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मानवता सबसे महत्वपूर्ण बाकी सब चीजें इसके बाद - बॉम्बे हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि मानवता सबसे महत्वपूर्ण है। बाकी सब चीजें इसके बाद आती है। हाईकोर्ट ने मंगलवार को भीमा कोरेगांव के एल्गार परिषद मामले में आरोपी गौतम नवलखा को चश्मे से वंचित किए जाने की बात को जानने के बाद यह टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा कि क्या चश्मे जैसी छोटी चीज से किसी को वंचित किया जा सकता है। न्यायमूर्ति एस एस शिंदे व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने कहा कि अब समय आ गया है कि जेल अधिकारियों के लिए कार्यशाला का आयोजन किया जाए। दो दिन पहले तलोजा जेल में बंद नवलखा का चश्मा जेल से चोरी हो गया था इसलिए उसके परिजनों उन्हें चश्मा देना चाहते थे क्योंकि चश्मे के बिना नवलखा कुछ भी नहीं देख पा रहे थे। इससे उनकी काफी परेशानी बढ़ गई थी। लेकिन जेल अधिकारियों ने परिजनों को नवलखा को चश्मा देने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। इस संदर्भ में खंडपीठ ने जेल अधिकारियों के लिए कार्यशाला के आयोजित किए जाने की बात कही। इसके साथ ही कहा कि मानवता सबसे महत्वपूर्ण है बाकी चीजे बाद में आती है।खंडपीठ के सामने भीमा कोरेगांव के एल्गार परिषद मामले में आरोपी रमेश गयाचोर व सागर गोरखे की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में दोनों आरोपियों ने अपनी गिरफ्तारी को अवैध बताया है और हिरासत आवेदन को चुनौती दी है। इसके साथ ही इन्होंने ने अपने मामले की सुनवाई को मुंबई की बजाय पुणे की कोर्ट में कराए जाने की मांग की है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मिहीर देसाई ने कहा कि उनके मुवक्किल ने मामले से जुड़े आरोपियों के खिलाफ बयान देने से इंकार कर दिया था। इसलिए उन्हें गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने दावा किया कि जिस मामले में उनके मुवक्किल को गिरफ्तार किया गया है वो पुणे में घटित हुआ है। इसलिए उनके मुवक्किल के मामले की सुनवाई पुणे में की जाए। इस दौरान राष्ट्रीय जांच एजेंसी की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता संदेश पाटिल ने मामले में अपना पक्ष रखने के लिए समय की मांग की। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओ के खिलाफ आरोपपत्र दायर कर दिया गया है। इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 21 दिसंबर 2020 तक के लिए स्थगित कर दी
लोकतांत्रिक देशों में सोशल मीडिया में अपमानजनक ट्वीट करने पर क्या कार्रवाई होती है
वहीं बॉम्बे हाईकोर्ट ने जानना चाहा है कि विश्व के दूसरे लोकतांत्रिक देशों में सोशल मीडिया में अपमानजनक ट्वीट करने पर क्या कार्रवाई की जाती है। इस विषय पर दूसरे देशों का क्या रुख है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार व याचिका कर्ता दोनों को इस बारे में पक्ष रखने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे व उनके बेटे तथा मंत्री आदित्य पर सोशल मीडिया में आपत्तिजनक व अपमानजनक ट्विट करने वाली सुनैना होली की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। आजाद मैदान पुलिस ने होली के खिलाफ इस मामले में एफआईआर दर्ज की है। जिसे रद्द किए जाने की मांग को लेकर होली ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। मंगलवार को यह याचिका न्यायमूर्ति एस एस शिंदे व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान आरोपी की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड़ ने कहा कि मेरी मुवक्किल ने अपने सोशल मीडिया के पोस्ट में किसी जाति,धर्म व समुदाय के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की है। उन्होंने ने सिर्फ एक वीडियो पोस्ट किया है। जिसकी वे निर्माता व लेखक नहीं है। इसलिए मेरे मुवक्किल के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है। लिहाजा मेरे मुवक्किल के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द किया जाए।
उधर राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज मोहिते ने कहा कि पुलिस को याचिकाकर्ता के पोस्ट में कुछ आपत्तिजनक लगा है। इसलिए मामला दर्ज किया गया है। इस दलील को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि हम जानना चाहते है की भारत की तरह दूसरे लोकतांत्रिक देशों में अपमानजनक पोस्ट पर क्या कार्रवाई की जाती है। दूसरे लोकतांत्रिक देशों ने इस विषय पर क्या रुख अपनाया है। राज्य सरकार व याचिकाकर्ता दोनों इस बारे में अपनी बात रखे। क्योंकि यह भविष्य के लिए कारगर हो सकता हैं। खंडपीठ ने फिलहाल याचिका पर सुनवाई 14 दिसंबर 2020 तक के लिए स्थगित कर दी है।
Created On :   8 Dec 2020 6:24 PM IST