अपितु भारतीय संस्कृति, सभ्यता की सबल संवाहिका है। सांस्कृतिक और आध्यत्मिक उत्कृष्टता के कारण हिन्दी का पूरे विश्व में वर्चस्व है। हिन्दी हमारे गौरव का आधार है। हिन्दी सशक्त और जमीन से जोडने वाली भाषा है। श्री मिश्र ने हिन्दी दिवस पर बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि हिन्दी लोकप्रिय भाषा है। हिंदी के विकास का वाहक बनने का दायित्व हमारी जिम्मेदारी है। देश के विकास के लिए स्वभाषा का होना आवश्यक है। सभी मिलकर हिन्दी का मान बढायें व सम्मान बढायें। राज्यपाल ने कहा है कि वर्तमान प्रयासों में तेजी लाते हुए नवीन प्रयोगों का सहारा लेकर जीवन के प्रत्येक कर्म में हिंदी की प्रतिष्ठा हमारा लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि विविधता में एकता के दर्शन कराने वाली हमारी सांस्कृतिक विरासत, हमारी अनमोल धरोहर है, जिसका संरक्षण एवं संवर्धन हर जागृत मनीषा का धर्म है। देश की आजादी के बाद संविधान सभा के सामने एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि भारत की राजभाषा किस भाषा को बनाया जाए। बहुत विचार-विमर्श के बाद 14 सितंबर,1949 को भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गई। प्रतिवर्ष इसी उपलक्ष्य में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में हम सभी मनाते हैं। राज्यपाल ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद अन्य भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी को राजभाषा का गौरव प्रदान किया गया। इसके अनेक कारण हैं। हिंदी समझने बोलने के लिहाज से अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में सरल और सहज है। इसमें इतना अधिक लचीलापन है कि हर प्रांत देश की भाषा का बड़े स्वाभाविक ढंग से इसमें समायोजन हो जाता है। वह किसी विशिष्ट वर्ग, प्रदेश या समुदाय की भाषा ना होकर भारतीय जनता की भाषा है। राज्यपाल ने कहा कि व्यक्ति चाहे जितनी भी भाषाएं सीख ले, पर वह सोचेगा अपनी ही भाषा में। दूसरी भाषा में कभी कोई मौलिक चिंतन हो ही नहीं सकता। सुदूर गांवों में दबी हुई प्रतिभाओं को खिलने के अवसर देने और उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए सभी को मिलजुल कर प्रयास करने की आवश्यकता है। समारोह को प्रो. राजाराम शुक्ल, कुलपति सम्मूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, प्रो. निर्मला एस मौर्य, कुलपति वीर बहादुर सिंह पूर्वाचंल विश्वविद्यालय, जोनपुर और प्रो. हितेन्द्र कुमार मिश्र ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर राज्यपाल ने हिन्दी भाषा के लिए उल्लेखनीय कार्य करने वाले अध्यापकगण का इस आभासी समारोह में सम्मान किया। श्री दीनानाथ सिंह ने स्वागत किया। संचालन श्री प्रेम नारायण सिंह ने किया। आभार डॉ जगदीश सिंह ने किया।
Created On :   14 Sept 2020 5:00 PM IST