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मेलघाट में बच्चों की मौत हो रही तो सरकार की योजनाओं का क्या मतलब, तेलतुंबड़े की जमानत आर्जी पर एनआईए को नोटिस
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि आदिवासी इलाके की आबादी के लिए सरकार की ओर से बनाई गई कल्याकारी योजनांए सिर्फ कागजों पर नजर आ रही है। यदि राज्य के मेलघाट इलाके में अभी भी कुपोषण से बच्चों की मौत हो रही है तो सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को कोई मतलब नहीं है। अदालत ने सोमवार को इस मामले से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान यह तल्ख टिप्पणी की है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों में कुपोषण से बच्चों की मौत को रोकने के लिए वह कौन से कदम उठाएगी। इससे पहले खंडपीठ को इलाके के एक सामाजिक कार्यकर्ता की ओर से बताया गया कि अगस्त से सितंबर 2021 के बीच 40 बच्चों की मौच हुई है। जबकि 24 मामले ऐसे है जिसमें कुपोषण व डाक्टरों की कमी के चलते मां के पेट से मरे हुए बच्चे पैदा हुए है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि यदि इतनी ज्यादा संख्या में मौत हो रही है तो सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का क्या मतलब है। ऐसा लगता है जैसे योजनाएं सिर्फ कागज पर ही बनाई गई है। हम सरकार से जानना चाहते है कि आखिर ये मौते क्यों हो रही है। और सरकार ने इन मौतो को रोकने के लिए कौन से कदम उठाए है।
खंडपीठ के सामने साल 2007 में मेलघाट इलाके में कुपोषण से बच्चों व महिलाओं की होनेवाली मौत को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई चल रही है। डॉक्टर राजेंद्र बर्मा ने यह याचिका दायर की है। इ याचिका में मेलघाट व आदिवासी इलाकों में स्थित सार्वजनिक स्वास्थय केंद्रों में महिला रोग विशेषज्ञ,बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टरों व रेडियोलाजिस्ट की कमी होने के मुद्दे को भी उठाया गया है। सुनवाई के दौरान राज्य के महाधिवक्ता आशुतो।कुंभकोणी ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में डाक्टरों की नियुक्ति कर दी गई है। जबकि मामले को लेकर सरकार की ओर से दायर किए गए हलफनामे पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने पाया कि गढचिरोली व गोदिया जिले में अभी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा केंद्रों में डाक्टरों के पद रिक्त है।
खंडपीठ ने कहा कि नागपुर व पुणे जैसे शहरीय इलाकों में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों में डाक्टरों के सभी पद भरे हुए है। लेकिन गढचिरोली व गोदिया जैसे इलाकों में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों में 50 प्रतिशत पद रिक्त है। इस पर महाधिवक्ता ने कहा कि इन इलाकों में डाक्टरों की नियुक्ति की गई है लेकिन वे इस क्षेत्र में ड्युटी करने के इच्छुक नहीं है। इस दलील पर खंडपीठ ने कहा कि इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। ड्युटी पर न जानेवाले डाक्टरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। खंडपीठ ने कहा हम इस बात से सहमत है कि गढचिरोली व अन्य आदिवासी इलाके परेशानी भरे है इसलिए सरकार इन इलाकों में काम करनेवाले डाक्टरों को कुछ इनसेंटिव दे। सरकार यह सुनिश्चित करे की आदिवासी इलाकों में डाक्टर उपलब्ध हो। खंडपीठ ने सुझाव स्वरुप कहा कि आदिवासी इलाके में आहार विशेषज्ञ को भी नियुक्त किया जाए। खंडपीठ ने फिलहाल इस याचिका पर सुनवाई 20 सितंबर 2021 तक के लिए स्थगित कर दी है। और सरकार को कुपोषण से हो रही बच्चों की मौत से जुड़े मुद्दे का सामाधान निकालने के लिए तत्काल कदम उठाने को कहा है।
एल्गार परिषद मामला : तेलतुंबड़े के जमानत आवेदन पर हाईकोर्ट ने एनआईए को जारी किया नोटिस
उधर बांबे हाईकोर्ट ने भीमा-कोरेगांव के एल्गार परिषद मामले में आरोपी आनंद तेलतुंबडे के जमानत आवेदन पर गौर करने के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को नोटिस जारी किया है और उसे तेलतुंबडे के आवेदन पर जवाब देने को कहा है। 12 जुलाई 2021 में एनआईए की विशेष अदालत ने तेलतुंबडे को जमानत देने से इंकार कर दिया था। विशेष अदालत के आदेश को तेलतुंबडे ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। वरिष्ठ अधिवक्ता मिहीर देसाई के मार्फत दायर किए गए जमानत आवेदन में तेलतुंबडे ने खुद पर लगे सभी आरोपों का खंड़न किया है। सोमवार को न्यायमूर्ति एस एस शिंदे व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठ के सामने तेलतुंबडे का जमानत आवेदन सुनवाई के लिए आया। आवेदन पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने एनआईए को नोटिस जारी किया और उसे तीन सप्ताह में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।
बैल को वध करने की अनुमति दिए गए पशुओं सूची में शामिल करना है कि नहीं सरकार का नीतिगत मामला, 6 माह में निर्णय ले सरकार
बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि बैल को वध करने की अनुमति दिए गए पशुओं की सूची में शामिल किया जाए की नहीं। यह सरकार का नीतिगत मामला है। चूंकि याचिकाकर्ता ने इस बारे में राज्य सरकार के पास मार्च 2020 व 19 मार्च 2021 को निवेदन दिया है। इसलिए सरकार इस निवेदन पर 6 महीने के भीतर निर्णय ले। मुख्य़ न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने यह निर्देश अल कुरेशी ह्युमन वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। याचिका में दावा किया गया है कि बैल से लाल मांस मिलता है। जो कि पोषण का अच्छा अच्छा स्त्रोत है। इसलिए बैल को ऐसे पशुओं की सूची में शामिल किया जाए। जिन्हें वध करने की इजाजत है। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि बैल को वध करने की अनुमति दिए गए पशुओं की सूची में शामिल करना है कि नहीं यह सरकार का नीतिगत मामला है। याचिकाकर्ता ने इस बारे में सरकार के पास निवेदन दिया है। इसलिए सरकार 6 माह के भीतर याचिकाकर्ता की ओर से दिए गए निवेदन पर निर्णय ले।
Created On :   13 Sept 2021 9:15 PM IST