डीबीटी की मदद से विकसित स्वदेशी एमएनआरएनए टीके को ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल शुरू करने के लिए औषधि नियंत्रक की मंजूरी मिली

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डीबीटी की मदद से विकसित स्वदेशी एमएनआरएनए टीके को ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल शुरू करने के लिए औषधि नियंत्रक की मंजूरी मिली

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय डीबीटी की मदद से विकसित स्वदेशी एमएनआरएनए टीके को ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल शुरू करने के लिए औषधि नियंत्रक की मंजूरी मिली भारत के पहले स्वदेशी एमआरएनए टीके को भारतीय औषधि नियामकों से इंसान पर चरण I/IIके नैदानिक परीक्षण (ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल) को शुरू करने की मंजूरी मिल गई है। नोवल एमआरएनएस संभावित टीका, एचजीसीओ 19 को जेनोवा, पुणे ने बनाया है, जिसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के इंड-सेपीमिशन (IndCEPImission) के तहत अनुदान मिला हुआ है। एमआरएनए टीके में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा करने वाले पारंपरिक मॉडल का उपयोग नहीं किया गया है। इसकी जगह पर, एमआरएनए टीके में वायरस के एक सिंथेटिक आरएनए (कृत्रिम आरएनए) के जरिए शरीर में प्रोटीन बनाने वाले आणविक निर्देश को शामिल किया गया है। मेजबान (जिसके शरीर में टीका लगाया जाता है) का शरीर इसका उपयोग वायरल प्रोटीन पैदा करने के लिए करता है, जो शरीर को भी स्वीकार्य होता है और इसके परिणामस्वरूप शरीर में रोग के खिलाफ एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित होने लगती है। कम समय सीमा में तैयार होने की वजह से एमआरएनए-आधारित इस टीके को वैज्ञानिक रूप से महामारी से निपटने का एक आदर्श विकल्प है। एमआरएनए वैक्सीन को सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि यह अपने स्वभाव में गैर-संक्रामक, गैर-एकीकरण वाली होती है और इसे मानकीय जीवकोषकीय प्रक्रिया (स्टैंडर्ड सेलुलर मैकेनिज्म) द्वारा कमजोर किया जाता है। सेल साइटोप्लाज्म के भीतर प्रोटीन संरचना में बदलने की स्वाभाविक क्षमता के कारण इसके बहुत अधिक प्रभावशाली होने की उम्मीद है। इसके अलावा, एमआरएनए टीके पूरी तरह से सिंथेटिक हैं और इन्हें बनाने के लिए किसी मेजबान जैसे अंडे या बैक्टीरिया इत्यादि की जरूरत नहीं है। इसलिए सतत आधार पर व्यापक टीकाकरण के लिए “उपलब्धता” और “पहुंच” सुनिश्चित करने के लिए वे सीजीएमपी शर्तों के तहत कम खर्चीले तरीके से बनाए जा सकते हैं। जेनोवा ने एक एमआरएनए टीका विकसित करने के लिए एचडीटी बायोटेक कॉर्पोरेशन, सिएटल, यूएसए के साथ साझेदारी में मिलकर काम किया है। एचजीसीओ19 पहले ही जानवरों में सुरक्षा, प्रतिरक्षा और निष्प्रभावी करने वाली रोग-प्रतिकारक गतिविधियों (न्यूट्रलाइजेशन एंटीबॉडी एक्टिविटी) का प्रदर्शन कर चुका है। चूहों और गैर-मानव आरंभिक जीवों में कोविड-19 से संक्रमित रोगियों के सीरम के साथ वैक्सीन की निष्प्रभावी करने वाली एंटीबॉडी प्रतिक्रिया तुलना करने योग्य थी। जिनोवा की वैक्सीन में स्पाइक प्रोटीन (डी614जी) के सबसे प्रभावी उत्परिवर्ती (म्यूटेंट) और सेल्फ-एंप्लीफाइंग एमआरएनए प्लेटफॉर्म (स्वविस्तारित एमआरएनए मंच) का उपयोग किया गया है, जिससे एमआरएनए की प्रतिकृति न बनाने वाले या पारंपरिक तरीके से विकसित टीकों के मुकाबले इसकी कम खुराक देने की सुविधा है। एचजीसीओ19,एब्जॉर्बशन केमिस्ट्री (सोखने वाली रसायन विद्या) का उपयोग करता है ताकि एमआरएनए नैनो-लिपिड वाहक की सतह से चिपक जाए और इंकैप्सुलेशन केमिस्ट्री (कैप्सूल बनाने वाली रसायनविद्या) के मुकाबले कोशिकाओं के भीतर एमआरएनए जारी करने की गति (रिलीज काइनेटिक्स) बढ़ जाए। एचजीसीओ19, 2-8°C पर दो महीने तक स्थिर बना रहता है। जेनोवा ने सभी शुरूआती काम पूरे कर लिए हैं और चूंकि डीसीजीआई कार्यालय से मंजूरी मिल चुकी है इसलिए बहुत जल्द चरण I/IIके ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो जाना चाहिए। जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार इंड-सेपीमिशन ‘इंडिया सेंट्रिक एपीडेमिक प्रीपेरड्नस थ्रू रैपिड वैक्सीन डेवलपमेंट: सपोर्टिंग इंडियन वैक्सीन डेवलपमेंट’ को लागू कर रहा है, जो भारत में महामारी पैदा करने वाले रोगों के लिए टीका और संबंधित क्षमताओं/प्रौद्योगिकियों के विकास को मजबूत बनाने की वैश्विक पहल सेपिएंड (CEPIand) के अनुरूप है। इंड-सेपीमिशन को डीबीटी ने अपने सार्वजनिक उपक्रम, जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएससी) के माध्यम से लागू किया है। डॉ. रेणु स्वरुप, सचिव, जैव प्रौद्योगिकी विभाग और अध्यक्ष, बीआईआरएसी ने कहा कि एक ऐसे स्वदेशी प्रौद्योगिकी मंच की स्थापना भारत को न केवल कोविड-19 महामारी से निपटने में सशक्त बनाएगी, बल्कि भविष्य के ऐसे किसी प्रकोप से निपटने की तैयारियां भी सुनिश्चित करेगी।

Created On :   12 Dec 2020 8:20 AM GMT

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