बेटा मां-बाप से बात नहीं करता तो जबरन नहीं करा सकते मानसिक जांच

If a son does not talk to parents, they cannot forcibly conduct mental examination-HC
बेटा मां-बाप से बात नहीं करता तो जबरन नहीं करा सकते मानसिक जांच
अमेरिकी बाप की याचिका ठुकराई  बेटा मां-बाप से बात नहीं करता तो जबरन नहीं करा सकते मानसिक जांच

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बेटा-अपने माता-पिता से बात नहीं करता इसके लिए हम बेटे को उसकी मानसिक सेहत की जांच कराने के लिए बाध्य नहीं कर सकते हैं। यह बात कहते हुए बांबे हाईकोर्ट ने अपनी तरह के एक अनूठे मामले में अमेरिकी नागरिक जो अभिभावक है, उसकी उस मांग को अस्वीकार कर दिया। जिसमें उन्होंने अपनी बेटे के मानसिक स्वास्थ्य की जांच करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया था। हालांकि इस दौरान कोर्ट ने कहा कि विश्वास की कमी के चलते बेटे का अपने माता-पिता से बात न करना दुर्भाग्यपूर्ण है। अभिभावकों ने याचिका में दावा किया था कि उनका बेटा वेदांत की पढाई करने के लिए साल 2019 में अमेरीका से पुणे स्थित एक अकादमी में आया था। लेकिन साल 2020 में उन्हें बेटे के आचरण व व्यक्तित्व में अचानक काफी बदलाव देखने को मिला। जिसे देखकर उन्हें महसूस हुआ कि बेटे की मानसिक सेहत ठीक नहीं है। इसलिए उनके बेटे की मानसिक रोग विशेषज्ञों से जांच कराने का निर्देश दिया जाए। ताकि उसकी मनस्थिति का मूल्यांकन किया जा सके। 

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याचिका में अभिभावकों ने दावा किया था कि उनका बेटा मानसिक बीमारी व अवसाद से ग्रसित है। इसलिए उसे कोर्ट में पेश करने व उसकी मानसिक जांच कराने का निर्देश दिया जाए। अभिभावकों की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डेरिस खंबाटा ने न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठ के सामने कहा कि मेंटल हेल्थ कानून के तहत यदि किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है तो पुलिस उसकी सुरक्षा के लिए अपनी हिरासत में ले सकती है। ऐसे में उसके मौलिक अधिकारों को ज्यादा तरजीह देना अपेक्षित नहीं है। उन्होंने कहा कि मेरे मुवक्किल का बेटा मानसिक सेहत की जांच की सहमति नहीं दे रहा है। सिर्फ इसलिए जांच का निर्देश न देना उचित नहीं होगा। 

सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के बेटे से बातचीत करने के बाद उसे शारिरीक रुप से फिट व मानसिक रुप से सचेत पाया। अदालत ने महसूस किया कि याचिकाकर्ता के बेटे को अपने आसपास की गतिविधियों की भी जानकारी है। वह अपनी शर्तों पर जीवन जीना चाहता है। खंडपीठ ने कहा कि विश्वास की कमी के चलते याचिकाकर्ता व उसके बेटे के बीच दूरी आई है। बेटे का अपने माता-पिता से बातचीत न करना दुर्भाग्यपूर्ण है। हम याचिकाकर्ता के वकील की ओर से दी गई उस दलील से सहमत नहीं हैं जिसमें एक तरह से याचिकाकर्ता को मानसिक जांच कराने के लिए बाध्य करने के लिए कहा गया है। इस तरह से खंडपीठ ने माता-पिता की मांग पर बेटे की मानसिक जांच करने का निर्देश देने से इंकार कर दिया और उनकी याचिका को खारिज कर दिया। 

Created On :   27 Aug 2021 6:31 PM IST

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