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अगर सरकार कर्मचारी परिवार की देखभाल नहीं करेगी तो कौन करेगा
डिजिटल डेस्क, मुंबई, कृष्णा शुक्ला। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर सरकार सरकारी कर्मचारियों के मौत के बाद उनके परिवारों की देखभाल नहीं करेंगी तो कौन करेगा। हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति से जुड़े मामले को लेकर यह प्रश्न उपस्थित करते हुए एक मृत सरकारी कर्मचारी के बेटे को राहत प्रदान की है। न्यायमूर्ति गौतम पटेल व न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करने का सबसे आसान तरीका है कि कर्मचारी के परिजन का नाम प्रतीक्षा सूची में डाल दिया जाए। फिर अपने आप समय बीतने के बाद जब सूची में शामिल व्यक्ति नौकरी के लिए तय उम्र पार कर ले तो उसका नाम प्रतिक्षा सूची से हटा दिया जाए। खंडपीठ ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के मामले में इस तरह का दृष्टिकोण हमारी समझ से परे है।
दरअसल सरकारी कर्मचारी बाजीराव पाटिल की 22 सितंबर 2003 को नौकरी में रहते मौत हो गई थी। पाटिल के निधन के बाद चूंकि उनका बेटा नाबालिग था इसलिए पाटिल की पत्नी ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। पाटिल की पत्नी का नाम प्रतीक्षा सूची में शामिल कर लिया गया। समय बीतने के साथ जब पाटिल की पत्नी की आयु नौकरी के लिए तय उम्र 45 के पार हो गई तो उसका नाम नौकरी के लिए तैयार प्रतीक्षा सूची से हटा दिया गया।
इस बीच पाटिल का बेटा शेखर जब वयस्क हो गया तो उसने नौकरी के लिए आवेदन किया और आग्रह किया कि प्रतीक्षा सूची में उसकी मां की जगह उसका नाम शामिल किया जाए। किंतु नाशिक के जिलाधिकारी ने कहा कि एक बार प्रतीक्षा सूची से नाम हटने के बाद उसके स्थान पर किसी और का नाम शामिल करने का प्रावधान नहीं है। नाशिक के जिलाधिकारी के इस आदेश के खिलाफ शेखर ने महाराष्ट्र प्राशकीय न्यायाधिकरण(मैट) में चुनौती दी। मैट ने 10 अक्टूबर 2019 को शेखर के पक्ष में फैसला सुनाया। जिसे नाशिक के जिलाधिकारी ने याचिका दायर कर हाईकोर्ट में चुनौती दी। जिस पर खंडपीठ के सामने सुनवाई हुई।
याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने जिलाधिकारी के आदेश को विचित्र व आधारहीन करार दिया। खंडपीठ ने कहा कि यदि सरकार अपने कर्मचारियों के गरीब परिवार की देखरेख नहीं करेंगी तो कौन करेगा। अनुकंपा नियुक्ति घर के कमानेवाले शख्स के न रहने पर वित्तीय संकट से उबरने का जरिया है। लेकिन अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करने का सबसे आसन तरीका है कि कर्मचारी के परिजन का नाम प्रतीक्षा सूची में डाल दिया जाए फिर अपने आप कुछ किए बगैर समय बीतने का इंतजार किया जाए और जब नौकरी के लिए निर्धारित उम्र बीत जाए तो नाम को प्रतीक्षा सूची से हटा दो। खंडपीठ ने कहा कि हमे इस मामले को लेकर मैट के आदेश में कई खामी नजर नहीं आती है। खंडपीठ ने कहा कि मैट ने इस मामले में शेखर के नाम को प्रतीक्षा सूची में डालने की प्रक्रिया को दो माह में पूरा करने का जो आदेश दिया है उस पर अमल किया जाए। फिर इसकी जानकारी शेखर को दी जाए। इस तरह खंडपीठ ने नाशिक जिलाधिकारी की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया।
Created On :   7 Sept 2022 9:48 PM IST