ऐसे न मिलने वाले क्लेम से तो खुद की गुल्लक भली

If you do not get such a claim, your own piggy bank is good
ऐसे न मिलने वाले क्लेम से तो खुद की गुल्लक भली
ऐसे न मिलने वाले क्लेम से तो खुद की गुल्लक भली

खुद का पैसा जरूरत में किसी भी वक्त निकालकर उपयोग तो किया जा सकता है, 5 से 10  साल में सेविग स्कीम से कई गुना बढ़कर भी मिलेगा, कोरोना महामारी में हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों का अब कोई भरोसा नहीं रहा
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
मेडिक्लेम या हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी आदमी इसलिए लेता है कि जरूरत के वक्त किसी हादसे या बीमारी में तुरंत आर्थिक मदद मिले। यह ऐसा निवेश है जिसमें आदमी सुरक्षित महसूस करता है, लेकिन कोरोना काल में इंश्योरेंस पॉलिसी से लोगों का भरोसा पूरी तरह से टूट गया है। अब लोगों का विश्वास इस ओर बढ़ रहा है कि ऐसे हेल्थ में निवेश से तो सेविंग स्कीम भली। कम से कम मेहनत की कमाई का पैसा आपदा में निकाला तो जा सकता है। पाई-पाई जोड़कर हर साल खुद के साथ परिवार हेल्थ के लिए जो हजारों रुपए जमा िकए जाते हैं, उसका मुसीबत या बदले में कुछ रिस्पांस मिलना ही नहीं है तो खुद का गुल्लक सही अपनी मेहनत का पैसा सुरक्षित तो रहेगा। यही नहीं इस सुरक्षित धन में हर 5 से 10 वर्ष गुजरने में अच्छा खासा ब्याज भी मिलेगा। उम्र के हिसाब से इसमें अलग-अलग तरह की ब्याज दर और स्कीम भी हैं। 
यहाँ लगा सकते हैं अपना पैसा 
म्यूच्यूअल फंड, छोटी बचतों में सुकन्या समृद्धि, पब्लिक प्रोविडेंट फंड, किसान विकास पत्र, नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट, सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम, मंथली इनकम अकाउंट। बैंकिंग, पोस्ट ऑफिस की कई और बचत योजनाएँ हैं जिनमें 6.6 से 7.6 प्रतिशत तक ब्याज मिलता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें पैसा वापस न लौटे ऐसी कोई गुंजाइश नहीं है। खुद का पैसा खुद के गुल्लक में ही है। किसी भी वक्त िनकाला जा सकता है। ऐसा निवेश जो किसी तरह के जोखिम, मानसिक आर्थिक परेशानी से मुक्त रखता है। 
15 से 40 हजार तक पेमेंट
परिवार के हेल्थ के लिए कंपनियों को लोग हर साल 15 से 40 हजार रुपए तक हेल्थ इंश्योरेंस के लिए पेमेंट कर रहे हैं। इससे ज्यादा कई परिवार अपनी आर्थिक सक्षमता के आधार पर भी निवेश करते हैं। खास बात यह है कि कई सालों से लगातार निवेश कर रहे हैं पर किसी तरह का क्लेम आज तक किया नहीं और न ही नौबत आई, अभी महामारी के वक्त जब जरूरत पड़ी तो ऐसे ही निवेश करने वालों को सिर्फ और सिर्फ  धोखा मिल रहा है। ऐन वक्त पर कंपनियाँ कई तरह के नियम-कायदे कानून बताकर अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट गईं। सालों जिन्होंने इन कंपनियों को रुपए दिये यदि रकम सेविंग स्कीम में होती तो ब्याज के साथ जरूरत में काम आ सकती थी।  
धन भी गया और भरोसा भी टूट गया
स्वास्थ्य पर जब संकट आया और सबसे अधिक जब आर्थिक  मदद की जरूरत थी उसी समय धोखा मिला और मूलधन भी डूब गया। कंपनियों ने सालों उपभोक्ताओं से लाभ कमाया और जब भुगतान की बारी आई तो नियमों का बखान कर भाग खड़ी हो रही हैं। िनयम पर पूरी तरह से ताक पर हैं और उपभोक्ताओं की शिकायत लगातार बढ़ती जा रही है। 
 

Created On :   31 May 2021 5:27 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story