सरकारी अधिकारियों को फर्क नहीं पड़ता कोई सरकारी जमीन के इस्तेमाल का पैसा दे या नहीं-  आयोग

It doesnt matter to government officials whether someone gives money or not for use of government land - Commission
सरकारी अधिकारियों को फर्क नहीं पड़ता कोई सरकारी जमीन के इस्तेमाल का पैसा दे या नहीं-  आयोग
220 एकड़ जमीन का मामला सरकारी अधिकारियों को फर्क नहीं पड़ता कोई सरकारी जमीन के इस्तेमाल का पैसा दे या नहीं-  आयोग

डिजिटल डेस्क, मुंबई, कृष्णा शुक्ला। महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग ने सरकारी जमीन को लेकर सरकारी अधिकारियों के बेपरवाह रवैए को लेकर कड़ी नारजागी जाहिर की है। आयोग ने अपने एक आदेश में कहा है कि सरकारी अधिकारियों को इससे बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता है कि कोईसरकारी जमीन के इस्तेमाल के लिए एक पैसा दे भी रहा है या नहीं। मामला मुंबई  के महालक्ष्मी रेसकोर्स  की 220 एकड़ जमीन से जुड़ा है। इस जमीन को दोबारा लीज में दिया जाएगा या वापस लिया जाएगा। यह मामला साल 2013 से प्रलंबित है। जिसका आयोग ने स्वयं संज्ञान लेते हुए राज्य के नगर विकास विभाग से पिछले दिनों जवाब मांगा था। आयोग की ओर से इस मामले को लेकर जारी आदेश के तहत नगर विकास विभाग के उपसचिव ने एक हलफनामा दायर किया है। जिस पर गौर करने के बाद आयोग के अध्यक्ष केके तातेड व सदस्य बीडी मोरे की पीठ ने हैरानी जाहिर की। क्योंकि हलफनामे कहा गया है कि यह दीवानी एक स्वरुप का मामला है। इसके साथ ही यह  पक्षकारों के बीच कांट्रेक्ट से जुड़ा विवाद है। इसलिए आयोग इस मामले का संज्ञान न ले और राज्य सरकार को इस मामले से अलग कर दें। 

इस पर आयोग की पीठ ने कहा कि वर्तमान में हम जिस मामले पर विचार कर रहे वह 220 एकड़ की जमीन से जुड़ा मामला है। जो एक खास संस्थान के कब्जे में है और वह जमीन के इस्तेमाल को लेकर एक पैसे का भुगतान नहीं कर रहा है। पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारी अधिकारी इस बात को भूल गए है कि इस मामले से जुड़ी जमीन किसी व्यक्ति की निजी भूमि न होकर सरकारी जमीन है। यह मामला साल 2013 से प्रलंबित है और सरकारी अधिकारी कह रहे है कि कोरोना के चलते इस मामले में निर्णय नहीं लिया जा चुका है। यह अपने आप में दर्शाता है कि सरकारी अधिकारी सरकारी जमीन को लेकर क्या रवैया अपनाते है और उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि कोई एक पैसा चुकाए बिना सरकारी जमीन का इस्तेमाल कर रहा है। आयोग की पीठ ने कहा कि हमने सरकार से स्पष्ट जानकारी मंगाई थी कि सरकार इस मामले को लेकर कितने समय में फैसला लेगी  और इस मामले में सरकार को कितने राजस्व का नुकसान हुआ है। लेकिन नगरविकास विभाग के अधिकारी ने अपने हलफनामें इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है। सरकारी अधिकारी ने बेहद हल्के अंदाज में अपना हलफनामा दायर किया है। यह हमारी समझ से परे है कि क्या इस हलफनामे को राज्य के मुख्य सचिव ने मंजूर किया है या नहीं। आयोग ने अब इस मामले की सुनवाई 17 फरवरी 2023 को रखी है और इस मामले में राज्य सरकार को अतिरिक्त हलफनामा दायर करने के साथ ही व मुंबई महानगरपालिका को भी जवाब देने को कहा है। 

 

Created On :   26 Dec 2022 6:54 PM IST

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