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कुपोषण से मौत को रोकने आक्रामक रुख अपनाए सरकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार आदिवासी इलाकों में कुपोषण व स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में महिलाओं व बच्चों की मौत को रोकने के लिए सभी मोर्चे पर आक्रामक रुख अपनाए। क्योंकि जिस तरह से महिलाओं व बच्चों की आदिवासी इलाकों में मौत हो रही है। वह भयावह है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह हमारे लिए समझ पाना मुश्किल है कि संविधान के 72 साल के शासन के बाद भी बच्चे भोजन के अभाव में मर रहे है। हाईकोर्ट ने आदिवासी इलाके में कुपोषण से हो रही बच्चों की मौत को लेकर 14 साल पहले दायर याचिका पर सुनवाई के बाद गुरुवार को उपलब्ध हुए आदेश में यह बात कही है। हाईकोर्ट ने कहा कि मामले को लेकर सरकारी अधिकारियों की ओर से दायर किए गए हलफनामे में सरकार की ओर से कुपोषण से मौत को रोकने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी है किंतु हलफनामा इस विषय पर पूरी तरह से मौन है कि आखिर आदिवासी इलाकों में कैसे व क्यों शून्य से 6 साल के उम्र के बच्चों की मौत हो रही है और इसे नियंत्रित क्यों नहीं किया जा रहा है। इसलिए सरकार आक्रामक रुख अपनाकर ऐसी मजबूत व्यवस्था बनाए जिसमें ऐसे लोगों को शामिल किया जाए जो वास्तविक रुप से आदिवासी इलाकों के गांवो का दौरा करते है। ताकि उन बच्चों व महिलाओं की पहचान की जा सके। जिन्हें तत्काल मदद की जरुरत है। इसलिए सरकार के विशेषज्ञ अधिकारी इस पूरे मामले पर ध्यान दे । इससे पहले कोर्ट को बताया कि मामले की पिछली सुनवाई से अब तक 40 बच्चों की मौत हो चुकी है। डाक्टर राजेंद्र बर्मा व समाजिक कार्यकर्ता बीएस साने ने इस विषय पर कोर्ट में याचिका व आवेदन दायर किया है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने कहा कि सरकारी अधिकारी समाजिक कार्यकर्ता बीएस साने के साथ मिलकर आदिवासी इलाकों में स्थिति सुधारने की दिशा में कदम उठाए। खंडपीठ ने कहा कि हम अपेक्षा करते है कि राज्य के महाधिवक्ता के इस मामले में हस्तक्षेप के बाद आदिवासी इलाकों में लोगों की मदद व राहत पहुंचाने के लिए तत्काल जरुरी कदम उठाए जाएगे। खंडपीठ ने 20 सितंबर को अब इस याचिका पर सुनवाई रखी है।
मेडिकल रिसर्च स्कॉलर के मामले में NORI से जुड़ी केंद्र की नीति नहीं होगी लागू
इससे पहले बांबे हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा है कि केंद्र सरकार की नो ऑब्जेक्शन टू रिटर्न टू इंडिया (एनओआरआई) प्रमाणपत्र से जुड़ी नीति मेडिकल रिसर्च स्कॉलर के मामले में लागू नहीं होगी। न्यायमूर्ति आरडी धानुका व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने यह बात कहते हुए केंद्र सरकार को पांच सप्ताह के भीतर 27 वर्षीय अवनी वैष्णव को एनओआरआई प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को जारी किए जानेवाले एनओआरआई प्रमाणपत्र में एक क्लाज लिखा जाए कि यदि वह अमेरिका में डॉक्टर के तौर पर प्रैक्टिस करेंगी, तो उसका प्रमाणपत्र रद्द कर दिया जाएगा। खंडपीठ ने यह निर्देश वैष्णव की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। वैण्णव फिलहाल न्यूयार्क में है। खंडपीठ ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि याचिकाकर्ता (वैष्णव) एमबीबीएस की डिग्री होने के बवाजूद डॉक्टर के तौर पर प्रैक्टिस नहीं करना चाहती हैं। वे रिसर्च स्कॉलर के तौर पर काम करना चाहती हैं। इसलिए उन्हें एनओआरआई प्रमाणपत्र जारी किया जाए। गौरतलब है कि डॉक्टरों को भारत से बाहर जाने से रोकने के लिए केंद्र सरकार ने मेडिकल डिग्री धारकों को एनओआराई प्रमाणपत्र जारी न करने का निर्णय किया है। इससे पहले उच्च शिक्षा विभाग ने वैष्णव को एनओआरआई प्रमाणपत्र जारी करने से मना कर दिया था। जिसके खिलाफ वैष्णव ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। नई मुंबई के डीवाई पाटील कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई करनेवाली वैष्णव ने अमेरिका के एक अस्पताल में इंटर्नशिप स्वीकार की थी। फिर जेवन वीजा के लिए आवेदन किया था। याचिका में वैष्णव ने कहा था कि जेवन वीजा पर पांच साल से अधिक नहीं रहा जा सकता है। इसलिए मैंने (वैष्णव) ग्रीनकार्ड के लिए आवेदन किया था, लेकिन बिना एनओआरआई प्रमाणपत्र के बिना ग्रीनकार्ड नहीं जारी किया जा सकता है।
Created On :   16 Sept 2021 4:03 PM IST