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बढ़ता जा रहा है यहा ट्रेंड : हसबैंड का संडे बना वाइफ के लिए रेस्ट-डे
डिजिटल डेस्क, नागपुर। हसबैंड का संडे अब शादीशुदा महिलाओं के लिए रेस्ट डे बन रहा है। गृहस्थी की गाड़ी हसबैंड और वाइफ के सामंजस्य से चलती है। महंगाई के इस दौर में पति-पत्नी दोनों का नौकरी करना भी जरूरी है। सबकी जरूरतें इतनी बढ़ गई हैं कि किसी एक के वेतन से घर चलना मुश्किल होता है। चाहे महिला गृहिणी हो या नौकरीपेशा, लेकिन उसे घर में रहकर खाना बनाना ही पड़ता है। सुबह उठने के साथ ही महिलाएं घर के काम में व्यस्त हो जाती हैं। बच्चों के टिफिन के बाद नाश्ता, खाना, हसबैंड का टिफिन और साथ ही अपना भी टिफिन बनाना पड़ता है, लेकिन अब समय के अनुसार हसबैंड्स की सोच बदल गई है। संडे को वाइफ का रेस्ट डे हो गया है। उस दिन सुबह की चाय, नाश्ता हसबैंड तैयार करते हैं और लंच तैयार करने में वाइफ का हाथ बंटाते हैं। डिनर के लिए बाहर जाना प्रिफर करते हैं। पहले यह ट्रेंड मेट्रो सिटीज में था, लेकिन अब सभी शहरों में इस तरह का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है।
संडे का इंतजार होता है
हिवरी नगर रहवासी रेखा जोशी के मुताबिक उनके हसबैंड का लॉजिंग एंड बोर्डिंग का काम है। उन्हें खाना बनाने का शौक भी है। कभी घर में ज्यादा मेहमान आ जाते थे, तो वो मेरा साथ देते थे। हमेशा ही अपने हाथ का खाना खाकर बोर हो जाते हैं। मेरे हसबैंड दाल फ्राय बहुत टेस्टी बनाते हैं, इसलिए संडे को परिवार के सदस्य उनसे दाल फ्राय बनाने की डिमांड करते हैं। वैसे भी महिलाओं से ज्यादा पुरुष खाना टेस्टी बनाते हैं। पूरे परिवार को संडे का इंतजार होता है। एक दिन खाना बनाने से हमें छुट्टी मिलती है, तो हमें भी बहुत अच्छा लगता है।
इसी तरह तरुण जोशी का कहना है कि घर की महिला पूरे परिवार का ध्यान रखती है। घर में कोई मेहमान भी आए, तो उसका स्वागत करती है। इसलिए हसबैंड को अपनी वाइफ के बारे में सोचना चाहिए। घर का काम करने में कैसी शर्म। जैसे एक महिला घर के सदस्यों के लिए खाना बना सकती है, तो हम क्यों नहीं। संडे को मेरी छुट्टी होती है, इसलिए संडे का दिन वाइफ के लिए रेस्ट डे होता है। ऐसा नहीं है कि वह कुछ काम नहीं करती है। बाकी दिन वह सुबह जल्दी उठकर घर के काम में लग जाती है। मैंने अपनी वाइफ से कहा कि संडे के दिन सुबह की चाय और नाश्ता मैं ही बनाऊंगा। सुबह जल्दी उठने की जरूरत नहीं है। जब कभी वाइफ की तबीयत खराब होती है, तो मैं खाना बनाता था। संडे को खाना बनाने से थोड़ी आदत भी हो जाती है।
केवल महिलाओं का काम नहीं
वर्धमान नगर के रहने वाले बद्रीप्रसाद व्यास के मुातबिक उन्हें एक बात हमेशा याद आती है। एक बार मम्मी बहुत बीमार हो गई थीं। वे बाहर का भी कुछ नहीं खाती थीं और हमारे घर में खाना बनाने के लिए भी कोई नहीं था। तब मम्मी ने मुझे कहा कि मैं तुम्हे बताती हूं तुम खाना बनाओ। उनके बताए अनुसार मैंने पहली बार खिचड़ी बनाई। फिर मैंने सोचा कि कभी भी ऐसा वक्त आ सकता है, इसलिए खाना बनाना आना चाहिए। धीरे-धीरे मैंने खाना बनाना सीख लिया। मुझे खाना बनाने का शौक है। वैसे तो मैं हमेशा कुछ न कुछ बनाता रहता हंू, लेकिन संडे को स्पेशली बढ़िया डिशेज बनाकर परिवार को खुश करता हूं। खाना बनाने का काम केवल महिलाओं का नहीं है।
Created On :   12 May 2019 6:26 PM IST