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पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामले में आरोपी पति 22 साल बाद बरी
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की आत्महत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए पति को 22 साल बाद बरी किया है। निचली अदालत ने आरोपी पति को इस मामले में दोषी ठहरते हुए 29 जून 1998 में पांच साल की सजा सुनाई थी। आरोपी ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। अपील पर सुनवाई के दौरान आरोपी जमानत पर था।
न्यायमूर्ति भारती डागरे के सामने आरोपी धवल कुमार डोबे की अपील पर सुनवाई हुई। अपील पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ने आरोपी की पत्नी अरुणा की मौत को आत्महत्या की बजाय दुर्घटनावश मौत माना। औऱ निचली अदालत के आरोपी को दोषी ठहराने के फैसले को रद्द कर दिया औऱ आरोपी को मामले से बरी कर दिया।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक आरोपी व अरुणा ने प्रेम विवाह किया था। लेकिन शादी के बाद आरोपी ने अरुणा के घरवालों से पैसे मांगने लगा औऱ पैसे न देने पर अरुणा के साथ दुर्व्यवहार करने लगा। जिससे तंग आकर अरुणा ने आग लगाकर आत्महत्या कर ली। इस तरह से आरोपी ने अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाया है। पुलिस ने इस मामले में आरोपी व उसकी माँ को इस मामले में गिरफ्तार किया था। जिन्हें बाद में जमानत मिल गई थी। जांच के बाद पुलिस ने कोर्ट में आरोपपत्र दायर किया। निचली अदालत ने इस मामले में आरोपी को पांच साल की सजा सुनाई जबकि आरोपी की माँ को बरी कर दिया। आरोपी ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की।
अपील पर सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने दावा किया की मेरे मुवक्किल की पत्नी जब खाना बना रही थी। उस समय उनके कपड़ों में आग लगी है। जिसके चलते वे बूरी तरह जल गई। यह एक तरह से दुर्घटना वश मौत का मामला है। मरने से पहले दिए गए बयान में अरुणा ने किसी के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की है। जिस पर निचली अदालत ने विचार नहीं किया है। सिर्फ अरुणा के घर वालों व अन्य गवाहों के बयान के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया है। वहीं सरकारी वकील ने निचली अदालत के फैसले को सही बताया औऱ आरोपी की सजा को कायम रखने की मांग की।
मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अरुणा के शरीर में मिट्टी के तेल का अंश नहीं मिला। अरुणा की मौत की वजह आग लगने से हुई है। क्योंकि वहां 90 प्रतिशत से अधिक जल चुकी थी। अरुणा द्वारा मौत से पूर्व दिए गए बयान पर निचली अदालत ने विचार नहीं किया है। जबकि न्यायाधीश को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई दोषी कानून की गिरफ्त से न बचे और किसी बेगुनाह को सजा न मिले। इस मामले में अभियोजन पक्ष आरोपी पर लगे आरोपों को साबित नहीं कर पाया है। इसलिए आरोपी को मामले से बरी किया जाता है। और निचली अदालत के फैसले को रद्द किया जाता है।
Created On :   30 April 2021 9:41 PM IST